विष्णु नागर

विनोद कुमार शुक्ल से एक मुलाक़ात
15-Aug-2022 1:07 PM
विनोद कुमार शुक्ल से एक मुलाक़ात

-विष्णु नागर 

कल मैं रायपुर में था। विनोद कुमार शुक्ल जी से उनके निवास पर भेंट हुई। साथ में लीलाधर मंडलोई भी थे। जीवन के ८६ वें वर्ष में चल रहे विनोद जी पर उम्र की सघन छाया पड़ रही है। कल उन्हें देखकर मन विकल हुआ। उन्हें कैथेटर लगा हुआ है, जिसकी थैली एक डिब्बे में रखे हुए वह हम लोगों के स्वागत के लिए अपने घर के दरवाजे तक आए और अंदर घर में ले आए।बाद में बहुत मना करने पर भी नहीं माने, छोड़ने भी आए।

विनोद जी का रहन-सहन हमेशा से बेहद सादगीपूर्ण रहा है। शायद किसी भी अन्य मध्यवर्गीय लेखक की तुलना में। वह उनके व्यक्तित्व तथा उनके निवास में भी झलकता है। कुछ बातें हुईं। अभी उनका मन बच्चों के लिए लिखने में रमा हुआ है। वह लिख रहे हैं। उनके दो कविता संग्रह भी तैयार हैं मगर अपने प्रकाशकों से वह संतुष्ट नहीं हैं रायल्टी को लेकर। राजकमल प्रकाशन के अशोक माहेश्वरी तो उन किताबों के प्रकाशनाधिकार लौटाते जा रहे हैं मगर दूसरे बड़े प्रकाशक उनके अनुसार अड़े हुए हैं।किताबों की धीमी बिक्री की बात कहकर प्रकाशनाधिकार वापिस करने में बहानेबाजी कर रहे हैं।

पिछले दिनों उनके समवयस्क कवि मित्र नरेश सक्सेना उन पर फिल्म बनाने रायपुर गए थे। रायपुर में तो शूटिंग का काम पूरा हो चुका है मगर उनके अपने बचपन के शहर राजनांदगांव का अभी शेष है। अभी तक का काम तो नरेश जी ने अपने संसाधनों से किया मगर यह महंगा काम है। राज्य सरकार के एक शीर्ष अधिकारी ने उत्सुकता तो दिखाई मगर कहा कि इसके लिए प्रार्थनापत्र लिख कर दीजिए। जब राज्य सरकार खुद आगे बढ़कर मदद करने की बजाय प्रार्थनापत्र मांगे तो नौकरशाही आगे क्या- क्या पेंच पैदा करेगी, इसकी कल्पना डराने वाली है। फिलहाल काम स्थगित है।

एक समवयस्क महत्वपूर्ण कवि द्वारा दूसरे समवयस्क महत्वपूर्ण कवि पर इस तरह का काम शायद ही पहले कभी हुआ हो मगर वह अधूरा ही रह जाने का भय है। अस्सी पार कर चुके इन कवियों का यह मिशन अधूरा न रहे, इसका कोई सम्मानजनक उपाय निकल सके तो अच्छा है। कोई संस्था आगे आए तो सबसे बेहतर है लेकिन कुछ भी ऐसा न हो, जिसके कारण इन दोनों कवियों के सम्मान को ठेस न पहुंचे।

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