दयाशंकर मिश्र

पहना हुआ स्वभाव !
22-Jul-2020 4:32 PM
पहना हुआ स्वभाव !

बहुत सारी चीजें हमारे स्वभाव का अनचाहे ही हिस्सा बन जाती हैं। धीरे-धीरे वह हमारे स्वभाव में घुलने लगती हैं। अगर समय रहते उनको ठीक ना किया जा सके तो वह हमारे अवचेतन मन में प्रवेश करने लगती हैं।

हम सब अक्सर अपने स्वभाव की छोटी- मोटी चीजों को लेकर परेशान होते रहते हैं। हमारा ध्यान उस ओर कम ही जाता है, जिस ओर जाना चाहिए। अक्सर हम मन पर पड़े बोझ के पत्थर कम देख पाते हैं। दूसरों से उलझने और अपने को सही साबित करने के चक्रव्यूह में ही फंसे रहते हैं। प्रसन्नता हमारे स्वभाव से दूर जा रही है। नाराजगी और स्वभाव में उग्रता बढ़ती जा रही है।

अपने भीतर का जब तक हमें बोध नहीं होता, हम शांति की ओर नहीं बढ़ सकते! स्वभाव से जुड़ी छोटी सी कहानी आपसे कहता हूं। संभव है इससे मेरी बात अधिक सरलता से आप तक पहुंच सके।

एक सरकारी अफसर साधक के पास पहुंचा। साधक गहरे मौन में रहते। बहुत जरूरी प्रश्नों के ही उत्तर देते। अफसर अक्सर इस गुमान में रहते हैं कि वही दुनिया चला रहे हैं। दुनिया उनकेे ही दम पर टिकी है। अफसर ने साधक से कहा मेरे पास समय नहीं है। मुझे जल्दी से समझाइए कि जीवन में शांति कैसे आ सकती है। साधक ने कोई उत्तर नहीं दिया। जो व्यक्ति उन्हें साधक के पास ले गए थे, उन्होंने किसी तरह अफसर को समझाया कि आपकी दुनिया के नियम सब जगह लागू नहीं होते। वह अफसर जल्दबाजी में थे, चले गए।

घर जाकर उनको एहसास हुआ कि अब तक तो जिन साधु और साधकों के पास वह पहुंचे, वह तो जैसे उनके इंतजार में ही बैठे थे। इस मायने में यह साधक अनूठे हैं।

अगले दिन वह अपने उस मित्र के यहां भागे जो उनको साधक के पास ले गए थे। वह गुस्से में मित्र के ऊपर भी नाराज हो गए थे कि उसने उनका बेहद कीमती समय ऐसे साधक के पास लेे जाकर खराब कर दिया, जो अपने यहां आने वालों से ठीक से बात नहीं करता। दूसरोंं के समय का सम्मान नहीं करता। संयोग से उनके मित्र सजग थे। प्रेम का रंग उनकी आत्मा में घुला हुआ था। वह उनको लेकर साधक केे पास गए। इस बार इस अफसर ने कोई जल्दबाजी नहीं की। प्रेम से बैठे रहे। समय आने पर बहुत इत्मीनान से उन्होंने कहा, मेरा स्वभाव बहुत उग्र है। इस नियंत्रित करने का उपाय बताइए।

साधक ने कहा यह तो नई चीज़ है। मैंने आज तक नहीं देखी। जरा दिखाओ तो कैसा होता है, उग्र स्वभाव! उस व्यक्ति ने कहा वह तो अचानक कभी-कभी होता है। उस पर मेरा नियंत्रण नहीं है। साधक ने कहा, यदि वह हमेशा नहीं है तो वह तुम्हारा स्वभाव नहीं है। किसी कारण से तुमने उसे थोड़ी देर के लिए पहना हुआ है। हमेशा इसी बात का ख्याल रखना। ओढ़ी हुई चीज थोड़ी देर के लिए होनी चाहिए हमेशा के लिए नहीं।

हम सबके साथ भी कुछ ऐसा ही है। बहुत साारी चीजें हमारे स्वभाव का अनचाहे ही हिस्सा बन जाती हैं। धीरे-धीरे वह हमारे स्वभाव में घुलने लगती हैं। अगर समय रहते उनको ठीक ना किया जा सके तो वह हमारे अवचेतन मन में प्रवेश करने लगती हैं। आपनेे देखा होगा कुछ लोगों का स्वभाव धीरे-धीरे बदलने लगता है। लेकिन एक दिन वह आपको पूरी तरह बदले हुए नजऱ आते हैं। वह छोटे-छोटे परिवर्तनों के प्रति सजग नहीं होते। घने से घना जंगल भी कुछ वर्षों में मैदान बन सकता है अगर वहां होने वाली कटाई पर समय रहते रोक न लगाई जाए।

हम सब अपने-अपने जीवन में अलग-अलग जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हैं, अपनी जिंदगी चलाने के लिए। जिंदगी की जरूरतों को पूरा करने के लिए। बस यही बात मन में गहराई से बैठी रहनी चाहिए। इसे बहुत अच्छी तरह समझना होगा कि नौकरी की जरूरत को जिंदगी में जरूरत से ज्यादा महत्व नहीं देना है।

अपने स्वभाव का सजगता से निरीक्षण करते रहे। जांच करते रहें। कहीं कुछ चीजें आपके स्वभाव में दूसरों की तो शामिल नहीं हो रहीं। कभी-कभी जरूरत पडऩे पर सफर में हम दूसरों की चीजों से काम चला लेते हैं। लेकिन वह हमेशा के लिए हमारे पास नहीं रहतीं। ठीक इसी तरह से ध्यान रखना होगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि गुस्सैल, क्रोधी, किसी भी कीमत पर सब कुछ हासिल करने की जिद पर रहने वालों के साथ रहते हुए हम भी तो वैसे ही नहीं होते जा रहे!

अपने स्वभाव को सरल और प्राकृतिक बनाए रखना है। दूसरों का पहना और ओढ़ा स्वभाव हमारे किसी काम नहीं! (hindi.news18.com)

-दयाशंकर मिश्र

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