विष्णु नागर

राम भी सबके अलग-अलग हैं अब
04-Sep-2020 8:26 PM
राम भी सबके अलग-अलग हैं अब

विष्णु नागर

वही जस्टिस अरुण मिश्रा-जो प्रशांत भूषण मामले के कारण कुचर्चित होकर अवकाश ले चुके हैं-उनका एक और विवादास्पद निर्णय आया है-दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में रेलवे के किनारे बसी 48 हजार झुग्गी झोपडिय़ों को हटाने के बारे में।सरकार का पक्ष है कि राजनीतिक दखलअंदाजी के कारण ये झुग्गी झोपडिय़ाँ बसी हुई हैं।

मैं इन झुग्गी झोपडिय़ों के पक्ष में हजार तर्क नहीं दूँगा मगर एक सवाल उठाऊँगा-जो मशहूर जनपक्षधर अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज उठाते रहे हैं-कि सरकार कोई हो, अदालत कोई हो, उसके निशाने पर हमेशा झुग्गी बस्तियाँ क्यों रहती हैं? हर शहर में और हमारे दिल्ली महानगर में लाखों कारें और स्कूटर-मोटर साइकिलें वगैरह बारहों महीने सडक़ और पटरियों को घेरे रहती हैं। इस पर किसी सरकार का ध्यान क्यों नहीं जाता? जाएगा भी नहीं। किसी अदालत का भी नहीं जाएगा। आदेश कभी निकलता भी है तो अगले दिन फुस्स हो जाता है।

वजह है मध्यवर्ग-उच्च मध्यवर्ग की मजबूत, हल्लेबाज ब्रिगेड। वह सरकार की हवा टाइट कर देगी।मोदीजी जैसे शूरवीरों को भी जगह दिखा देगी। दूसरा यह वाहन उद्योग बहुत ताकतवर है।खरबों रुपये इसमें लगे हैं-देशी कम, विदेशी उद्योगपतियों के। चाहे जितना प्रदूषण फैले, चाहे जितनी दुर्घटनाओं में चाहे जितने लोग मरें, वैश्विक स्तर पर सरकारों में सहमति है कि किसी भी कीमत पर इसे बढ़ाना है। इसके लिए कोई कीमत अधिक नहीं। तीसरा इस तरह के निर्णय से कारपोरेट हित भी जुड़े हैं। झुग्गियों से जो जमीन खाली होगी, वह रेलवे निजीकरण की प्रक्रिया में कारपोरेट जगत को लाभ देगी और कारपोरेट जगत के लाभ में सरकार का और विपक्ष का, दोनों का हित है।   

समान नहीं,तो असमान सही, मगर है।

और गरीबों की कोई लाबी तो है नहीं,चाहे उनकी तादाद करोड़ों में हो। ज्यादा से ज्यादा झुग्गी उजाड़ोगे तो वे रो लेंगे। गुस्सा करेंगे, तोडफ़ोड़ करेंगे, कुछ मर जाएँगे, कुछ मार दिए जाएँगे। गोदी चैनल इनके खिलाफ मुसलसल आंदोलन चला देंगे।

एक रवीश कुमार इनके पक्ष में ज्यादा से ज्यादा दो दिन-तीन दिन करुण दृश्य दिखा देगा। दो चार एनजीओवालों-वकीलों को बोलने का मौका दे देगा। रवीश को भी मालूम है कि इससे कुछ होगा नहीं।

उधर कारें, स्कूटर, मोटरसाइकिलें बदस्तूर सडक़ों-पटरियों को घेरे रहेंगी। उनसे किसी नियम कानून का उल्लंघन नहीं होगा, चाहे आप देश की ऊँची से ऊँची अदालत जाकर देख लो, सडक़ पर आंदोलन करके देख लो। ज्यादा करोगे तो हममें से कोई अर्बन नक्सल बना दिया जाएगा। पड़े रहो जेल में। होगा वही,जो जयश्री राम चाहेंगे और जयश्रीराम का मतलब यहाँ राजनीतिक राम हैं,भाजपा के, मोदीजी के राम हैं। राम भी सबके अलग-अलग हैं अब।

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