छत्तीसगढ़
राज शार्दुल
विश्रामपुरी, 27 दिसंबर। (‘छत्तीसगढ़’) कोंडागांव जिले के धमतरी एवं ओडिशा से लगे क्षेत्र में साप्ताहिक मवेशी बाजारों में मवेशी तस्कर विश्रामपुरी के रास्ते बेखौफ होकर पशुओं की तस्करी कर रहे हैं। ओडिशा के रायगढ़ एवं अन्य क्षेत्रों से आने वाले तस्कर जंगल नदी-नाले रास्ते से बैल भैंस को मारते पीटते हांकते हुए ओडिशा की ओर ले जाते हैं। यह व्यवसाय दिनोंदिन फलफूल रहा है।
इन मवेशियों को नदी-नालों एवं जंगलों के रास्ते से पैदल भगाकर ले जाने से तस्करों का काम आसान हो जाता है। गाडिय़ों का खर्च बच जाता है एवं वाहनों के जब्त होने का डर नहीं रहता। तस्करों की यह भी चालाकी है कि यदि पुलिस मवेशियों को पकड़ भी लेती है तो हजारों मवेशियों को कब तक रोके रखा जाएगा। दूसरा पहलू यह भी कि ओडिशा के तस्कर स्थानीय किसानों एवं कोचियाओं को ढाल बनाकर व्यवसाय कर रहे हैं।
बस्तर के सीमावर्ती धमतरी जिले के सालेटोला, बेलर एवं करहीभदर आदि जगहों पर पशुओं का प्रति सप्ताह बाजार लगताा है। जहां गाय बैल भैंस सैकड़ों की संख्या में लाए जाते हैं। बाजार में बूढ़े एवं अनुपयोगी मवेशी भी लाए जाते हैं। इनकी तस्करी ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश की ओर होती है।
मिली जानकारी के अनुसार वहां से पशुओं को पश्चिम बंगाल बांग्लादेश सीमा पहुचाया जाता है। जानकारी के अनुसार कोलकाता के बूचडख़ानों में मवेशियों की खपत होती है। इसी के चलते बूढ़े एवं अनुपयोगी मवेशी भी बाजारों में लाए जाते हैं।
मवेशियों की लगती है बोली
मवेशियों के छोटे-छोटे झुंड लेकर स्थानीय कोचिया बाजारों में पहुंचते हैं। झुंड को देखकर छोटे-बड़े सभी को मिलाकर बोलियां लगती है। तत्पश्चात उन समूह के मवेशियों पर पहचान के लिए पेंट से नंबर या चिन्ह डाल दिए जाते हैं।
रायगढ़ (ओडिशा) निवासी चेतराम यादव एवं भंवरलाल गंधर्व ने बताया कि वे प्रति बुधवार को यहां से छत्तीसगढ़ के साल्हेटोला एवं करहीभदर में लगने वाले पशु बाजार से मवेशियों को हांकते हुए ले जाते हैं जो विश्रामपुरी के मचली से भारोंड ओडिशा रास्ते रायगढ़ बाजार में पशुओं को पहुंचाते हैं।
तत्पश्चात उन्हें उमरकोट के बाजार में पहुंचाया जाता है। हर बाजार 70 से 80 मवेशी ले जाते हैं। इसके बदले में उनको प्रतिदिन के 300 रुपए के हिसाब से रोजी मिलता है। साथ ही वह बर्तन चावल दाल साथ में लेकर चलते हैं। दलाल पीछे कार में आता है जो बीच-बीच में निगरानी करते हुए निकल जाते हैं।
भाजपा के मंडल अध्यक्ष परदेसी राम नाग ने कहा कि यहां विश्रामपुरी से होकर मवेशियों की जो तस्करी होती है। उस पर रोक लगाया जाना चाहिए यहां से प्रति बाजार सैकड़ों की तादाद में मवेशियों को ओडिशा की ओर बेचा जाता है।
पड़़ताल करेंगे-एसपी
पुलिस अधीक्षक कोंडागांव सिद्धार्थ तिवारी ने इस संबंध में कहा कि वे मामले की पड़ताल करेंगे तथा संबंधित थाना को सूचित की जाएगी।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
नगरी, 27 दिसंबर। पाँचवीं अनुसूचित क्षेत्र नगरी-सिहावा में राम वनगमन पथ रैली के दौरान प्रशासनिक आदेश के तहत ब्लॉक के सभी ग्राम पंचायतों से गांव की मिट्टी को जनपद कार्यालय नगरी में संग्रहित किया गया था।
सर्व आदिवासी समाज नगरी के अध्यक्ष उमेश देव ने बताया, चूंकि सिहावा क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य पाँचवी अनुसूचित क्षेत्र है पाँचवीं अनुसूचित का सार है कि इसके तहत आदिवासी संस्कृति, भाषा, जीवन शैली और अधिकारों को संविधान द्वारा राज्यपाल की निगरानी में संवैधानिक संरक्षण दिया गया है। वहीं आदिवासियों को उनकी रूढिग़त प्रथा परंपरा की संरक्षण हेतू संवैधानिक अधिकार प्राप्त है।
गांवों से मिट्टी बिना गायता, पुजारी, भूमियार, माँझी, मुखिया के बगैर मिट्टी उठाया जाना अनुसूचित क्षेत्र और रूढिग़त परंपरा के सरासर खिलाफ है इसी संदर्भ में 26 दिसम्बर को गोंडवाना भवन नगरी में बैठक के दौरान तहसील समाज ने संग्रहित मिट्टी को परंपरा अनुसार क्षेत्र के गढ़शीतला के समक्ष उक्त परिघटना को जानकारी देकर गढ़शीतला के आदेशानुसार समाधान निकालने हेतु अहम फैसला लिए। वहीं इस कार्य को विधिविधान पूर्वक संपन्न कराने के लिए 30 दिसंबर को सिहावा की गढ़शीतला के प्राँगण पर स्थान चयनित किया गया है।
तहसील सर्व आदिवासी समाज नगरी से उमेश देव, रामप्रसाद मरकाम, मनोज कुमार साक्षी, कुंदन सिंह साक्षी, छेदप्रसाद कौशिल, नरेश छेदैय्या,भावंत ध्रुव, शोभीराम नेताम, रामसिंह सामरत, सुरेन्द्र कुमार नेताम आदि को कमेटी माध्यम से तहसील सर्व आदिवासी समाज द्वारा निराकरण हेतु विशेष जिम्मेदारी दी गई है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
उदयपुर (सरगुजा), 27 दिसंबर। वन परिक्षेत्र उदयपुर अंतर्गत ग्राम खरसुरा में विगत दस दिनों से खेत मे रह रहे भालू के दो बच्चों को देखने के लिए शनिवार को पशु चिकित्सक डॉ. सी के मिश्रा, वन्य प्राणी विशेषज्ञ प्रभात दुबे, रेंजर सपना मुखर्जी गांव पहुंचे।
भालू के बच्चों को ठंड से बचाने के लिए पैरा की व्यवस्था की गई है तथा गड्ढे के ऊपर लकड़ी पत्ता डालकर झालानुमा झुरमुट बनाया जा रहा है। आसपास के कुछ एरिया को बेरिकेडिंग किया गया है, ताकि लोग भालू के बच्चों से दूर रहें।
अभी सूरजपुर और सरगुजा जिले के दूर-दूर से लोग इन भालू के बच्चों को देखने के लिए पहुंच रहे हैं जिससे लगातार जन हानि की आशंका भी बनी हुई है। लोगों को इस जगह से तथा भालू से दूर रहने की समझाइश वन अमले द्वारा लगातार दी जा रही है। वन विभाग का मैदानी अमला 24 घंटे शिफ्ट में इनकी निगरानी में लगा हुआ है।
मादा भालू सुबह से पहले इन बच्चों को छोडक़र जंगल की तरफ चली जाती है तथा देर शाम सूर्योदय पश्चात इन शावकों के पास वापस आती है। विगत दो दिनों से नर और मादा दोनों भालुओं को शाम व सुबह ग्रामीणों द्वारा देखा जा रहा है।
गांव के लोगों द्वारा शावकों को सुबह और शाम दूध पिलाने का काम वन अमला की निगरानी में किया जा रहा है। दूध की व्यवस्था रिखी गांव के समिति प्रबंधक गोपाल सिंह द्वारा की जा रही है। डाँडग़ांव सर्किल प्रभारी अरुण सिंह, बीट गार्ड विष्णु एवं वन विभाग के अन्य लोग भालू के शावकों की निगरानी में जुटे हुए हैं।