कांकेर
भानुप्रतापपुर का पूर्व वनमंडल बना प्रदेश का मॉडल मिनी फॉरेस्ट
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कांकेर, 30 अगस्त। जापान से निकली जंगल उगाने की मियावाकी तकनीक का भानुप्रतापपुर पूर्व वन मंडल में प्रयोग में लाया गया। पौधों की इस पद्धति से किए गए रोपण से भानुप्रतापपुर में केवल 11 महीनों में ही 125 सेंटीमीटर उंचा घना जंगल बनकर तैयार हो गया है।
.छत्तीसगढ़ में इस पद्धति का प्रयोग करने वाला भानुप्रतापपुर पूर्व वन मंडल पहला मॉडल मियावाकी मिनी फारेस्ट बना। एक साल के भीतर इसका जो परिणाम सामने आया, वह काफी कारगर साबित हो भविष्य के जंगल का रूप लेने लगा है।
पूर्व वन मंडल भानुप्रतापपुर में मियावाकी पद्धति तैयार किये गये मिनी फारेस्ट के सफल होने पर विभाग के अधिकारी ने जानकारी दी कि पूरे प्रदेश में उनका विभाग इकलौता है जिसने साल 2020 में इस पद्धति से सिर्फ 0.56 हेक्टेयर में कुल 30 प्रजाति के 11 हजार पौधे रोपे थे, जिसमें 95 फीसदी पौधे जि़ंदा हैं। पौधों की रोपण को सिर्फ 11 महीनों ही हुए हैं। उनकी ऊंचाई 125 सेंटीमीटर हो घना जंगल बन चुका है, जबकि सामान्य जंगल तैयार करने में लगभग 100 साल का वक्त लगता है।
मियावाकी रोपण आज देश के बड़े शहरों में प्रचलित हो रहा है। बैंगलुरु, हैदराबाद और मुंबई जैसे बड़े शहरों में इस तकनीक से बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण हो रहे है। यह रोपण परंपरागत वृक्षारोपण से 30 गुना ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है और धूल और ध्वनि प्रदूषण को 3000 गुना तक कम करता है। छोटे से क्षेत्र में किए गए रोपण से तुलनात्मक अधिक फायदे हंै, इस वजह से यह भविष्य का वृक्षारोपण बन सकता है। खासकर शहरों में जहां वृक्षारोपण के लिए जगह की किल्लत होती है और प्रदूषण बहुत ज्यादा होता है। इस तकनीक में पौधों को बहुत पास पास रखा जाता है।
वन विभाग के अधिकारी अंत में कहते हैं कि मियावाकी की कीमत परंपरागत वृक्षारोपण से 5-6 गुना ज्यादा जरूर है, पर पर्यावरण को छोटे से क्षेत्र में उससे भी कई गुना ज्यादा फायदे होंगे और जमीन भी बचेगी भविष्य में मियवाकी पद्धति से वृक्षारोपण वन विभाग का परंपरागत वृक्षारोपण का स्थान ले सकता है