रायगढ़
कब तक मूक दर्शक बना रहेगा प्रशासन
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायगढ़, 11 सितंबर। जिले के औद्योगिक क्षेत्र के ग्राम पंचायत सरईपाली निवासी रिखीलाल राठिया (45) की मौत सिलिकोसिस नामक जानलेवा बीमारी की वजह से हो गई। आम तौर पर लोगों को यह बीमारी उद्योगों द्वारा फैलाए जा रहे जानलेवा प्रदूषण से होती है।
ग्राम पंचायत सराईपाली में संचालित गोल्डन रिफैक्ट्री की वजह से सिलिकोसिस का मामला 2015 में ही प्रकाश में आया था। तब नीदरलैंड के डॉक्टर मुरलीधरण गांव में आकर सिलिकोसिस जांच के लिए यहां मेडिकल कैम्प लगाए थे। उस समय यहां 9 लोगों को सिलिकोसिस होना पाया गया था। जिसमें से 2 लोगों की मृत्यु तो पहले ही हो चुकी है और आज रिखी लाल राठिया नाम के 45 वर्षीय मरीज की मौत हो गई। रिखी लाल अपने पीछे 3 बच्चों एवं एक बूढ़ी मां को छोड़ गए है। ग्रामीणों की माने तो अंतिम सांस ली इससे पहले 2012 में रिखी लाल की धर्मपत्नी का देहांत गोल्डन रिफेक्ट्री कंपनी में काम करने के दौरान हो चुका है। वर्ष 2015 में डॉक्टर मुरलीधरन की जांच में रिखी लाल को सिलिकोसिस से ग्रसित होना पाया गया था। परंतु प्रशासन के इशारों पर रायगढ़ के मेडिकल कॉलेज द्वारा इन्हें टी वी बताकर एयरडॉट्स की दवा दी जा रही थी। डॉट्स की दवा खाने से उनकी हालत सुधरने के बजाए उल्टी बिगडऩे लगी थी। धीरे-धीरे उनका शरीर कमजोर होने लगा था।
शासन के बनाए नियमों के अनुसार इस घातक और जानलेवा बीमारी से पीडि़त मरीजों का इलाज और देख-रेख सरकार की निगरानी में जिले के स्वास्थ्य विभाग और गांव के आसपास स्थित स्वास्थ्य केंद्र की जिम्मेदारी होती है। ताकि मरीजों को समय पर यही दवाईयां मिलें और उनकी नियमति देख रेख व जांच भी होती रहे। परन्तु जिले में इस बिमारी को लेकर प्रशासन तनिक भी गम्भीर नजर नही आता है।
जिले में पर्यावर्णीय समस्याओं को लेकर लगातार काम कर रही संस्था जनचेतना के कार्यकर्ताओं की मानें तो रायगढ़ जिले में सिलिकोसिस मरीजों के साथ जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग प्रारम्भ से ही दोयम दर्जे का व्यवहार करता रहा है।
इस विषय में अंचल की सुविख्यात समाजिक कार्यकर्ता एवं जनचेतना की सदस्य सुश्री सविता रथ और राजेश त्रिपाठी ने बताया कि वे लोग 2015 से इस जानलेवा बीमारी के पीडि़तों के बीच लगातार काम कर रहे है। जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग इस मामले को अक्सर दबाने के प्रयास करता रहा है। हमारे प्रयास से डब्ल्यूएचओ की टीम ने यह 2015 में जांच की थी और 15 मरीजों की पहचान की थी। लेकिन प्रशासन ने उनकी पृथक जांच कर सिर्फ 5 सदस्यों को ही बीमारी से ग्रस्त बताकर बाकी को टीबी पेशेंट करार दिया था। लेकिन हमारे लगातार प्रयास से सरकार ने बीमारी की गम्भीरता से लिया और 3 मृतकों के परिजनों को 3 लाख पचास हजार की सहायता राशि प्रदान की गई। वही राज्य में सिलिकोशिस एक्ट (सिलिकोसिस को खान अधिनियम (डपदमे ।बज), 1952 और फैक्ट्री अधिनियम, 1948) लागू किया गया।
जबकि जिले के मरीजों की इलाज में बरती गई गम्भीर लापरवाही की वजह से 9 मरीजों में से 3 की असमय मौत हो गई है। मृत हुए व्यक्ति के सम्बन्ध में जब जन चेतना के सदस्य ने डाक्टर देवेंद्र देवांगन से बात की तो उन्होंने जानकारी देने के बजाए बड़ी बेशर्मी से यह कहा कि यहाँ कोई अमृत पी कर नही आया है जो आया है उसको जाना ही पड़ता है।
क्या है सिलिकोसिस बीमारी
सिलिकोसिस फेफड़ों से संबंधित रोग है। यह आमतौर पर ऐसी फैक्ट्रियों में काम करने वाले लोगों को होता है, जहां पर धूल में सिलिका पाया जाता है। सिलिका क्रिस्टल की आकृति के सूक्ष्म कण होते हैं, जो पत्थर व खनिजों के कणों में पाए जाते हैं।
यदि कोई व्यक्ति सिलिका युक्त धूल में सांस ले रहा है, तो धीरे-धीरे सिलिका उनके फेफड़ों में जमा होने लगता है। ऐसी स्थिति में फेफड़ों में स्कार बनने लग जाते हैं, जिससे सांस लेने में दिक्कत होने लग जाती है।