बीजापुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बीजापुर, 12 सितंबर। पेड़ो के बीच चांदनी रात में चांदी की तरह चमकदार पेड़ दिखे तो सिहरन सी दौड़ जाएगी। पर यह कोई और नहीं बल्कि औषधीय गुणों से पूर्ण कुल्लू नाम से जाना जाने वाला पेड़ है। इस पेड़ को वानस्पतिक नाम ईस्टर कुलिया यूरेन भी कहा जाता है।वही इस पेड़ को स्थानीय बोली गोंडी में पांडरुमराम भी कहा जाता है।
कोयाइटपाल निवासी लेकम मंगू बताते हैं कि पांडरूमराम की गोंद और बीज दोनों औषधी गुणों से भरपुर है। जिसके कारण इस पेड़ को कोई नही मारता। इसकी लकड़ी जलावन या इमारती जैसी कोई बात नही है। सिर्फ गोंद और बीज के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।
यह पेड़ चिकना और चमकीला होता है। जिसके कारण ब्रिटिशों ने इसका नामकरण अंग्रेजी मेम के टांगों से करते हुए इसे लेडी लेग का नाम दिया। यह दूधिया चांद में चमकदार दिखता है। इस लिए गोस्ट ट्री भी कहा गया है।
गंगालूर निवासी पवन हल्लुर बताते हैं कि स्थानीय मराठी में कोग्लाय के नाम से इसे जाना जाता है। इसका गोंद प्रसव के बाद मां को खिलाया जाता है। इसके बीज और गोंद दोनों औसधि गुणों से पूर्ण है।
बीजापुर वन मंडल के डीएफओ अशोक पटेल कहते हैं कि बीजापुर में कुल्लु के पेड़ छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक हैं। करीब तीन सौ से ज्यादा पेड़ बीजापुर वन मंडल क्षेत्र में मौजूद हैं। कुल्लु के गोंद पर सरकार ने समर्थन मूल्य भी जारी किया हुआ है। इस पेड़ की कटाई स्थानीय समुदाय द्वारा नही की जाती जिसके कारण आज भी यह संरक्षित है।टिश्यू कल्चर द्वारा इस पेड़ की संख्या बढ़ाये जाने के प्रयास छत्तीसगढ़ के कुछ स्थानों में की गई पर परिणाम उतने अच्छे नही मिले हैं।
अशोक पटेल बताते हैं कि बीजापुर के जंगलों में सर्वाधिक पाए जाने के कारण हमारी विशिष्ठ पहचान भी है। कुल्लु पेड़ों की संख्यात्माक रूप से छत्तीसगढ़ में हम पहले स्थान पर हैं।