कोरिया
कई हेक्टेयर भूमि तक सिंचित के लिए खेतों तक पहुंचने लगा है पानी
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बैकुंठपुर (कोरिया), 12 सितंबर। कोयला खदान होने के कारण भूजल काफी नीचे चला गया, वर्षों यहां लोग पीने के पानी के लिए तरसते रहे, वहीं नरवा विकास योजना के तहत फुलवारी नाले पर अलग अलग स्ट्रक्चर बना कर प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और संवर्धन का काम शुरू हुआ, भूमिगत जल में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई, नाले से 10 गांवो का भूमिगत जल रिचार्ज हो गया, जबकि कई हेक्टेयर भूमि को सिंचित के लिए पानी खेतों तक पहुंचने लगा है। नरवा के जरिए सिचाई सुविधाओं के विस्तार से किसानों की आजीविका सशक्त हो रही है और किसानों को खरीफ के साथ ही रबी फसलों के लिए भी पानी मिल रहा है। जिससे खेती-किसानी में मजबूती आ रही है। जिसमें मनरेगा के मजदूरों को रोजगार भी मिला और इस योजना से आसपास की जमीन का भूजल स्तर भी बढ़ रहा है।
इस संबंध में सरगुजा वनवृत के सीसीएफ अनुराग श्रीवास्तव का कहना है कि मैंने कोरिया वनमंडल के बैकुंठपुर परिक्षेत्र के आन्नदपुर में नरवा विकास का काम को करीब से देखा है, एक साल चले कार्य के बाद वहां की तस्वीर बदल गई है, भूमिगत जल रिचार्ज हुआ है। वहीं कोरिया वनमंडल के डीएफओ इमोतेंशु आओ का कहना है कि बीते एक वर्ष से नरवा विकास का कार्य आन्नदपुर में जारी है, पहले फेज में 2600 हेक्टेयर के इस क्षेत्र में एक नाले को रिचार्ज किया गया, अब छोटे बडे हर स्ट्रकचर पानी से लबालब है। पास रहने वाले सभी पंडोपरिवार के साथ क्षेत्र में अब पानी के नलकूप में भी आसानी से पानी निकल रहा है।
परिक्षेत्राधिकारी अखिलेश मिश्रा का कहना है कि कटगोडी में एसईसीएल की खदान होने के बाद भूजल काफी नीचे चला गया था, यहां पेयजल की सबसे बडी समस्या रही है, परन्तु बीते एक वर्ष से नरवा विकास योजना के तहत फूलवारी नाले पर कई स्ट्रेक्चर बनाए गए, और अब काफी मांत्रा में पानी भरा हुआ है, आसपास 10 ग्रामों के किसानों के लिए यह योजना सिंचाई के लिए वरदान से कम नहीं है।
छत्तीसगढ़ शासन की महत्वपूर्ण योजना नरवा, गरवा, घुरवा एवं बाड़ी योजनान्तर्गत नरवा कार्यक्रम किसानों के लिए कई मायनों में फायदेमंद साबित हो रही है। कल तक जो किसान वर्षा ऋतु के इंतजार में सिर्फ एक फसल ले पाते थे, ऐसे सभी किसानों के लिए नरवा योजना वरदान साबित हुई है। कोरिया जिले के कोरिया वनमंडल में राज्य की महत्वाकांक्षी नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी योजना के अंतर्गत कैम्पा योजना से भूजल संरक्षण मद अंतर्गत नरवा विकास कार्य के तहत बैकुंठपुर परिक्षेत्र के ग्राम आन्नदपुर के फुलवारी नाले को नरवा विकास योजना के लिए चुना गया।
फुलवारी नाले से आन्नदपुर, नवगई, कटगोडी, दुधनिया, केराझरिया, पहाडपारा के किसानों को सीधा लाभ मिल रहा है। यहां छोटे बड़े परकोलेशन टैंक, अर्दन डेम, चेकडेम, एनीकट का निर्माण करवाया गया। इसके बन जाने से 10 ग्रामों का भूमिगत जल अब पहले से काफी बेहतर हो चुका है। वन विभाग द्वारा परकोलेशन टैंक, अर्दन डेम, चेकडेम, एनीकट के पानी से सिंचाई कर नर्सरी में पौधे भी तैयार किए जा रहे हैं। दरअसल, बैकुंठपुर के परिक्षेत्र से लगा ग्राम कटगोडी में अंडरग्राउंड कोयले की खदान होने के कारण भूमिगत जल काफी नीचे जा चुका था, एक वर्ष पूर्व यहां नलकूप खनन करने पर पानी नहीं निकलता था। पूर्व वर्षा जल का संचय कर पाना मुश्किल था।
साथ ही वर्षा जल द्वारा मिट्टी कटाव एवं बहाव से वन क्षेत्र से लगे किसानों को बहुत नुकसान होता था। यहां बनाए गए 26 परकोलेशन टैंक, गैबियन, 1400 बोल्डर चेकडेम और 1200 थर्टी फोर्टी जिसमें छोटे छोटे खेत बनाकर उसके चारो ओर ग्रामीणों की आजीविका के साधन के तौर पर पेडों को लगाया गया। जिससे जेव विविधता भी बढ़ गयी। चेक डैम निर्माण से वर्षा जल का जल संग्रहण कार्य किया जा रहा है, साथ ही मिट्टी के कटाव में रोकथाम भी हो रही है। जल का उपयोग सिचाई कार्य में भी किया जा रहा है तथा मवेशियों के उपयोग एवं पर्यावरण संरक्षण भी किया जा रहा है। चेक डैम निर्माण से स्थानीय क्षेत्र में जल स्तर में वृद्धि भी हो रही है। चेक डैम के पास लगभग 15 किसानों की भूमि है जो कि वह कृषि कार्य करते है। चेक डैम निर्माण पूर्व जहां किसानों द्वारा एक फसल लेना मुश्किल था, जो डैम बनने के बाद खरीफ एवं रवि दोनों फसल ले रहे है। जिससे किसानों की आर्थिक एवं सामाजिक विकास हो रहा है। इन दिनों चेक डैम के पास स्थित कृषि भूमि हितग्राहियों द्वारा धान की खेती की हैं इसके अलावा टमाटर, लौकी जैसी मौसमी सब्जियों को बरबट्टी, करेला, मिर्ची, अदरक, भिंडी जैसे उद्यानिकी फसलों का भी उत्पादन किया जा रहा है।
संभाग की सबसे बड़ी है नर्सरी
कोरिया वन मंडल के बैकुंठपुर परिक्षेत्र के आन्नदपुर में सरगुजा संभाग की सबसे बडी नर्सरी यहां स्थापित की गई है, यहां एकसाथ 15 लाख पौधे तैयार किए जा सकते है, फुलवारी नाले से लगे आन्नदपुर के वन क्षेत्रों के नालों में भू-जल संरक्षण कार्य के लिए लूज बोल्डर चेकडेम, बोल्डर चेकडेम, ब्रशवुड चेकडेम, कंटूर ट्रेंच, परकोलेशन टैंक, अर्दन डेम, चेकडेम, एनीकट, स्टापडेम तथा गेबियन आदि संरचनाओं का काफी तादाद में निर्माण किया गया। इससे एक ओर वन भूमि के क्षरण पर रोक लगी वहीं दूसरी ओर जल भंडार में वृद्धि की जा सकेगी। वन क्षेत्रों में जल भंडार की पर्याप्त उपलब्धता से वन्य जीवों को उनके रहवास क्षेत्र में ही चारा-पानी उपलब्ध होने लगा जिससे वे आबादी क्षेत्रों की ओर आकर्षित नहीं होंगे। इसके साथ ही वनों के आसपास के ग्रामीणों तथा कृषकों को पेयजल तथा सिंचाई के साधन विकसित करने में मदद मिलने लगी।