गरियाबंद

गलती को महसूस न करना उससे भी भारी गलती-नारायण भाई
13-Sep-2021 10:37 PM
 गलती को महसूस न करना उससे भी भारी गलती-नारायण भाई

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

नवापारा-राजिम, 13 सितंबर। ब्रह्मा कुमार नारायण भाई ने  कहा कि हम सभी से जाने-अनजाने में ना जाने कितनी गलतियाँ होती हैं किन्तु गलती का एहसास होना अर्थात अपने गलत कर्म का भान होना और गलती के लिए माफी मांग लेना,उस गलती के बोझ को समाप्त कर देता है। गलती होना वास्तव में गलती तो है पर इतनी बड़ी नही,परन्तु अपनी गलती को महसूस ना करना यह उससे भी भारी गलती है।

प्रतिदिन अपनी गलती के लिए क्षमा मांग कर और दूसरों की गलती के लिए क्षमा दे कर मन को खाली अवश्य कर लीजिये तभी शान्ति के सागर परमात्मा की शान्ति की किरणे अन्दर प्रवेश करेगी। यह विचार इंदौर से पधारे जीवन जीने की कला के प्रणेता ब्रह्मा कुमार नारायण भाई ने ओमशान्ति कॉलोनी  में स्थित ब्रहमा कुमारी सभागृह में ईश्वर से शांति प्यार कैसे प्राप्त करें? इस विषय पर नगर वासियों को संबोधित करते हुए बताया।

इस अवसर पर सेवा केंद्र  संचालिका ब्रहमा कुमारीपुष्पा बहन ने जीवघात महापाप है इस विषय पर संबोधित करते हुए बताया कि जीवघात करना अर्थात परिस्तिथियों से मुख मोडऩा। जीवघात करने से शरीर तो छूट जाता है परन्तु हिसाब-किताब आत्मा में ज्यों का त्यों बना रहता है। आत्मा जहाँ भी जाए,कर्मो के बंधन,संस्कारों के बंधन उसके साथ ही रहते हैं।अतरूपरिस्तिथियो से मुख मोड़ कर जीवघात करना बहादुरी नही कमजोरी है। जीवघात होते ही आत्मा सूक्ष्म शरीर के साथ,स्थूल शरीर से अलग हो जाती है।वह खुद के मृत शरीर को देख पश्चाताप करती है परन्तु तब तक शरीर की नस,नाड़ी सब जवाब दे चुके होते हैं इसलिए शरीर में दोबारा प्रवेश करने में असफल रहती है।अपने मन में दबे रहस्य अपने परिवार जनों को बताना चाहती है लेकिन उसकी बात कोई नही सुन पाता।कितनी बेबस हो जाती है आत्मा उससे भी कई गुणा ज्यादा तडफ़ आत्मा को अपने ही शरीर को जलते देख कर होती है।

 रोते-बिलखते परिजनों को सांत्वना देने का प्रयास तथा उनसे बात करने की कोशिश करती है परन्तु सूक्ष्म शरीर में होने के कारण कोई उसे देख व सुन नही पाता।

अपनी उपस्तिथि का एहसास दिलाने के लिए कई बार किसी वस्तु की उठा-पटक भी करती है परन्तु  परिवार वाले उसे भूत-प्रेत समझ उस से किनारा करतें हैं। जो व्यक्ति कल तक परिवार में अहम था।आज जब शरीर छोड़ दिया तो सबका पराया हो गया।शरीर दफन के साथ ही सारे रिश्ते-नाते खत्म।और तो और तांत्रिको द्वारा घर में शुद्धि कराई जाती है ताकि वो किसी भी स्तिथि में घर में प्रवेश ना कर सके।अपनों का ऐसा सोतेला व्यवहार देख आत्मा अति दु:ख,पीड़ा और बेचौनी का अनुभव करती है। सारांश  जीवन प्रभु का दिया हुआ एक सुंदर उपहार है उसे प्रभु की अमानत समझ सुंदर ढंग से जीने का प्रयासकीजिए।जीवघात करना या सोचना प्रभु की अमानत में खयानत करना है।

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