कोण्डागांव

बुधवार को खुलेगा माता लिंगेश्वरी गुफा मंदिर का द्वार
13-Sep-2021 11:14 PM
बुधवार को खुलेगा माता लिंगेश्वरी गुफा मंदिर का द्वार

इस वर्ष भी श्रद्धालुओं पर प्रतिबंध

प्रकाश नाग

केशकाल, 13 सितंबर (‘छत्तीसगढ़’)। लिंगेश्वरी देवी के दर्शन साल में एक बार ही होता है, जो हर वर्ष भादो माह के शुक्ल पक्ष की नवमीं तिथि के बाद आने वाले बुधवार को देवी के पट खुलते हैं। इस वर्ष भी 15 सितंबर दिन बुधवार को ही पट खुलेगा, लेकिन इस बार भी समिति के सदस्यों द्वारा कड़ी पाबंदी लगाते हुए श्रद्धालुओं को दर्शन करने नहीं दिया जाएगा, साथ ही मंदिर के नीचे लगने वाली मेला भी नहीं लगेगा। पिछले वर्ष भी कोरोनाकाल के चलते लोगों को दर्शन करने नहीं मिला था, समिति के सदस्यों के द्वारा पूजा अर्चना करने उपरांत फिर से बंद किया गया था ।

   कोंडागांव जिला अंतर्गत फरसगांव ब्लॉक से 10 किमी दूर ग्राम आलोर झाटीबन है, जहां माता लिंगेश्वरी माई की गुफा है। मंदिर समिति के सदस्यों ने बताया कि इस वर्ष 15 सितंबर दिन बुधवार को मंदिर के पट को खोला जाएगा, फिर समिति के सदस्यों के द्वारा पूजा-अर्चना उपरांत पुन: बंद कर दिया जाएगा। कोरोना की तीसरी लहर को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है। समिति के सदस्यों का कहना है कि जिनकी भी मन्नत हो और माता रानी के दर्शन करने का इच्छुक हो, वे सब घर पर ही माता रानी का ध्यान कर उनके नाम पर फूल-चावल अपने द्वार पर रख देवे, जिससे माता रानी सभी भक्तों का मनोकामना पूरी करेगी।

 जानकारों ने बताया कि कई वर्ष पूर्व एक ग्रामीण को सपना आया था। उसने सपने की बात गांव वालों को बताई और उसी आधार पर खोज की गई, तब गांव के पास में ही पत्थरों के बीच गुफा मंदिर मिला, जैसा उसने सपने में देखा था। गुफा मंदिर-देवी का स्थल पूर्णता प्राकृतिक है। पहाड़ी के ऊपर एक विशाल चट्टान है। इस चट्टान के ऊपर दो पत्थर आपस में टीका हुआ है, उसके नीचे प्रवेश द्वार है जहां लेट कर, बैठ कर आगे जाना पड़ता है, जिसमें 20 से 25 लोग आराम से बैठ सकते हैं, यहीं पर माता लिंगेश्वरी विराज रहती है। ग्राम आलोर झाटीबन के मंदिर समिति सदस्यों के द्वारा साल में एक बार जब द्वार खुलता है, तभी देवी की पूजा-अर्चना होती है।

इस मंदिर में पशु बलि या शराब अर्पण वर्जित है। निसंतान दंपत्ति मनोकामना के लिए देवी के समक्ष उपस्थित होते हैं, जिन्हें पूजा करने के बाद पुजारी प्रसाद के रूप में एक खीरा देता है। खीरा को दंपत्ति अपने नाखून से चीरा लगाकर दो हिस्सों में बांटते हैं। खीरे के प्रसाद को मंदिर में ही ग्रहण किया जाता है। मनोकामना की पूर्ति होने के बाद दंपत्ति यहां दर्शन करने के लिए पुन: आते हैं। हर वर्ष केवल एक ही दिन देवी दर्शन होता है और पूजा-अर्चना के बाद शाम को पुन: पत्थरों से बंद कर दिया जाता है।

 समिति सदस्यों ने बताया कि जब सुबह पट को खोलते हैं, तो सर्वप्रथम सुरंग मार्ग पर बिछी रेत पर पड़े निशान से भविष्य का अनुमान लगाए जाने की परंपरा है। पंच यहां पर पड़े निशान को देखते हैं और लोगों को इसका हाल बताते हैं। रेत पर कमल निशान मिलने पर धन संपत्ति में वृद्धि, हाथी के पांव के निशान से धन धान्य, घोड़े के खुर के निशान मिलने पर कलह और युद्ध, बाघ के पंजों की आकृति मिलने पर जंगली जानवरों का आतंक, बिल्ली के पंजे की छाप मिलने पर भय, मुर्गी के पंजे के निशान मिलने पर अकाल आने की आशंका बताई जाती है। प्रकृति, पर्यटन-बस्तर का सुदूर अंचल अपनी अलौकिक प्राकृतिक छटा लिए हुए है, जहां अपने साधन से ही आने पर वर्ष भर प्रकृति का आनंद लिया जा सकता है। पिछले वर्ष भी मंदिर में हाथी और शेर का निशान दिखाई दिया था ।

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