रायपुर

चिकित्सा देयकों पर आपत्ति लगाकर रोके जाने से कर्मचारी खफा
16-Sep-2021 5:56 PM
चिकित्सा देयकों पर आपत्ति लगाकर रोके जाने से कर्मचारी खफा

स्वास्थ्य अफसरों पर लगाम कसने सीएम-स्वास्थ्य मंत्री से संघ की मांग

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

रायपुर, 16 सितंबर। चिकित्सा देयकों में गैर जरूरी आपत्ति लगाकर रोकने पर कर्मचारियों में गुस्सा है। बताया गया कि हजारों की संख्या में कर्मचारी विशेषकर कोरोना से पीडि़त रहे हैं, और काफी इलाज के बाद ठीक हुए हैं। मगर इन कर्मचारियों को नियमानुसार चिकित्सा देयक हासिल करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। तृतीय वर्ग सरकारी संघ ने देयक प्रकरण का निराकरण करने वाले स्वास्थ्य विभाग के अफसरों पर लगाम कसने पर जोर दिया है। साथ ही केन्द्रीय कर्मचारियों की तरह चिकित्सा भत्ता देने की मांग मुख्यमंत्री से की है।

कोरोना की पहली, और दूसरी लहर में पांच सौ से अधिक सरकारी कर्मचारियों की मौत हुई थी, और हजारों की संख्या में पीडि़त रहे। मगर प्रदेश के जिलों में पदस्थ अधिकारियों कर्मचारियों के चिकित्सा देयकों में कर्मचारियों को अनावश्यक आपत्ति लगाकर परेशान किया जा रहा है। बीमार, मृत कर्मचारियों के परिजन, कोरोना में कराए गए इलाज के चिकित्सा देयकों को 3-4 कार्यालयों में चक्कर लगवाने, अनावश्यक आपत्तियां लगाकर लौटाने तथा कुल चिकित्सा देयक में से 30-40 फीसदी राशि की कटौती करने जैसी कार्यवाही कर कर्मचारियों को परेशान किए जाने संबंधी दस्तावेजी प्रमाण कर्मचारी संगठनों के पास है।

 संघ के प्रदेश अध्यक्ष विजय कुमार झा, और जिला शाखा अध्यक्ष इदरीश खॅान ने बताया कि अंत: रोगी एवं बाह्य रोगी के देयक अलग-अलग मांगा जा रहा है। इसी प्रकार कोई कर्मचारी आंख का आपरेशन कराया जो मात्र एक घंटे में आपरेशन सम्पन्न हो जाता है, उसके देयक में भर्ती होने व चिकित्सालय से छुट्टी होने का प्रमाण पत्र मांगा जाता है। एक कर्मचारी के दो बिल बनाये जाने का निर्देश देते हुए आपत्ति लगाए जा रहे है। यदि प्रस्तुत देयक 25 हजार से कम होने की स्थिति में जिला चिकित्सालय में पारित कराने तथा उससे ज्यादा होने पर भी पहले जिला चिकित्सालय उसके बाद 25 हजार से ज्यादा देयक होने के कारण संचालनालय से स्वीकृति कराने का चक्कर कटवाया जाता है।

इसमें भी इलाज में हुए वास्तविक खर्च का 30 से 40 प्रतिशत् राशि को कटौती कर स्वास्थ विभाग देयक पारित करता है। उसके बाद विभागीय औपचारिकता व कोषालय में देयक जमा करने व स्वीकृत कराने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। अंत में जब संपूर्ण प्रक्रिया से गुजर जाता है, तब आबंटन का रोना रोया जाता है। कर्मचारी के पत्नी को उस पर आश्रित होने का लज्जाजनक शपथपत्र तथा कितने बच्चे है, उसका जन्म तारीख तक मांगा जाकर बच्चे के जन्म का क्रम संख्या भी मांगते हुए कुल बच्चों की संख्या भी मांगी जा रही है। इतनी औपचारिकता से गुजरने पर तालिबान में भी चिकित्सा देयक पारित हो जावेगा।

कर्मचारी नेताओं ने बताया कि चिकित्सा देयक का निर्धारित प्रारूप नियम 8 (1) है जिसमें देयक तैयार किया जाता है। उस देयक को जिला चिकित्सालय द्वारा पारित भी किया जा रहा है, किंतु उसे संचालनालय में आपत्ति दर्ज कर अंत: रोगी, बाह्य रोगी, भर्ती व छुट्टी की जानकारी मांगकर कर्मचारी पर अप्रत्यक्ष रूप से अनेक शंकाऐं एवं फर्जी बिल बनाने का संदेह स्वास्थ विभाग व्यक्त करता है। वहीं संघ के पास अनेक दस्तावेजी साक्ष्य है, जिसमें बड़े अधिकारियों के 5-10 लाख तक, और उससे अधिक राशि भी तत्काल पारित किए जा रहे है।

 इसलिए चिकित्सा देयक केवल जिला चिकित्सालय से परीक्षण कराने तद्पश्चात् स्वयं विभाग द्वारा स्वीकृत किए जाने की व्यवस्था बनाने हेतु चिकित्सा प्रतिपूर्ति नियम में आवश्यक संशोधन करने की मांग संघ के कार्यकारी प्रांतीय अध्यक्ष अजय तिवारी, महामंत्री उमेश मुदलियार,संभागीय अध्यक्ष संजय शर्मा, प्रांतीय संयोजक विमल चन्द्र कुण्डू, प्रांतीय सचिव सुरेन्द्र त्रिपाठी, आलोक जाधव, रामचन्द्र ताण्डी, नरेश वाढ़ेर, सुंदर यादव, राजेन्द्र उमाठे, जॉन सी पॉल, शंकर लाल सावरकर, श्रीकांत मिश्रा, प्रदीप उपाध्याय, एस.पी.यदु, प्रांतीय सचिव मनोहर लोचन, एजेनायक, राजकुमार देशलहरे, अमरेन्द्र झा, पिताम्बर ठाकुर, डॉ. अरूंधति परिहार, एसकेसोनी, आदि नेताओं ने की है। कर्मचारी नेताओं ने आरोप लगाया है, जो विभाग करोड़ों की योजनाओं को अमलीजामा पहनाती है, वह अपने स्वयं के कर्मचारियों के हजारों या लाख रूपए का चिकित्सा देयक क्यों पारित नहीं कर सकता।

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