दुर्ग
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
उतई, 25 सितंबर। हमारी खानपान की आदतों व नियमित दिनचर्या के अभाव में शहरों के साथ साथ ग्रामीण क्षेत्रो में भी लोग कई प्रकार की बीमारियों से ग्रसित होते जा रहे है। आज़ के समय में खाद्य पदार्थों में अत्यधिक रसायनिक खाद आदि के प्रयोग के कारण भी मनुष्य कई खतरनाक बीमारियों से जूझ रहा हैं, ऐसे में हमें आवश्यकता है कि हम अपने खाने के सही व्यवहार और सही खाद्य पदार्थों का चयन अपने भोजन में करे।
राष्ट्रीय पोषण माह के तहत एकीकृत बाल विकास परियोजना दुर्ग ग्रामीण द्वारा *मिलेट जागरूकता वेबीनारका आयोजनविगत दिनों किया गया। वेबीनार का उद्देश्य बताते हुए अजय कुमार साहू बाल विकास परियोजना अधिकारी दुर्ग ग्रामीण ने कहा कि कुपोषण व शरीर मे खून की कमी का बड़ा कारण हमारी अनियमित जीवन शैली व असंतुलित खान पान है जिससे कारण हमारे शरीर मे रोग प्रतिरोधक क्षमता कम तो हो ही रही बल्कि शरीर कई प्रकार के रोग व अवसाद से ग्रसित हो रहा है । वर्तमान परिस्थितियों में खान पान की कमी नही है लेकिन सही समझ व जानकारी नही होने से हम सभी अपने आप को बीमार करते जा रहे है । वेबीनार में अतिथि वक्ता श्री बिहारी लाल कुशवाहा जी द्वारा मिलेट् की खेती जिसमे रागी ,कोदो ,कुटकी ,ज्वार ,बाजरा शामिल होता है का उत्पादन कैसे और कब किया जा सकता है साथ ही किचन गार्डन में जैविक खेती के प्रयोग से जहर से मुक्त सब्जी व फल लगाए जाने के संबंध में बताया कि कम से कम 250 से 300 वर्ग फीट के एरिया में 5 से 6 व्यक्तियों के लिए अच्छे से मौसमी और पसंदीदा फल सब्जियां आदि लगा सकते हैं बताया, इसके लिए मिट्टी को वर्मी कंपोस्ट मिलाकर तैयार करने , बीजों को बोने आदि के बारे में जानकारी दी। फलों सब्जियों को कीड़े आदि से बचाने के लिए घर पर ही नीम या सरसो खली बनाने बताया, साथ ही विभिन्न 10प्रकार की पत्तियों से, जिसे गाय नहीं खाती उसे प्रोसेस कर ऑर्गेनिक अर्क तैयार करने के बारे मे महत्वपूर्ण जानकारी दी। हरी मिर्च, अदरक और हल्दी पाउडर मिलाकर भी अर्क तैयार करना बताया जिससे फलों सब्जियों को ऑर्गेनिक तरीके से कीटो से बचाया जा सके। वेबीनार में कृषि अनुसंधान केन्द्र अंजोरा से श्रीमती निशा शर्मा ने "मिलेट्स के पोषक तत्व और मूल्य संवर्धित उत्पाद" पर चर्चा करते हुए बताया कि मिलेट्स परम्परागत लघु अनाज हैं, जिनका विभिन्न खाद्य पदार्थ के रूप में हमारे बड़े बुजुर्ग किया करते थे और हमेशा स्वस्थ रहते थे, परन्तु धीरे धीरे इन्हे छोटे मोटे अनाज कहकर इसे हमने अपने भोजन में शामिल करना लगभग बंद कर दिया था, परंतु अब ये सभी पोषक अनाज की श्रेणी में शामिल हो गए हैं, जैसे जैसे इसकी उपयोगिता समझ आ रही है इसका उपयोग बढऩे लगा है। कई गंभीर बीमारियों से ग्रसित व्यक्तियों चिकित्सकीय सलाह पर मिलेट से बना डाइट ले रहे हैं। सभी मिलेट डाइटरी फाइबर से भरपूर होते हैं, जिससे हमारी पाचन संबंधी क्रिया मजबूत बनती है। मिलेट में भरपूर मात्रा में कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन, जिंक और प्रोटीन से युक्त होता है। रागी जिसका रेडी टू ईट में भी उपयोग होता है, उसमें बहुत अधिक मात्रा में प्रोटीन होता है, जो हमारे बच्चो, शिशुवती एवम गर्भवती माताओं के लिए बहुत उपयोगी है। ज्वार में पाया जाने वाला कार्बोहाइड्रेट शरीर को अत्यधिक ऊर्जा देता है। ज्वार बाजरा, जौ , रागी इनसे विभिन्न व्यंजन जैसे बाजरे की रोटी, खिचड़ी, ज्वार का पेय राब , रागी जौ का लड्डू , बिस्किट, चाकोली, कोदो कुटकी का पुलाव , खीर, हलवा आदि पौष्टिक व्यंजन बनाया जाता है। जो की कुपोषण व एनीमिया को दूर करने में सहायक है ।सभी मिलेट में विभिन्न अमीनो एसिड होता है, इनसे बने खाद्य पदार्थों में वसा की कमी होती है जिससे मोटापा को भी बहुत हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
कोलेस्ट्रॉल और शुगर के स्तर को नियंत्रित रखता है, रक्त संचार बेहतर होता है, इसके सेवन से शरीर में प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। मिलेट खाद्य पदार्थ एंटी बैक्टिरियल, एंटी डिप्रेशन और इनमे ऐसे रसायनिक तत्व होते हैं जो कैंसर जैसी बीमारी होने की आशंका को कम करता है। इसीलिए हमें ज्यादा से ज्यादा इसका प्रचार करना है और छत्तीसगढ जहां मुख्य रूप से चावल ही खाया जाता है, वहा इन खाद्य पदार्थों को पूरक आहार के रूप में शामिल करने की आवश्यकता है। इस आभियान से हम काफी हद तक छत्तीसगढ से कुपोषण और एनीमिया में निश्चित ही कमी ला सकते है। इस वेबिनार से सभी पर्यवेक्षक, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता , किसान साथी तथा गर्भवती व समूह की महिलाएं सभी 72 पंचायत के ग्रामीण जन ने भाग लेकर जागरूकता का परिचय दिया ।