महासमुन्द

महिलाओं ने विधायक से मांगे अधिकार
12-Oct-2021 6:21 PM
महिलाओं ने विधायक से मांगे अधिकार

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
पिथौरा, 12 अक्टूबर।
दलित आदिवासी मंच द्वारा विश्व महिला किसान दिवस 10 अक्टूबर  को सुखीपाली ब्लाक पिथौरा जिला महासमुन्द में मनाया गया। कार्यक्रम में हजारों की संख्या में महिला पुरुषों ने इस कार्यक्रम में शामिल हुए। इस कार्यक्रम को प्रत्येक गांव से चुने हुए महिला नेत्रीयों द्वारा संबोधित किया गया।

मंच द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार इस कार्यक्रम में महिलाओं ने खुलकर अपनी बात रखी।महिला वक्ताओं ने कहा कि हम महिलाएं 90 प्रतिशत खेती किसानी में काम करते है। वनोपज संग्रह करना एवं बेचने का काम करते है जड़ी बुटी औषधियों का जंगल से आहरण करती है। लेकिन न हमें किसान का दर्जा दिया जाता है और न हमें महिला वैद्य का दर्जा दिया जाता है। वनाधिकार कानून बने 15 साल हो गये आज भी हम वनाधिकार कानून से वंचित है। सामुदायिक वनाधिकार तो आज तक किसी गांव में पहल ही नही हुआ है। जहां तक हम लोग निस्तारी करते है। आज वन विभाग व्दारा पूरा घेराबंदी हो चुका है।एक तरफ सरकार कानून बनाती है। पारम्परिक रूप से वनों में निवासरत लोगों का वनाधिकार कानून के तहत मान्यता प्राप्त करने की देश में यह पहला कानून है जो महिला पुरुष को समान दर्जा देते हुए महिला पुरुष दोनो के नाम पर वनाधिकार पत्र जारी करता है।

दलित आदिवासी मंच की संयोजिका राजिम केतवास ने कहा कि सरकार तो कानून बना देती है और यह भी महसूस करती है कि वनो में रहने वाले पारम्परीक रूप से जीवन बीताने वाले लोगों के साथ अन्याय हुआ है उस अन्याय को सुधारने के लिए यह कानून बनाया गया है लेकिन धरातल पर उस कानून को अमल नहीं किया जा रहा है। ।

कार्यक्रम में बसना विधानसभा के विधायक देवेन्द्र बहादुर सिंह अध्यक्ष छत्तीसगढ़ वन विकास निगम भी उपस्थित थे।
कर्यक्रम के दौरान महिला वक्ताओं ने विधायक के समक्ष अपने अधिकार मांगते हुए कहा कि वनाधिकार कानून मान्यता पत्र में महिलाओं का नाम पहले लिखा जाये। वनाधिकार मान्यता अधिनियम में जो दावे महिलाओं के नाम पर हुए है उन्हें शीघ्र मंजूर किया जाये। वनोपज उत्पादनों के राज्य संघ व्दारा पुन: मूल्य में बढ़ोतरी किया जाए , जिला स्तरीय समिति व्दारा निस्त दावो को पुन: समीक्षा किया जाए एवं प्रत्येक पंचायत में नोटिस निकालकर विशेष ग्राम सभा कर पुन दावा भराया जाए। सरकार व्दारा समय समय पर वनाधिकार कमेटी एवं प्रशासनीक स्तर प्रशिक्षण कर वनाधिकार कानून की बारिकी को समझाया जाए या प्रशिक्षण आयोजित करें, गांव स्तर पर निस्तारी को ध्यान देते हुए सामुदायिक वनाधिकार पर विशेष पहल किया जाए ।
 

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