महासमुन्द
ऑस्ट्रेलिया सरकार ने पेटेंट कराया है
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 26 अक्टूबर। एक छोटे क्षेत्र का मानसून फ ोरकॉस्ट करने के लिए एक मॉडल बनाम सिस्टम का निर्माण महासमुंद निवासी डॉ.संजीव कर्माकर ने किया है। इसके लिए उसे 11 साल लगे। इन सालों में उन्होंने तगड़ी मेहनत से एक सक्सेसफुल मॉडल तैयार किया है, जिसे ऑस्ट्रेलिया की गर्वनमेंट ने पेटेंट कराया है।
डॉ. संजीव के मुताबिक इनमका यह मॉडल भारतीय मौसम विभाग क्लाइमेट फ ोर कॉस्टिंग सिस्टम-2 से मानसून की फोरकॉस्टिंग करता है, जो पूरे देश के लिए होता है। डॉ. संजीव का दावा है कि यह दुनिया का पहला मॉडल है, जिसमें एस्ट्रोलॉजी का उपयोग हुआ है। इसमें एस्ट्रोलॉजी को आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क से हाइब्रिड किया गया है, जो रैनफॉल के साथ-साथ नदियों के पानी के बहाव के बारे में पहले से ही अनुमान लगा लेगा।
डॉ. संजीव कर्माकर अपने इस मॉडल पर 27 अक्टूबर को डिपार्टमेंट ऑफ साइंड एंड टेक्नोलॉजी को प्रेजेंटेशन देंगे। इसका लाइव प्रसारण पूरे देश में होगा। इस प्रोजेक्ट के लिए डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी छग द्वारा 7 लाख रुपए की फंडिंग हुई थी। डॉ. संजीव कर्माकर इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ इंजीनियर्स, इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ हाइड्रोलॉजिकल साइंसेस यूएसए, इंडियन सोसाइटी ऑफ सॉइल सर्वे लैंड यूज प्लानिंग इंडिया के गर्वनिंग मेंबर हैं और भारतीय मौसम विभाग से एसोसिएटेड भी हैं।
डॉ. कर्माकर कहते हैं-एक विशेष और छोटे क्षेत्र के मानसून का सक्सेसफुल फोरकॉस्ट करना मुश्किल होता है। इसलिए मंैने इस रिसर्च में इतने लंबे साल तक काम किया। इसके तहत एस्ट्रो न्यूरोमैटियोरोलॉजिकल सिस्टम तैयार किया। इस मॉडल से 20 साल के ग्रह-नक्षत्र की दशा-दिशा का गहन अध्ययन किया गया। एस्ट्रोलॉजिकल इंफॉरमेशंस को न्यूरल नेटवर्क से प्रोसेस कर इसे तैयार किया। जिसकी टेस्टिंग भी हुई और 95 फीसदी रिजल्ट हासिल हुआ।
डॉ.संजीव बताते हैं-इस सिस्टम के माध्यम से मानसून से पहले ही किसी नदी, जैसे महानदी का पानी मानसून सीजन में ओडिशा तक कितना पानी जाएगा, यह अनुमान लगा लिया जाएगा। छग और ओडिशा में इसके पानी को लेकर विवाद है। यदि हम पहले ही अनुमान लगा लें कि महानदी रिवर बेसिन में इस मानसून में इतना पानी ओडिशा जाएगा, तो इसमें जितनी जरूरत ओडिशा को है, उतना उन्हें मिल जाएगा और छग को भी जरूरत का पानी मिल जाएगा। साथ ही एक छोटे क्षेत्र के एग्रीकल्चर, इरीगेशन, लैंडयूज प्लानिंग में भी सहायता मिलेगी।
गौरतलब है कि डॉ. संजीव कर्माकर के नाम भारत सरकार द्वारा 10 सॉफ्टवेयर कॉपीराइट हैं। साथ ही इसी विषय पर 30 से ज्यादा शोधपत्र प्रकाशित हुए हैं। दो किताब विदेशों में पब्लिश हुई है और इसी विषय पर डॉ. कर्माकर के 2 पीएचडी स्कॉलर ने रिसर्च किया है। वे बीआईटी दुर्ग में कार्यरत हैं।
यह उपलब्धि हासिल करने वाले डॉ. संजीव कर्माकर महासमुंद के अयोध्या नगर निवासी हैं। वे 2007 से इस क्षेत्र में रिसर्च कर रहे हैं। उन्हें 2007 में छग सरकार द्वारा आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क मॉड्यूलिंग रेनफॉल फोरकॉस्टिंग ओवर स्मॉलर रीजन विषय पर रिसर्च के लिए यंग साइंटिस्ट का अवार्ड दिया गया। 2010 में सीएसवीटीयू से इसी सब्जेक्ट पर पीएचडी की उपाधि हासिल की। डॉ. कर्माकर अपने रिसर्च में लगे रहे और अब जाकर मेहनत रंग लाई है। इस मैथड को इसी साल आस्ट्रेलिया की सरकार ने पेटेंट करवाया है।