महासमुन्द
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
पिथौरा, 1 दिसंबर। जिले के सबसे पुराने स्कूल रणजीत कृषि उच्चतर माध्यमिक शाला का नाम विलोपित करने के सरकारी प्रस्ताव पर आदिवासी समाज ने नाराजगी व्यक्त करते हुए इसे पूर्ववत रखने का आग्रह किया है। समाज प्रमुखों ने चेतावनी दी है कि नाम विलोपित करने के सरकारी प्रयास नहींं रुके तो आंदोलन किया जाएगा।
उक्त संबंध में अखिल भारतीय अमात्य गोंड समाज कौडिय़ा राज पिथौरा के अध्यक्ष भूषण सिंह सूर्यवशी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिखकर पूरे मामले की जानकारी दी है। श्री सूर्यवंशी ने अपने पत्र में मुख्यमंत्री को अंग्रेजी माध्यम स्कूल खुलने की बधाई देते हुए राजा रणजीत सिंह का नाम विलोपित करने को आदिवासी समाज सहित समस्त कौडिय़ा राज निवासियों का अपमान बताया।
ज्ञात हो कि विकासखंड मुख्यालय पिथौरा में अंग्रेजी माध्यम स्कूल स्वामी आत्मानन्द अंग्रेजी माध्यम स्कूल 62 वर्ष पुरानी शासकीय रणजीत कृषि उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पिथौरा के नये भवन में संचालित होने लगा है। समाज के अध्यक्ष बी एस सूर्यवंशी ने बताया कि 22 सितंबर को पता चला कि छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मण्डल रायपुर के पोर्टल में शासकीय रणजीत कृषि उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के स्थान पर स्वामी आत्मानन्द हिन्दी माध्यम/अंग्रेजी माध्यम स्कूल दिख रहा है। इसकी जानकारी पिथौरा क्षेत्र में फैलते ही क्षेत्र के लोगों सहित खासकर आदिवासियों में यह खबर स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने वाली लगी। आदिवासी समाज यह समझ रहा है कि हमारे राजा का नाम व स्कूल का इतिहास मिटाने सरकार का यह षडय़ंत्र हो सकता है। जिससे आदिवासी समाज मे सरकार के विरुद्ध नाराजगी दिखाई देने लगी। समाज के वरिष्ठ जनों के अनुसार पिथौरा क्षेत्र की 9 सूत्रीय मांग पर सरकार ने पहले ही चुप्पी साध रखी है और ऊपर से हमारे आस्था के प्रतीक राजा रणजीत सिंह के नाम को विलोपित करना सरकार की गलत मानसिकता है।
स्कूल से कौडिय़ा जमींदार का, नाम विलोपित करना उचित नहीं
नगर के वरिष्ठजन बताते है कि रणजीत कृषि उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की संक्षिप्त जानकारी यह है कि पिथौरा क्षेत्र पुरानी कोडिय़ा जमीदारी के अन्तर्गत आता है पिथौरा में आज से 63 वर्ष पूर्व मात्र कक्षा 8वीं तक की पढ़ाई होती थी, कुछ गिने-चुने लोग अपने बच्चे को कक्षा 9वीं के लिए शहरों में भेज पाते थे इसलिए पिथौरा क्षेत्रवासियों के मन में एक विचार उत्पन्न हुआ कि क्यों न पिथौरा में हाईस्कूल कक्षा 9वीं से 11वीं तक खोला जाए। तब पिथौरा क्षेत्रवासियों ने कांडिया शिक्षा समिति का गठन किया। कोडिय़ा जमींदार के वंशज उमराव सिंग, प्रताप सिंग अरी सिंग, भोज सिंग ने जमींदारीकालीन कचहरी को शाला भवन हेतु दान दिया जिसकी प्रति आज भी समाज के पास मौजूद है। यह बकायदा रणजीत कृषि उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के नाम से पंजीकृत है। उस समय क्षेत्रवासियों में उत्साह था स्कूल को जमीन दान करने लगे जो लगभग 12 एकड़ जमीन है। स्कूल का नामकरण करने का विचार आया। दानदाता तो बहुत हो गए, किसके नाम पर स्कूल को रखा जाये और विरोध भी नहीं हो। लिहाजा उस जमाने में आस्था के प्रतीक राज थे। किसान लोग भी जमीन दान किए थे। उसे ध्यान में रखते हुए स्कूल का नाम रणजीत कृषि रखने का प्रस्ताव आया, कृषि भूमि अधिक होने के कारण कृषि संकाय खोलने का प्रस्ताव हुआ।
इस घटना क्रम अनुसार या मुख्य बिन्दु यह निकला स्कूल का नाम रणजीत कृषि उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पिथारा रखा गया रंजीत शब्द अंग्रेजी क्र्रहृछ्वढ्ढञ्ज है जो बिगडक़र रणजीत हो गया। रणजीत शब्द के आगे-पीछे लाल रंजीत सिंह, ठाकुर रंजीत सिंह आदि जोड़वाने जमीदारों के वंशजों द्वारा प्रयास किया गया। आदिवासी समाज द्वारा भी प्रयास किया गया लेकिन आज तक सुधर नहीं पाया आज यह स्कूल रणजीत कृषि स्कूल के नाम से प्रख्यात है। आज स्कूल के बहुत सारे जमीन पर अतिक्रमण कर अवैध निर्माण किया गया है जिसे हटाने के लिए शाला प्रमुख द्वारा राजस्व अधिकारियों को पत्र लिखा गया। राजस्व अधिकारियों द्वारा अतिक्रमण हटाने के बजाय शाला प्रमुख को डांटकर दबाव किया गया। इसी प्रकार शाला संचालित हो रही है लेकिन आप ने एक योजना लाकर एकमुश्त स्कूल का नाम बदलकर स्वामी आलानन्द स्कूल कर दिया। रणजीत कृषि स्कूल में स्वर्गवासी संस्थपकों, दानदाताओं की भावना जुड़ी है। आदिवासी समाज व अन्य पिथौरा क्षेत्रवासियों की आस्था जुडी है नाम विलोपित करने पर सभी के आस्था को आघात पहुंचेगा। उनका सपना चकनाचूर हो जायेगा। इसलिए इसे किसी भी हाल में नाम विलोपित नहीं करने दिया जाएगा।
आत्मानंद स्कूल पर आपत्ति नहीं बल्कि पुराने स्कूल के नाम बदलने पर आपत्ति
उक्त मामले में सर्व कौडिय़ा आदिवासी समाज के ब्लॉक अध्यक्ष मनराखन ठाकुर ने उक्त मामले में कहा कि समाज को रंजीत कृषि उच्च मध्य शाला का नाम विलोपित करने पर आपत्ति है। शासन यदि स्वामी आत्मानन्द स्कूल खोलना चाहता है तो इसी कैम्प्स में पर्याप्त स्थान है। इसी में नए भवन निर्माण के साथ स्वामी आत्मानंद स्कूल की स्थापना की जा सकती है परन्तु आदिवासी जमींदार रणजीत सिंह का नाम एक षडय़ंत्र के तहत ही विलोपित करना दिखाई दे रहा है। लिहाजा आदिवासी समाज अन्य कौडिय़ा क्षेत्रवासियों के साथ अपनी अस्मिता की लड़ाई लडऩे के लिए सडक़ पर उतरने की नौबत आई तो सडक़ पर उतरकर भी आंदोलन कर क्षेत्र के अस्मिता की रक्षा करेगा।