राजनांदगांव
भाजपा कांग्रेस से भिडऩे में रही नाकाम
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 26 दिसंबर। राजनांदगांव नगर निगम के वार्ड नं. 17 के उपचुनाव में कांग्रेस को मिली जीत मील का पत्थर साबित होगी। चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा के वार्ड को अभेद्द किला मानने के मिथक को भी तोड़ दिया है। चुनाव में शहर कांग्रेस ने भाजपा के दर्जनभर दिग्गजों के चुनावी रणनीति को ध्वस्त कर अपना परचम लहराया है।
सियासी हल्के में इस उपचुनाव के नतीजे को भाजपा की सेहत के लिए विपरीत माना जा रहा है। राज्य में दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव से पूर्व वार्ड नं. 17 की जीत कांग्रेस की लहर का एक मजबूत संकेत है। चुनाव में मिले जीत के बाद कुलबीर छाबड़ा एक दमदार सांगठनिक नेता के तौर पर उभरे हैं। उनकी सांगठनिक क्षमता को लेकर कांग्रेस के भीतर ही कयास लगाए जा रहे थे।
वार्ड का चुनाव एक दौर में पहुंचकर कुलबीर छाबड़ा वर्सेस मधुसूदन यादव के बीच का रह गया था। वार्ड नं. 17 को फतह करने की कांग्रेस की ख्वाहिश काफी पुरानी रही है। इस वार्ड से जिलाध्यक्ष मधुसूदन यादव भी पार्षद रहे हैं। इससे पूर्व भी भाजपा का ही वार्ड पर कब्जा था। यादव की तमाम कोशिशों और व्यक्तिगत संबंध नतीजे के लिहाज से बेअसर रहे। राजनीतिक स्तर पर भाजपा को इस वार्ड से मिली हार एक तरह से कड़ा संदेश भी है, क्योंकि भाजपा के भीतर अंदरूनी कलह और वाद-विवाद से पार्टी की छवि भी खराब हुई है। इस चुनाव में बाजी मारने के लिए मधुसूदन यादव ने भी हर मोर्चे पर कांग्रेस के विरुद्ध किलेबंदी की थी। लिहाजा भाजपा ने दिग्गज नेताओं जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की अप्रत्यक्ष भूमिका, सांसद और पूर्व सांसद समेत शहरभर के नेताओं को भी चुनाव में तैनात किया गया था।
इससे परे कुलबीर छाबड़ा ने वार्ड में अपने पार्टी के शहरी नेताओं को एक निश्चित दायरे तक तैनात किया। उन्होंने अकेले चुनावी रण में मोर्चा सम्हालते हुए वार्ड में भाजपा के हर रणनीति का माकूल जवाब देने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। मतदान से पूर्व एक वर्ग विशेष को मिली सामुदायिक भवन की राशि को लेकर पत्र वायरल होने से कांग्रेस की परेशानी बढ़ गई, लेकिन शहर अध्यक्ष छाबड़ा ने वर्ग विशेष के लोगों के साथ व्यक्तिगत संपर्क कर पूरी स्थिति को सम्हाला। सियासी जगत में यह भी संदेश गया है कि पत्र वायरल होने से जीत का अंतर घट गया। यानी समुदाय के लोगों में कम्युनिटी हाल को लेकर नाराजगी थी। इस बीच चुनाव प्रचार में कुलबीर छाबड़ा और मधुसूदन यादव पूरे वार्ड में अपनी धमक से लोगों को अपने-अपने पार्टी के पक्ष में वोट देने के लिए बढ़ते गए। खास बात यह है कि कांग्रेस की नीतियों को आम लोगों को समझाने में छाबड़ा ने बाजी मार ली। नतीजतन जैसे ही परिणामों की घोषणा शुरू हुई, उसके बाद कांग्रेस ने लगातार बढ़त बरकरार रखी।
उपचुनाव में जीत मिलने के बाद कुलबीर की सांगठनिक क्षमता को अब सराहा जा रहा है। वहीं उनके विरोधियों ने भी माना है कि छाबड़ा के सटीक निर्णय उपचुनाव में जीत के लिहाज से कारगर साबित हुए हैं। राजनीतिक रूप से छाबड़ा के लिए यह प्रतिष्ठा का सवाल भी था। उन्होंने अपने दमखम से कांग्रेस उम्मीदवार को जीत दिलाकर संगठन की ताकत का भी लोगों को अहसास कराया है।