सुकमा
3 साल में होने वाले मेले में अभी से जुटने लगे श्रद्धालु
अगले माह 17 से 20 तक होगा मेला
100 करोड़ का बजट
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कोंटा, 8 जनवरी। छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती प्रांत तेलंगाना के आदिवासी ग्राम मेडारम में हर तीसरे वर्ष में एक बार होने वाले तीन दिवसीय जात्रा में लगभग एक करोड़ से अधिक श्रद्धालु इस जात्रा में विभिन्न राज्यों से उपस्थित होंगे। इसके लिए तेलंगना राज्य शासन तैयारियां में जुट गई है। एक माह बाद होने वाले इस जात्रा के लिए अब से तैयारियां जोर शोर पर चल रही है।
तेलंगाना राज्य के धर्मउत्सव मंत्री इन्द्रकरण रेड्डी व जनजाति मंत्री सत्यवती राठौर, स्थानीय विधायक सीताक्का व स्थानीय कलेक्टर ने मेडारम पहुंच कर सर्वप्रथम माँ समक्का-सारक्का के दरबार में शीश नवाया व मेडारम जात्रा के होने वाले तैयारियों की सम्पूर्ण जायजा लिया।
प्राप्त जानकारी के अनुसार दो वर्ष पूर्व हुए यह जात्रा में लगभग 60 लाख से अधिक भक्तों को माँ समक्का सारक्का का दर्शन प्राप्त हुआ, इस वर्ष इससे भी कहीं अधिक श्रद्धालुओं के आने की संभानाएँ जताई जा रही है। जिसके लिए प्रशासन पूरी तैयारी कर रही हैं।
जात्रा के एक माह पहले से ही दुकान सजना लोगों की आवाजाही शुरू हो गई है। इसे आदिवासी महाकुम्भ भी कहा भी जाता है। मेडारम के समक्का-सारक्का के दरबार में मन्नत पूरी होने के बाद लोग अपने वजन के बराबर सोने के तौर पर गुड़ का चढ़ावा देते हैं। इसके अलावा मुर्गों और बकरों की बलि भी दी जाती है।
एक माह पहले से ही मेडारम में प्रतिदिन 50 हजार भक्त कर रहे हैं दर्शन
मेडारम जात्रा प्रारंभ होने के एक माह पहले से ही लगभग प्रतिदिन 50 हजार की संख्या में भक्तगण पहुंच कर समक्का सारक्का का दर्शन प्राप्त कर रहे हैं, इसका कारण यह हैं कि बढ़ती कोविड की तीसरी लहर व बढ़ती संक्रमण से श्रद्धालु जात्रा के एक माह पूर्व से ही अपने मन्नतें पूरा करना शुरू कर दिया है।
एक ओर तेलंगाना राज्य शासन कोविड की तीसरी लहर ओमिक्रॉन से निपटने की तैयारियां कर रही हैं, वहीं जात्रा की तैयारियों में एतिहातिक तौर पर आगे बढ़ रही हैं , लेकिन संक्रमण अधिक होने पर इस वर्ष आदिवासियों का सबसे बड़ा मेडारम जात्रा पर भी कोविड का ग्रहण लग सकता हैं।
इस जात्रा के लिए एक अरब का बजट
तेलंगाना के सरकार ने इस वर्ष एक अरब की बजट रखा है। श्रद्धालुओं को मेले स्थल तक पहुंचाने के लिए महाराष्ट्र, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ से करीब 10 हजार बसों का संचालन किया जाएगा। करीब 30 से 40 लाख मुर्गों और बकरों की बलि दी जाएगी। यह जात्रा का इतिहास 600 से 700 वर्ष पुराना है।