सूरजपुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भैयाथान, 13 जनवरी। कोरिया जिले में संचालित झिलमिली कोयला खदान के प्रभावित क्षेत्र में सूरजपुर जिले के तीन ग्राम पंचायत आते हैं लेकिन, एसईसीएल के द्वारा प्रभावित इन तीनों पंचायतों में के लिए पिछले 10 सालों के दौरान एक भी सुविधा नहीं दी गई है, जबकि खदान प्रभावित क्षेत्र को मिलने वाले प्रदूषण सहित अन्य समस्याओं को कॉलरी से भरपूर दिया जा रहा है। एसईसीएल प्रबंधन के जिम्मेदार अधिकारी भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
मालूम हो कि 1990 में यह कोयला खदान खोली गई थी। तब यह क्षेत्र मध्य प्रदेश राज्य में आता था और जिला अविभाजित सरगुजा था। उस दौरान खदान के आसपास के गांवों को खदान प्रभावित ग्राम पंचायत मानकर यहां के विकास कार्यों की जिम्मेदारी एसईसीएल को सौंपी गई थी। जिला विभाजन के बाद ग्राम पंचायत बड़सरा, बसकर व करौंदा मुड़ा सूरजपुर जिले में शामिल कर लिए गए, जबकि, खदान कोरिया जिले के क्षेत्र में हो गई। इसके बाद से एसईसीएल प्रबंधन ने इन गांवों की ओर ध्यान देना बंद कर दिया। आलम यह है कि प्रबंधन ने इन गांवों को प्रभावित क्षेत्रों की सूची से ही गायब कर दिया, जबकि इन गांवों से खदान की दूरी दो से तीन किमी ही है। इसके बाद भी यह गांव मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे हैं। गांव में न तो सडक़ की सुविधा है और न ही बिजली, पानी की समुचित व्यवस्था है।
मूलभूत सुविधाओं में कुछ नहीं कर रहा एसईसीएल
प्रभावित ग्राम बड़सरा, बसकर, करौंदा मुड़ा के पारा मोहल्ला की सडक़ें अत्यंत जर्जर हैं। गांवों में सामुदायिक भवन नहीं है। स्कूल भवन के छज्जे उड़े हुए हैं। जल स्तर बहुत नीचे चला गया है। बड़सरा में तो 800 फीट बोरिंग कराने के बाद भी पेयजल नहीं मिल रहा है। जिससे क्षेत्र ड्राई बेल्ट हो गया है।
ग्रामीणों ने सब एरिया पर लगाया अनदेखी का आरोप
ग्रामीणों ने बताया कि हम लोग एसईसीएल के प्रभावित ग्राम पंचायतों में रहते हैं। यहां की मूलभूत सुविधाएं जैसे स्वास्थ्य, खेलकूद, सडक़ व पेयजल और प्रदूषण नियंत्रण के लिए प्रबंधन की ओर से कुछ भी नहीं किया जाता है। जबकि खदान खुले लगभग 30 वर्ष हो गए है।
10 साल पहले हुआ था कुछ काम
ग्रामीणों ने बताया कि 10 साल पहले ग्राम पंचायत बड़सरा में स्कूल की बाउंड्री वॉल, प्रतीक्षालय, तालाब सौंदर्यीकरण का काम किया गया था। इसके बाद आज तक कोई काम नहीं कराया गया है। जबकि, ग्रामीण खराब सडक़ों पर चलना भी मुश्किल हो रहा है।
दो जिलों में फंसे गांव के विकास कार्य
एसईसीएल के सब एरिया झिलमिली के अधिकारियों का कहना है कि वर्तमान में हम सीएसआर मद को राज्य सरकार को दे देते हैं। जिसे जिले के कलेक्टर राज्य सरकार की अनुशंसा पर खर्च करते है। इसलिए जिला अलग होने व सीएसआर मद एसईसीएल के हाथ में न होने का दंश प्रभावित ग्राम झेलने को मजबूर हैं। खदान का क्षेत्र कोरिया जिला होने के कारण सीएसआर मद का रुपया वहीं चला जाता है। जिसे कोरिया कलेक्टर की मंजूरी से ही खर्च किया जाता है। जबकि, सूरजपुर जिले के खाते में एक भी रुपए नहीं आते हैं।
कोयले के डस्ट व चूर्ण पानी से खेत हो रहे बर्बाद
खदान पहाड़ी क्षेत्र में ऊपर की तरफ होने और गांव तलहटी में बसे होने के कारण नाला के सहारे बहकर कोयले के कण खेतों में पहुंचकर उर्वरा शक्ति को नष्ट कर रहे हैं। जबकि, बारिश के दिनों में पहाड़ों से आने वाला कोयला मिश्रित पानी खेतों में बह रहा है। दो जिलों का मामला होने के कारण ग्रामीण तय नहीं कर पाते हैं कि हम अपनी शिकायत किस जिले के कलेक्टर से करें।
एसईसीएल झिलमिली ने सूरजपुर जिले के ग्रामीणों को दी है काला पानी की सजा
बड़सरा क्षेत्र के जनपद सदस्य व भाजपा नेता सुनील साहू ने बैकुंठपुर एसईसीएल क्षेत्र के महाप्रबंधक को पत्र सौंपकर झिलमिली खदान से नाले के सहारे बहकर आ रहे कोयले का डस्ट व चूर्ण सुरजपुर जिले के ग्राम पंचायत बड़सरा,बसकर के खेतों में आ रहा है, जिससे सैकड़ों एकड़ खेत बंजर हो रहे हैं, इसलिए बहकर आ रहे काला पानी पर तत्काल रोक लगाए जाने तथा आश्रित ग्रामों के मूलभूत सुविधा हेतु राशि की मांग की है ताकि एसईसीएल द्वारा दी गई काला पानी की सजा से क्षेत्र को मुक्ति मिल सके।