राजनांदगांव
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 16 जनवरी। जैन मुनि सम्यक रतन सागर जी ने कहा कि जिसकी अंतर चेतना जागृत हो गई है, उसमें परिवर्तन की अनेक संभावनाएं होती हैं और जिसकी अंतर चेतना सोई हुई है, वह कभी ऊंचाइयों को नहीं छू सकता। मुनिश्री ने कहा कि यदि आपकी अंतरात्मा (अंतर चेतना) जिस कार्य को करने से मना करे तो उस काम को न करें।
मुनिश्री ने कहा कि इंसान लक्ष्य बनाते हैं और लक्ष्य के करीब पहुंचते-पहुंचते लक्ष्य और बढ़ जाता है अर्थात लक्ष्य में परिवर्तन आ जाता है। उन्होंने कहा कि चंद कागज के टुकड़ों की खातिर आप अपने संस्कारों को ताक में रख देते हो। आपका बच्चा पैकेज में विदेश कमाने जाता है, वहां उसे किन-किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है इससे उन्हें कोई लेना-देना नहीं होता। गलत ढंग से कमाया गया पैसा नहीं टिकता। जितने दिन भी यह टिकेगा नित नई-नई परेशानी पैदा करेगा। उन्होंने कहा कि गलत के साथ कभी कॉम्प्रोमाइज मत करना। पाप करने के बाद यदि पश्चाताप के भाव न हो तो आप कभी सम्यक दृष्टि की करीब नहीं पहुंच सकते।
मुनिश्री ने कहा कि पतंग की डोर यदि सही हाथ में न हो तो वह फट भी सकती है और पटका भी सकती है। वह कहीं फंस भी सकती है, इसलिए पतंग की डोर सही हाथ में होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जो आपकी सुख की चिंता करता है, वह आपका सही पता नहीं हो सकता और जो आपके हित की चिंता करें, वह ही आपका सही पता है। उन्होंने कहा कि कहने का तात्पर्य यह है कि मां-बाप बेटे की सुख की चिंता करते हैं, किंतु गुरु बच्चे के हित-अहित की चिंता करते हैं। आपके जीवन में एक कल्याण मित्र भी होना चाहिए, जो आप के हितों की चिंता करें।