राजनांदगांव
नक्सल के बजाय अब विकास के गढ़ में बदल रहा गांव, कारगर साबित हुई समर्पण नीति
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 25 जनवरी। 12 जुलाई 2009 को तत्कालिन एसपी स्व. विनोद चौबे समेत 29 जवानों की शहादत की घटना से देश और राज्य की सुरक्षा एजेंसियों को गहरा आघात लगा। खुफिया और राज्य की एजेंसियों को यह बात समझने में देरी नहीं हुई कि नक्सलियों को ढील देने पर न सिर्फ राज्यों की, बल्कि देश की भीतरी सुरक्षा को ताक में रखने जैसा होगा।
नक्सलियों के सशस्त्र लड़ाई का जवाब में अब केंद्र और राज्य लगभग मतभेद को भुलाकर साझा लड़ाई लड़ रहे हैं। जिसके चलते नक्सलियों का प्रभाव और आतंक कम हुआ है। चरमपंथियों का ठिकाना माने जाने वाले राजनांदगांव जिले के मानपुर इलाका गुजरे 5 साल में नक्सल मोर्चे में पुलिस को मिली बड़ी कामयाबी की बदौलत विकास की नई इबारतें लिख रहा है।
नक्सलियों को सबक सिखाने के साथ-साथ राजनांदगांव पुलिस अपने अहम सहयोगी सीएपीएफ (इंडो तिब्बत पुलिस) और सीएएफ के साथ पहाड़ों को चीरकर विकास का नया रास्ता बना रही है। नक्सलियों को सीख देने का इरादा लेकर पुलिस समर्पण नीति को भी एक कारगर रूप देने में कामयाब रही है। नतीजतन पुलिस के सामने कई बड़े हार्डकोर नक्सलियों ने हथियार डालकर विकास की गति को रोकने की जुगत में बैठे अपने ही साथियों को करारा जवाब दिया है।
नक्सलियों के लिए राजनांदगांव पुलिस का रूख लड़ाई के दौरान काफी सख्त रहा है। वहीं नक्सलियों की घर वापसी के लिए समर्पण नीति को पुलिस ने लागू कर उनके मुख्यधारा में लौटने के लिए उन्मुक्त वातावरण भी बनाया है। मानपुर के अलावा राजनांदगांव जिले के उत्तरी इलाके बकरकट्टा-गातापार जैसे दुर्गम नक्सलग्रस्त क्षेत्र में भी विकास की धार तेज हुई है। इस इलाके में पुलिस ने सडक़ों का जाल फैलाया है।
पखडंडी और उबडख़ाबड़ रास्तों को डामरीकृत मार्ग में बदलने के लिए जवानों ने दिन-रात पहरा देकर चमचमाती सडक़ें बनाने में अहम भूमिका अदा की। गातापार से लेकर बकरकट्टा के बीच बन रहे मार्ग ने भविष्य में इस इलाके को विकास के पिछड़ेपन के श्राप से मुक्त करने की उम्मीद जगाई है। नक्सलियों के लिए राजनंादगांव एक कारीडोर की तरह रहा है।
नक्सल संगठन ने राजनांदगांव को एक ट्रॉजिट रूट के रूप में इस्तेमाल किया है। यही कारण है कि गढ़चिरौली और राजनांदगांव के सरहद से नक्सलियों की आवाजाही रही है।
एमएमसी जोन को एक सुरक्षित कारीडोर बनाने के लिए नक्सली सीमा पर उपद्रव मचाते रहे हैं। पिछले 5 सालों में स्थिति तेजी से बदली है। पुलिस ने नक्सल खौफ को खत्म कर अंदरूनी इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत की है।
पुलिस के साथ खड़े होने के लिए ग्रामीण अब सामने आने लगे हैं। नक्सलियों के खोखले नीति से परे ग्रामीण अब लोकतंत्र की गहराईयों को समझकर पुलिस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए नजर आ रहे हैं। पिछले 5 सालों में नक्सलियों को पुलिस ने अपने सटीक रणनीति से कमजोर किया है। जिसमें नक्सलियों को अपने हार्डकोर दर्जनों साथियों के मारे जाने से सर्वाधिक नुकसान हुआ है।
आंकड़े बता रहे हैं नांदगांव पुलिस की सफलता
राजनांदगांव पुलिस ने 5 साल में शानदार कामयाबी हासिल की है। जिसमें 2017 से 2020 के दौरान पुलिस ने 28 नक्सल शव बरामद किए। 2017 से 2019 के साल में 8-8 नक्सलियों को पुलिस ने अपनी बंदूक से ढ़ेर किया। वहीं 2020 में 4 नक्सली मारे गए थे। हालांकि पुरदौनी में हुए इस मुठभेड़ में नक्सलियों की गोली से मदनवाड़ा थाना प्रभारी श्यामकिशोर शर्मा शहीद हुए थे। 2021 का वर्ष पुलिस की उपलब्धियों के लिहाज से कमजोर साबित रहा। 2021 में पुलिस गिरफ्तारी और समर्पण का इंतजार करती रह गई। हालांकि पुलिस ने 2021 में तीन आईईडी भी बरामद किया था।
बेसकैम्प बने पुलिस के लिए ढाल
मानपुर से लेकर बकरकट्टा के बीच पुलिस ने गुजरे सालों में दर्जनभर से ज्यादा बेसकैम्प बनाए हैं। पुलिस ने ऐसे जगहों पर सुरक्षा कैम्प तैयार किए, जहां से नक्सलियों की आवाजाही होती रही।
नक्सलियों को घेरने और उनके दायरे को सीमित करने के लिए बेसकैम्प पुलिस के लिए एक ढाल बने।
नक्सलियों की खोजबीन में पुलिस जवानों को बेसकैम्प में आपरेशन करने में आसानी हुई।
पहले किसी दूर-दराज थाने से आपरेशन पर निकले गश्ती दल जल्दी ही थक जाती थी। इसी का नक्सली फायदा उठाकर हिंसक वारदात को अंजाम देने थे। अब सीमा पर बने बेसकैम्पों से आपरेशन पर निकले जवान आसानी से नक्सलियों को करारा जवाब दे रहे हैं।
2009 के नक्सल हमले के बाद मानपुर में खुले ज्यादातर बेसकैम्प पुलिस थाना में बदल गए हैं। बेसकैम्पों का उपयोग पुलिस के लिए फायदेमंद साबित हुआ है।
‘नक्सल विचारधारा हमेशा रही खोखली, समर्पण के साथ आपरेशन पर रहेगा जोर’ -पुलिस अधीक्षक संतोष सिंह
राजनांदगांव पुलिस अधीक्षक संतोष सिंह ने बीहड़ इलाकों के युवाओं और ग्रामीणों से नक्सलियों की विचारधारा को महज खोखला बताते हुए कहा कि नक्सलपंथ की राह एक मुखौटा मात्र है। नक्सलियों की नीति हमेशा दोहरी रही है। विकास के घोर विरोधी बनकर नक्सलियों ने हमेशा ग्रामीणों की बुनियादी जरूरतों को पूरा नहीं होने दिया।
एसपी श्री सिंह ने ‘छत्तीसगढ़’ से कहा कि अब वक्त है कि युवा नक्सलियों के भ्रामक जाल में न फंसे। मुख्यमंत्री के निर्देश पर राजनांदगांव पुलिस नक्सलवाद को काबू करने और आत्मसमर्पण करने की इच्छा रखने वालों का स्वागत करने के लिए प्रतिबद्ध है। नक्सल पुनर्वास नीति राह भटक चुके नक्सलियों के लिए कारगर साबित हुई है। आज समर्पण के बाद नक्सलियों का जीवन स्तर बदल गया है।
उन्हें राज्य सरकार सरकारी नौकरियों के साथ-साथ स्वरोजगार, आवास तथा आर्थिक सहायता भी दे रही है। हिंसक उपद्रव मचाने पर नक्सलियों के खिलाफ सख्ती की जाएगी। जल्द ही सीमा पर बड़ा आपरेशन शुरू कर नक्सलियों को घेरा जाएगा।