राजनांदगांव
राजनांदगांव, 2 मई। अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के आह्वान पर जनप्रतिनिधियों, सभी अधिकारी, श्रमिक किसान, गणमान्य नागरिक एवं जनसामान्य सभी ने बोरे-बासी खाया।
छत्तीसगढ़ के समृद्ध खानपान एवं यहां के संस्कृति की विशेष पहचान है। बोरे-बासी हमारी छत्तीसगढ़ी लोक परंपरा में गहरे रची-बसी है। अपनी संस्कृति से गहरा जुड़ाव महसूस करते जिलेवासियों ने बोरे-बासी खाकर अपनी अनुभूति व्यक्त की है। गांव से लेकर शहरों तक लोगों में अपनी संस्कृति के प्रति एक लगाव और अभूतपूर्व उत्साह रहा।
डोंगरगांव विधायक दलेश्वर साहू एवं उनकी पत्नी जयश्री साहू, डोंगरगढ़ विधायक भुनेश्वर बघेल, खुज्जी विधायक छन्नी चंदू साहू, खैरागढ़ विधायक यशोदा नीलाम्बर वर्मा, महापौर हेमा देशमुख, कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा, पुलिस अधीक्षक संतोष सिंह, खैरागढ़-छुईखदान-गंडई के ओएसडी जगदीश सोनकर, जिला पंचायत सीईओ लोकेश चंद्राकर ने बोरे-बासी खाया और सभी को श्रमिक दिवस की शुभकामनाएं दी।
डोंगरगढ़ विधायक श्री बघेल ने दिन की शुरूआत बोरे-बासी खाकर किया। वहीं खुज्जी विधायक श्रीमती साहू ने कहा कि खाने में जायकेदार बोरे-बासी खाने से कार्य करने वालों की थकान मिट जाती है। खैरागढ़ विधायक श्रीमती वर्मा ने श्रम दिवस के अवसर पर बोरे-बासी भात खाकर अपनी खुशी जाहिर की। महापौर श्रीमती देशमुख ने कहा कि अब्बड़ मिठाथे संगवारी छत्तीसगढ़ के बासी ह, इही हमर गंगा हे, इही हमर कासी, छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा।
कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा ने श्रम का सम्मान करते बोरे-बासी का लुत्फ उठाया। एसपी संतोष सिंह एवं उनके पुत्र अयान ने बोरे-बासी का स्वाद लिया।
इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की कुलपति ममता चंद्राकर ने कहा कि बोरे बासी मतलब गरमी के दिनों में खाने से आत्मा को तृप्त करना.. इससे शरीर में ठंडक का अहसास होने के साथ ऊर्जा का संचार होता है। पद्मश्री फूलबासन यादव ने श्रम दिवस पर बोरे-बासी खाकर अपनी प्रसन्नता जाहिर की।
किसान एनेश्वर वर्मा ने छत्तीसगढ़ी आहार बोरे-बासी खाकर श्रम दिवस मनाया। लोक गायक महादेव हिरवानी एवं प्रभु सिन्हा ने श्रम दिवस पर बोरे-बासी भात खाकर छत्तीसगढ़ी संस्कृति की अनुभूति को व्यक्त किया।
छुरिया के ग्राम सीताकसा के श्रमिक जनकराम साहू ने कहा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल किसान घर के बेटा हे। उहू हा नून मिर्ची संग बोरे-बासी भात खाते, उहू हा हमरे सही नांगर-बैला जोतईया हे। नून, मिर्ची, अमारी फूल अऊ गोंदली के संग बोरे बासी गुरतुर लागथे।
सीताकसा कीश्रमिक ज्योतिनबाई ने बताया कि घाम-प्यास में काम करके आये रबे अऊ बोरे बासी ला गोंदली, आमा चटनी के संग खाथे तो आनंद आ जाथे। शरीर के पूरा थकान मिट जथे।