कोरिया
पहुंचविहीन, दुर्गम, बीहड़ चारों ओर पहाड़ों से घिरे रेवला की कहानी
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बैकुंठपुर, (कोरिया), 16 मई। पहुंचविहीन, बेहद दुर्गम, चट्टानों और पथरीला रास्ता पार कर जनपद पंचायत सोनहत के ग्राम पंचायत कछाड़ी का आश्रित ग्राम रेवला वर्षो से अंधेरे मेें है। सोनहत और रामगढ़ के बीच घनघोर जंगलों के पथरीले रास्तों के 8 किमी का सफर तय कर ‘छत्तीसगढ़’ रेवला पहुंचा। क्रेड़ा विभाग मात्र 8 घरों में भी सौर उर्जा से बिजली मुहैया नहीं करा पा रहा है। रेवला की आबादी 40 की है, लोकसभा चुनाव में आंगनबाड़ी केन्द्र को मतदान केन्द्र बनाया गया था, यहां 10 पुरूष और 9 महिला मतदाता है। मात्र 19 मतदाता के इस गांव के लोग कई तरह की परेशानियों से जूझ रहे है।
आज 16 मई विश्व प्रकाश दिवस है। कोरिया जिले के सोनहत विकासखंड में सौर उर्जा प्लांट से कई गांव को रौशन किया गया है, परन्तु आज भी कई गांव ऐसे है जहां वर्षो से रौशनी नहीं है। पूरा गांव अंघेरे में रहकर गुजर बसर कर रहा है। वैसे क्रेडा विभाग ने यहां के प्रत्येक घरों में होम लाइट दे रखी है, इसके लिए घर के सामने प्लेट भी लगाई गई है, परन्तु विभाग होम लाइट देकर रेवला का रास्ता भूल गया। आदिवासी बाहुल्य गांव के लोग अंधेरे में जीने को मजबूर है। गांव के सुखलाल, सुखमतिया, मोहन समेंत 6 घरों की होम लाइट वर्षो से बंद है। ग्रामीण होम लाइट के साथ मिली बैटरी सामने लाकर कहते है कि विभाग होम लाइट देने के कारण वो चल रही है या नही इसकी जानकारी लेने नहीं आया। इसके अलावा पूरा गांव अंधेरे में रहने का मजबूर है। यहां स्थित एक मात्र सरकारी भवन मिनी आंगनबाड़़ी केन्द्र में लगी सौर उर्जा की लाइट भी वर्षो से खराब पड़ी हुई है।
सौर पंप खराब
रेवला गांव मे कुल तीन सौर पंप लगाए गए है, वैसे यहां के लोग मौसम आधारित फसल लगाकर अपना पेट पाल रहे है। सौर सुजला योजना के तहत तीन ग्रामीणों को इसका लाभ भी मिला, परन्तु क्रेडा विभाग की उदासीनता के कारण तीन में से दो सौर पंप बीते दो वर्षो से बिगडे हुए है, कई बार यहां के ग्रामीण पंप के सुधार को लेकर आवेदन दे चुके है, परन्तु क्रेडा विभाग के अफसरों की नीेद ही नहीं खुल पा रही है। यहां के निवासी खाने मात्र के लिए सब्जी भाजी लगाते है, परन्तु पानी की कमी से वो भी खराब हो जाती है।
नाले से पीते है पानी
रेवला गांव के पश्चिम में एक जिंदा नाला बहता है, पूरा गांव उसी नाले से अपनी प्यास बुझाता है, नाले के एक ओर निकलने वाले पानी के स्त्रोत को ग्रामीणों ने गढ्ढा खोद कर पानी को एकत्रित करने की कोशिश की है, यहां के पानी से बारी बारी से भरकर ग्रामीण लेकर जाते है, इसी नाले के पानी को लेकर ग्रामीणों को कहना है कि हमें जीने के पीने के पानी को इसी नाले से पीना पड़ता है, बारिश के दिनों में इस पानी से कई बार पूरा का पूरा गांव बीमार हो चुका है। पर क्या करें हमारी मजबूरी है। गर्मी के दिनों में पानी के स्त्रोत से पानी बेहद कम आता है, इसलिए अलग अलग समय पर पानी लेने आना पड़ता है। आंगनबाड़ी केन्द्र के पास भी बच्चों के पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है।
9 राशन कार्ड, 8 घर
सोनहत विकासखंड का रेवला गांव में कुल 8 घर है, यहां 9 परिवारों को राशन काडऱ् बना हुआ है, राशन के लिए यहां के ग्रामीणों को खासी मशक्कत करनी पड़ती है, लगभग 15 किमी दूर सोनहत से बस के रास्ते मुख्य सडक़ तक राशन लेकर आते है, फिर राशन का सिर पर रखकर 8 किमी के बेहद दुर्गम पथरीले रास्ते पर पैदल चल कर राशन लेकर घर पहुंचते है। मिनी आंगनबाड़ी केन्द्र में 14 बच्चे आते है। इसके बाद की पढ़ाई के लिए बच्चों को सोनहत के आश्रम में भेज देते है, कुछ बच्चों को सोनहत भेजने के लिए शार्टकट रास्ते के सहारे बस से भेजते है, ग्रामीण इसके लिए एक पहाड़ को पैदल पार करते है और मुख्य मार्ग पर पहुंच कर बस में बैठकर सोनहत जाते है।
सोलर हैंडपंप, प्लांट की मांग
रेवला गांव में पीने के पानी की सबसे बड़ी समस्या है, ग्रामीणों का कहना है कि यदि सरकार यहां एक ही सोलर हैंडपंप लगवा दे तो उनकी परेशानी काफी कम हो सकती है। पहुंचविहीन रास्ता होने के कारण उनका कहना है कि चेन के माध्यम से बोरिंग करने वाले वाहन को यहां लाया जा सकता हैं, ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने कलेक्टर से इस मांग को पूरा करने की गुहार भी लगाई है। वहीं पूरा गांव अंधेरे में रहता है, जिसे लेकर ग्रामीणों का कहना है यहा कम से कम एक किलो वॉट का सौर उर्जा का प्लांट लगवा दिया जाता, या फिर गांव के बीच मेें एक हाई मास्क लाईट लग जाती, ताकि उन्हें अंधेरे से तो निजात मिल जाता।