महासमुन्द

युवाओं ने शुरू किए इंडियन रोटी बैंक, रविवार को शहर में भूखों को कराते हैं भोजन
16-May-2022 4:11 PM
युवाओं ने शुरू किए इंडियन रोटी बैंक, रविवार को शहर में भूखों को कराते हैं भोजन

शहर के युवा जेब खर्च की राशि से चलाते हैं यह बैंक

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 16 मई।
महासमुंद में एक ऐसा रोटी बैंक है जहां भूखे गरीबों को मुफ्त में रोटियां मिलती हैं। इस बैंक के संचालक शहर के युवा हैैं जो अपनी जेब खर्च से इस बैंक को संचालित करते आ रहे हैं। इस बैंक का नाम उन्होंने इंडियन रोटी बैंक रखा है। ये हर रविवार घर में खाना तैयार करते हैं और खाना लेकर निकल जाते हैं भूखों की खोज में। पिछले 49 हफ्तों से हर रविवार ये शहर में घूम घूम कर भूखे लोगों को खाना खिलाते हैं। इस बैंक की रोटियों के लिए न तो पैसे देने पड़ते हैं, न कोई सूद लगता है। इस बैंक में लाभ लेने वालों की योग्यता सिर्फ भूखे होना ही है।

रविवार छत्तीसगढ़ से इनकी मुलाकात हुई। उनमें से एक युवा ने चिल्लाया-दीदी सुनों। मैं वाहन की रफ्तार धीमें कर उनकी ओर मुड़ी। सामने कुछ और युवा थे जिनके पास रोटियों का बड़ा सा थैला था। किसी के पास पकी हुई सब्जियों का, तो किसी के पास पानी का। इन सब को मिलाकर एक नाम बना है इंडियन रोटी बैंक।

इस बैंक के को-आर्डिनेटर टिकेन्द्र निर्मलकर ने बताया कि उत्तराखंड की संस्था है जो देश के कई स्थानों में रोटी बैंक खोलकर भूखे लोगों को मुफ्त में रोटियां देता है। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव और रायपुर में यह बैंक है। मैं अपने परिचित के जरिए रायपुर स्थित रोटी बैंक के सदस्यों से मिला। मुझे लगा कि महासमुंद में भी रोटी बैंक की जरूरत है।

महासमुंद के अपने दोस्तों टिकेन््द्र यादव, रत्नाकर यादव, कुबेर, उमेश साहू, उदित सूर्यवंशी, विक्की यादव, प्रांजल ठाकुर, अल्लू खान, पिंटू दीवान, ऋषभ राव, नौशाद अली, डिकेश पटेल, टिंकू, करुण, भूपेश से इस संबंध में टिकेश्वर ने चर्चा की। उन्होंने बताया-हम सभी दोस्त हैं। हम स्कूल के वक्त से बहुत से लोगों को भोजन के लिए तरसते देखा है। मन तो करता है कि भोजन का एक बहुत बड़ा संग्राहलय खोलकर भूखों को मुफ्त का भोजन दें। लेकिन यह संभव नहीं हैं। हम सभी मध्यम वर्ग से हैं। हमने सोचा कि क्यों न जेब खर्च के पैसे से हम कुछ लोगों के लिए रोटियां तैयार करें। फिर 7 जून 2021 को हमारे प्लान का वक्त आया।

हम सभी ने अपने-अपने घर से मिले जेब खर्च की राशि से रोटियों के लिए साधन जुटाया और टिकेन्द्र के घर में रोटियां बनाना शुरू किया। अल्लू की मां भी बच्चों के साथ रोटियां और सब्जी तैयार कर पैकेट बनाने में जुट गईं। उस दिन रविवार था। तभी से हर रविावर यही होता है। 49 हफ्ते पूरे हुए। हफ्ते के बाकी दिनों में दिनचर्या के अलावा बैंक की रोटियों के लिए पैसे एकत्र जुटाते हैं। अब कोई न कोई आटा आदि के लिए सहयोग कर देता है। लेकिन सब्जी बगैरह के लिए खुद के लिए खर्च से करना पड़ता है। फिर हर रविवार सुबह टिकेन््द्र के घर में अलाव जलता है। लगभग सौ पैकेट में छह-छह रोटियां, थोड़ी सी सब््जी और पानी पाउच लेकर दोपहर के पहले ही सडक़ों पर निकल जाते हैं। चलते चलते कोई जरूरतमंद, भूखा दिखने पर ससम्मान रोटियां देते हैं। 

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