सरगुजा

हम सबका है दायित्व, पर्यावरण रहे स्वच्छ सुरक्षित-बानी मुखर्जी
19-May-2022 4:02 PM
हम सबका है दायित्व, पर्यावरण रहे स्वच्छ सुरक्षित-बानी मुखर्जी

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
अम्बिकापुर, 19 मई।
पर्यावरण प्रेमी, राजपत्रित अधिकारी व वरिष्ठ परिवीक्षा एवं कल्याण अधिकारी बानी मुखर्जी ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों के सामन्य और पूर्व परिवर्तन देखने को मिल रहे है।परिवर्तन प्रकृति के प्रमुख घटकों जल, जंगल, जमीन और समस्त वायुमण्डल को पूरी तरह प्रभावित कर रहे हैं,जिसके कारण सम्पूर्ण जीव जगत के अस्तित्व पर खतरा मण्डराने लगा है। प्रदूषण रोकने के प्रबंधक अनियंत्रित कटाई से भी पर्यावरण का संतुलन लगातार बिगड़ रहा है। इसके दुष्परिणाम ग्लोबल वार्मिंग, चक्रवात के रूप में दिखते हैं। यही वजह है कि वैज्ञानिक एवं पर्यावरणविद लगातार बिगड़ते पर्यावरण के बारे में पूरी दुनिया को आगाह कर रहे हैं।

बिगड़ते पर्यावरण के मूल कारण
बानी मुखर्जी लागातार बिगड़ते पर्यावरण के मूल कारणों को अगर हम तलाशें तो पाएंगे विकास और तकनीकि प्रगति की अंधी दौड़ में हमने पर्यावरण के घटकों की स्थाई रूप से नुकसान पहुंचाया है। उपभोक्तावाद के बढ़ते प्रभावश उपभोग की अनियंत्रित आदतों के कारण संसाधनों के असीमित दोहन की प्रवृत्ति इसके लिए सर्वाधिक जिम्मेदार है। यह दोहन इस स्तर तक बढ़ गया है कि हमारे पर्यावरण के पटकों में असंतुलन बढ़ता ही जा रहा है। दरअसल पर्यावरण जिस तरह पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीवधारियों को प्रभावित करता है, उसी तरह या स्वयं भी सारे जीवधारियों की गतिविधियों से प्रभावित होता है। यानि पर्यावरण और समस्त जीवधारियों में गहरा संबंध होता है। यह पूरी तरह आपसी संतुलन पर टिका होता है। ऐसे में जब मानवीय अतिविधियां अनियंत्रित और प्रकृति के विरुद्ध होती है तो यह संतुलन बिगड़ता है और पर्यावरण अनेक संकटों से ग्रस्त होने लगते है।

मानवीय गतिविधियों है जिम्मेदार
श्रीमती बानी मुखर्जी प्रकृति ने समस्त जीवों की उत्पत्ति एक ही सिद्धांत के तहत की है और समस्त चर-अचर जीवों के अस्तित्व को एक दूसरे से जोड़ा हुआ है। लेकिन समस्या तब शुरू हुई जब मनुष्य स्वयं को पर्यावरण का हिस्सा ना मानकर उसको अपनी आवश्यकता के अनुसार विकृत करने लगा। इन गतिविधियों ने प्रकृति के स्वरूप को पूरी तरह बिगाड़ दिया।

हालात ये हो गये कि जो नदियां, पहाड़, जंगल और जीव पृथ्वी पर हर आवर नजर आते थे उनकी संख्या घटती गई इतनी की कई विलुप्त हो गये और ढेरों विलुप्ति के कगार पर है। ऐसा लगता है कि इंसानी समाज ने प्रकृति के विरुद्ध एक अघोषित युद्ध छेड़ रखा है। यह जानते हुए भी की प्रकृति के विरूद्ध इस युद्ध में वो जीत कर भी अपना वजूद सुरक्षित नहीं रख पाएगा।

सभी को करने होंगे प्रयास
बानी मुखर्जी ने कहा कि पृथ्वी को बचाने के क्रम में पर्यावरण के प्रति चिंता जताने के लिए अब तक हजारों सेमिनार और सम्मेलन होते रहें हैं । यह सिलसिला अब भी जारी है लेकिन हमारा पर्यावरण दिनोदिन बिगड़ता ही जा रहा है। ऐसे में अब वक्त आ गया है कि हम सभी इंसान अपनी जिम्मेदार समझें सिर्फ विचार या सम्मेलन ही नहीं, धरती और पर्यावरण को बचाने के संकल्प के साथ इस दिशा में प्रयास शुरू कर दें,क्योंकि इसकी रक्षा का दायित्व हम सब इंसानों पर सामान रूप से है। प्रदुषण रोकने के हर संभव प्रयास करने होंगे। विकास के लिए प्रकृति के विनाश को रोकना होगा। पेड़, नदी, तालाब, भूमि, जंगल और जंतु प्रजातियों को बचाना होगा। अपनी उपभोग की आदतों पर लागाम लगाकर हमें पर्यावरण संतुलन की दिशा में कुछ ठोस उपाय करने होंगे। प्रकृति हजारों साल से हमें देती आ रही है और हम सदा ही लेते आए है क्या अब उसके प्रति कृतज्ञ रहते हुए हम सब उसके संरक्षण और संवर्धन का संकल्प नहीं ले सकते हैं।
 

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