बिलासपुर

केंद्र की संस्था ने अपने ही अध्ययन को ताक पर रखकर दे दी हसदेव में कोयला खदान की अनुमति
24-May-2022 3:47 PM
केंद्र की संस्था ने अपने ही अध्ययन को ताक पर रखकर दे दी हसदेव में कोयला खदान की अनुमति

भारतीय वन अनुसंधान परिषद् के डायरेक्टर को पत्र लिखकर विधायक धर्मजीत सिंह ने सिफारिश वापस लेने की मांग की

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 24 मई।
विधायक धर्मजीत सिंह ठाकुर ने भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद, आईसीएसआरई के निदेशक को पत्र लिखकर मांग की है कि हसदेव अरण्य में चार कोल ब्लॉक उत्खनन के लिए की गई अपनी अनुशंसा को वापस ले। विधायक ने आशंका जताई है कि राजस्थान सरकार और अडानी ग्रुप के प्रभाव में आकर हसदेव अरण्य में कॉल ब्लॉक आवंटित किया गया है।

पत्र में विधायक धर्मजीत सिंह ने कहा है कि छत्तीसगढ़ शासन ने आईसीएफआरई को हसदेव और अन्य कोलफील्ड के जैव विविधता अध्ययन की जिम्मेदारी दी थी। इस काम में केंद्र सरकार की संस्था वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्लूआईआई) से भी मदद ली गई थी। डब्ल्यूआईआई ने अपनी जो रिपोर्ट आईसीएफआरई को प्रस्तुत की है उसमें स्पष्ट रूप से हसदेव अरण्य को अत्यंत महत्वपूर्ण जैव विविधता वाला क्षेत्र मानकर पीईकेबी खदान के खुदाई हो चुके हिस्से को छोड़कर खनन की कोई नई अनुमति नहीं देने की सिफारिश की थी। अर्थात पीईकेबी के फेस टू की अनुमति नहीं देने की सिफारिश की। इस प्रस्तावित खदान से 1136 हेक्टेयर क्षेत्र का सघन वन प्रभावित होगा और लगभग 3 लाख पेड़ काटे जाएंगे।

यही नहीं लगभग ऐसा ही निष्कर्ष और आकलन आईसीएफआरई ने खुद की रिपोर्ट में किया है। आईसीएफआरई ने भी पूरे क्षेत्र में खनन के दुष्प्रभाव बताए हैं जिसके अनुसार यहां किसी भी कोल ब्लॉक में खनन की सिफारिश नहीं की जा सकती।

इसके बावजूद आईसीएफआरई ने यह सिफारिश की है कि राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम को आवंटित सभी कोल ब्लॉक में खनन का कार्य किया जा सकता है। इनमें या तो खनन शुरू हो चुका है या खनन की अनुमति मिलने वाली है। ऐसी सिफारिश करना आईसीएफआरई की नीति में शामिल नहीं है।

विधायक ने अपने पत्र में बताया है कि उपरोक्त अध्ययन की पृष्ठभूमि में एनजीटी ने सुदीप श्रीवास्तव के प्रकरण में फैसला दिया है जिसमें स्टडी के लिए कतिपय प्रश्न निर्धारित किए गए। इन सभी प्रश्नों के जो उत्तर आईसीएफआरई रिपोर्ट में दिए गए हैं उसके अनुसार भी तारा, परसा, केते एक्सटेंशन और पीईकेबी में खनन की सिफारिश करना विरोधाभासी है।

उक्त चारों ओर ब्लॉक में से तारा में ही दो तिहाई से अधिक अत्यंत घना जंगल है। यह आईसीएफआरई की ही रिपोर्ट कहती है। यह ब्लॉक नो गो स्टडी में देशभर के 602 कोल ब्लॉक में दूसरा सबसे अधिक घने जंगल वाला ब्लॉक है। केते एक्सटेंशन ब्लॉक का 98 प्रतिशत घना जंगल है और चरनोई का जल ग्रहण क्षेत्र भी है। इसे संरक्षित करने की सिफारिश स्वयं आईसीएफआर ने की है परंतु किस तरह केते एक्सटेंशन को खनन योग्य माना गया, इसका कोई स्पष्टीकरण नहीं है। यही नहीं गेज झिंक और अटेम नदी का पानी हसदेव में ही आता है। अतः इसे अलग वाटर शेड मानकर अनुमति नहीं दी जा सकती।

एक अन्य महत्वपूर्ण घटनाक्रम में आईसीएफआरई की रिपोर्ट प्रस्तुत होने के बाद राज्य शासन ने लेमरू एलिफेंट रिजर्व की अधिसूचना जारी कर दी है। उक्त चारों ब्लॉक लेमुरू रिजर्व के 10 किलोमीटर के भीतर बफर जोन में आ रहे हैं। इस कारण से भी इन कोल ब्लॉक में खनन की अनुमति की सिफारिश पर पुनर्विचार कर उसे रद्द करना आवश्यक है।

विधायक ने कहा है कि स्वयं आईसीएफआरई ने वन्य जीव संबंधी विषयों पर डब्ल्यूआईआई को अध्ययन में अपने साथ लिया था। इसमें चेतावनी दी गई थी कि हसदेव अरण्य में किसी भी नए खनन से मानव हाथी संघर्ष बढ़ेगा। यह चेतावनी आईसीएफआरई ने अपनी रिपोर्ट में भी शामिल की है। इसके बावजूद डब्ल्यूआईआई सिफारिशों से हटकर 4 ब्लॉकों में खनन की अनुमति दिए जाने के लिए सहमति जताने का कोई वैज्ञानिक और तार्किक कारण नहीं है। डब्ल्यूआईआई की सिफारिशें आईसीएफआरई के लिए बंधनकारी है।

विधायक धर्मजीत सिंह ने पत्र में लिखा है कि राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम ने आईसीएफआरई को स्टडी के लिए फंडिंग की है। साथ ही निगम के एमओडी ऑपरेटर अदानी कंपनी ने आईसीएफआरई टीम की आवभगत की। इससे यह संदेह उठना स्वाभाविक है कि अपनी ही फाइंडिंग और डब्लू आई आई रिपोर्ट के खिलाफ आईसीएफआरई ने कोल ब्लॉक खनन की सिफारिश उनके प्रभाव में आकर की।

विधायक ने कहा कि आईसीएफआरई एक सम्मानित संस्था है। इस संस्था की‌ किसी भी रिपोर्ट की सत्यता की जांच और पहचान करने की जवाबदारी निदेशक की है। अतः इस अध्ययन से संबंधित समस्त दस्तावेज और डब्ल्यूआईआई  द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट और लेमरू एलीफेंट रिजर्व की अधिसूचना के प्रकाश में आईसीएफआरई द्वारा 4 कोल ब्लॉक तारा परसा केते एक्सटेंशन और पीईकेबी में खनन की सिफारिशों की समीक्षा करें और जैव विविधता से परिपूर्ण पूरे हसदेव क्षेत्र को संरक्षित करने की अनुशंसा करें।

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