रायपुर

राजस्थान बिजली बोर्ड हसदेव की खदानों के मामले में गुमराह कर रहा
25-May-2022 3:24 PM
राजस्थान बिजली बोर्ड हसदेव की खदानों के मामले में गुमराह कर रहा

बयानों की निंदा की छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन व संघर्ष समिति ने

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 25 मई।
हसदेव अरण्य में कोयला खदानों के मामले में पिछले दो तीन दिनों से राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के सीएमडी गलत बयानबाज़ी कर जनता को गुमराह कर असली मुद्दों से भटकाने की कोशिश कर रहे हैं।  गलत तथ्यों को प्रस्तुत कर नई खदानें शुरू करने का प्रयास किया जा रहा है। या तो राजस्थान बिजली बोर्ड को उसके एमडीओ  अदानी ने गलत जानकारी दी है अथवा यह सब जान-बूझकर अदानी को गैर-वाजि़ब मुनाफा पहुंचाने की कवायद है।
उक्त आरोप एक प्रेस नोट जारी कर हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के उमेश्वर सिंह आर्मो व छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने लगाया है।  

 राजस्थान बिजली बोर्ड के अनुसार ये खदाने पुरानी आवंटित हैं, जिन पर कोई सवाल नही होना चाहिए । परंतु बोर्ड के सीएमडी यह बताना भूल गए कि यहां की ग्राम सभाएं 2014 से लगातार इसके विरोध में प्रस्ताव ला रही है।  2010 में ही इस क्षेत्र को नो-गो क्षेत्र घोषित किया गया था और 2014 में यहां पीईकेबी वन स्वीकृति को एनजीटी ने निरस्त कर दिया था। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। साफ है कि कंपनी को एक दशक से अधिक से पता था कि ये खदानें पर्यावरणीय संवेदनशील क्षेत्र में है, जहां भारी जन-आक्रोश है। फिर भी उन्होने एक दशक से किसी विकल्प को तलाशना मुनासिब नही समझा और अब लोगों को उनके विरोध करने के संवैधानिक अधिकार से भी वंचित किया जा रहा है।

आर्मो व शुक्ला ने कहा कि जिन स्वीकृतियों का हवाला दिया जा रहा है वह फर्जी ग्राम सभा के तहत मिली है, जिसकी जांच की मांग ग्रामीण 2018 से ही कर रहे हैं। फिर भी बिना उनकी सुनवाई किए खनन का काम आगे बढ़ाना और विरोध को कुचलने की मांग करना एक असंवैधानिक बयान है। चूंकि राजस्थान बिजली बोर्ड एक सरकारी उपक्रम है उसको पता होना चाहिए कि पांचवी अनुसूची में ग्राम सभा का महत्वपूर्ण स्थान है।  फिर भी जबरन खदान चालू करना यह दर्शाता है कि वह अदानी को फायदा पहुंचाने में इतना मग्न है कि उसे संविधान की भी कोई चिंता नहीं।

राजस्थान बिजली बोर्ड के अनुबंध से केवल अदानी का फायदा होता है, जिसके तहत कंपनी एसईसीएल के मुक़ाबले महंगे दामों पर कोयला खरीदती है।  इसका उल्लेख मीडिया ने बार बार किया है और वर्तमान मुख्य मंत्री भुपेश बघेल ने भी इस पर आवाज़ उठाई थी।  फिर भी अनुबंध को रद्द करने की बजाय उसको आगे बढ़ाया जा रहा है। दूसरी ओर कोयला रिजेक्ट कर अदानी द्वारा गैर-वाजि़ब रूप से लगातार निकालकर बेचा जा रहा है, जिससे राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड  को वित्तीय नुकसान भी है।
प्रेस नोट में कहा गया है कि यदि मध्य प्रदेश में कोयला विकल्प खोजा होता तो राजस्थान कहीं सस्ते में कोयला मिलता। परंतु 2011 से ही अदानी को यह जि़म्मेदारी सौंप कर राजस्थान बिजली बोर्ड ने साफ कर दिया था कि उसे खनन में कोई रुचि ही नही और सारे खदान-संबंधी निर्णय अदानी अपने मुनाफे अनुसार ले सकेगा । ऐसे में बिजली बोर्ड द्वारा राजस्थान की आम जनता के नाम पर दुहाई देना उनके साथ धोखा है।

राजस्थान बिजली बोर्ड ने यह भी कहा है कि पूरे क्षेत्र के मात्र 2.2 प्रतिशत क्षेत्र में खनन होगा जिससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा। ऐसे में वे यह बताना भूल गए कि वास्तव में उनके और उनके एमडीओ अदानी कि मंशा वर्तमान परिचालित क्षेत्र तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे एक लाख 70  हजार हेक्टेयर क्षेत्र को उजाडऩे की है। राजस्थान बिजली बोर्ड ने केते एक्सटेंशन परियोजना की स्वीकृति भी मांगी है। क्या उनके एमडीओ अदानी ने उन्हें नहीं बताया कि बाकी कितनी खदानों के लिए उन्होंने स्वीकृति का आवेदन डाला है? क्या यहां उत्खनन क्षेत्र को सीमित रखने के लिए राजस्थान बिजली बोर्ड अपनी बाकी खदानों को निरस्त करने तैयार है और अदानी को खनन आगे बढ़ाने से रोकेगा, जो उनकी निरस्त वन-भूमि स्वीकृति की सबसे अहम् शर्त थी? वास्तव में खदान क्षेत्र अब तक सीमित केवल इसलिए हैं क्योंकि यहां ग्राम सभाएं संगठित हैं और खनन का विरोध कर रही हैं। पूरे क्षेत्र में एक भी खदान खुलने से समस्त क्षेत्र पर गंभीर असर पड़ेगा, जो हसदेव अरण्य संघर्ष समिति होने नहीं देगी। राजस्थान बिजली बोर्ड के अनुसार नई खदान शुरू न करने से कोयला खत्म हो जाएगा और 4340 मेगावाट का प्लांट बंद करना होगा।

वर्तमान परिचालित पीईकेबी की क्षमता 18 एमटीपीए है, जो 3600 मेगावाट ऊर्जा उत्पादन के लिए पर्याप्त है। बाकी बचे 740  मेगावाट के  लिए भी कोल इंडिया से लिंकेज उपलब्ध है।पीईकेबी फेज 1 से अब तक केवल 83 मिलियन तन उत्खनन किया गया है जबकि कंपनी दस्तावेज़ों तथा कोयला मंत्रालय के अनुसार यहां 150 एमटी कोयला भंडार है। यदि कोयला खत्म होने के कगार पर है तो यह बाकी बचा कोयला कहां चोरी हो गया?  इस संबंध में यह भी सवाल उत्पन्न होता है कि यदि वास्तव में पीईकेबी से कोयला खत्म हो गया है तो उसने फरवरी माह में ही 15 से 18 एमटीपीए क्षमता विस्तार की स्वीकृति क्यों मांगी थी? ऐसे में पावर प्लांट बंद करने की धम्की तथ्यों से परे एक गैर-जिम्मेदाराना बयान है।
प्रेस नोट में शुक्ला और आर्मो ने कहा है कि राजस्थान बिजली बोर्ड का कहना है कि खदान 9 साल से चल रही है फिर अब क्यों याद आया कि 9 साल पहले जो अस्पताल खोलने का वादा था वो अब पूरा किया जाएगा?  

इतने सालों में पर्यावरणीय स्वीकृति के उल्लंघन से जुड़े तथ्यों को क्योँ छुपाया जा रहा है जिस पर बार-बार ग्रामीणों ने आवाज़ उठाई और विभाग ने नोटिस भी जारी किए? क्यों केवल नई स्वीकृतियों के समय ही पर्यावरण तथा विकास की बात कही जाती है? जिन 8 लाख पेड़ों को लगाने की बात कही है वे कहां है? आईसीएफआरई भी अपनी रिपोर्ट में साफ चिंता जताई कि पेड़ों को लगाने और स्थानांतरण में बहुत नजरअंदाजी हुई है, जिससे पेड़ों के जीवित रहने पर बड़े सवाल हैं। वैसे भी हसदेव अरण्य एक प्राकृतिक जंगल है, जिसकी क्षति कभी वृक्षारोपण से पूरी नहीं की जा सकती।

शुक्ला व आर्मो ने हसदेव अरण्य क्षेत्र के ग्रामीणों तथा जनता से अपील की है कि गलत बयानबाज़ी में न आकर  वास्तविक हकीकत देखने स्वयं क्षेत्र का भ्रमण करें। के देखें कि इस जंगल को बचाने स्थानीय आदिवासी समुदाय एकत्रित होकर जल-जंगल-ज़मीन और भारतीय संविधान की रक्षा कर रहा है। राजस्थान राज्य विद्युत निगम की ओर से गलत तथ्यों को प्रस्तुत किया जाना निंदनीय है।

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