गरियाबंद
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजिम, 26 मई। प्राथमिक साख सहकारी समितियों ने कर्जदार किसानों को प्रति एकड़ एक क्विंटल कम्पोस्ट खाद लेना अनिवार्य कर दिया है। इधर समितियों में जो खाद पहुंची है उसकी गुणवत्ता संदिग्ध है। कम्पोस्ट में मिट्टी और पत्थर के टुकड़े देखकर किसान भडक़े हुए हैं। किसानों ने भी इस खाद की अनिवार्यता खत्म करने की मांग की है।
कम्पोस्ट खाद लेने के लिए गरियाबंद की बेलटुकरी सहकारी समिति पहुंचे किसान खाद की हालत देखकर नाराज हैं। स्थानीय किसान और अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के राज्य सचिव तेजराम विद्रोही ने बताया, खाद लेने से पहले उन लोगों ने खाद रखी जगह पर जाकर उसकी गुणवत्ता देखी। उसमें कम्पोस्ट के नाम पर मिट्टी और कंकड़ भरा हुआ था। इस पर हम किसानों ने आपत्ति की और बिना खाद लिए वापस आ गए। तेजराम का कहना है, सरकार ने सहकारी समितियों के माध्यम से सभी ऋणी किसानों को प्रति एकड़ एक क्विंटल गोबर खाद वर्मी कम्पोस्ट के नाम पर 10 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से देना अनिवार्य कर दिया है। कहा जा रहा है कि इससे जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा तथा रासायनिक खाद की कमी से निजात मिलेगी। विचार तो अच्छा है लेकिन वैसा काम हो नहीं रहा है। एक हजार रुपये प्रति क्विंटल की दर से दिए जाने वाला वर्मी कम्पोस्ट अमानक, वजन में कम और कंकड़-पत्थर से भरा हुआ है। विद्रोही का आरोप है, प्रदेश के अधिकांश गौठानों में गोबर खरीदी बंद है। जहां खरीदा जा रहा है, वहां खाद बनाने के लिए केंचुआ नहीं डाला गया। सूखे गोबर को पानी डालकर भुरभुरा कर दिया गया है और पैकेजिंग कर समितियों में भेज दिया गया है।
किसानों पर दोहरी मार
तेजराम विद्रोही ने कहा कि डीएपी की कीमत में प्रति बोरी में 150 रुपये की वृद्धि हुई है। कंपनियों की दबाव में निजी खाद विक्रेता, किसानों को लदान के रूप में जिंक, झाइम आदि पकड़ा दे रहे हैं। इससे किसान पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। इधर राज्य सरकार अमानक वर्मी कम्पोस्ट को जबरदस्ती देकर किसानों पर बोझ लाद रही है। किसानों को कहा जा रहा है, जब तक किसान सहकारी समितियों से वर्मी कम्पोस्ट नहीं लेगा तब तक उन्हें दी जाने वाली नगद ऋण स्वीकृत नहीं किया जाएगा। ऐसे में किसान पर दोहरी मार पड़ रही है।