बीजापुर
सामाजिक सौहार्द्र खराब करने पर अंकुश लगाने की मांग
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बीजापुर, 1 जून। कुरूख उरांव प्रगतिशील समाज छत्तीसगढ़ जिला इकाई बीजापुर ने संविधान में प्रावधानित अनुसूचित जनजाति की मूल अवधारणा के विपरीत सामाजिक सौहार्द्र बिगाडऩे के प्रयास पर अंकुश लगाने की मांग करते हुए राष्ट्रपति के नाम कलेक्टर बीजापुर को ज्ञापन सौंपा।
उरांव समाज के जिला अध्यक्ष इग्नासियूस तिर्की ने बताया कि ईसाई उरांव भी उन कुछ पर्वों को मानते हैं, जो सीधे तौर पर ईसाई धर्म के प्रतिकूल नहीं है और वे भारतीय ईसाई नहीं बल्कि ईसाई उरांव कहलाते हैं। ईसाई उरांव अपने धर्म परिवर्तन के बावजूद उरांव बने रहते हैं तथा जनजातियों के अधिकार और सुविधाओं के हकदार हैं, ऐसा एक निर्णय पटना उच्च न्यायालय के एक प्रकरण में निर्णय आया था।
इग्नासियूस तिर्की ने बताया कि 1951 के पूर्व भारत की जनगणना वर्ष 1911 में आदिवासियों का धर्म एनीमीज्म के नाम पर दर्ज किया गया। कार्तिक उरांव ने आदिवासियों के धर्म को आदि धर्म कहा, पद्मश्री डॉ. रामदयाल मुंडा ने भी आदिवासियों के धर्म को आदि धर्म का नाम दिया है। अगर आदिवासियों का धर्म आदि धर्म है तो जनजाति आदि मत तथा विश्वासों का परित्याग कर ईसाई व इस्लाम धर्म ग्रहण करने वाले व्यक्तियों को ही अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर किए जाने के लिए डीलिस्टिंग का प्रस्ताव लाया जा रहा है। अन्य धर्म जैसे हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्म ग्रहण करने वाले जनजातीय व्यक्तियों के प्रति जनजातीय सुरक्षा मंच की विशेष विद्वेष की भावना परिलक्षित होती है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 अंत:करण की और धर्म के आबाध रूप से मानने आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है। जनजाति सुरक्षा मंच की डीलिस्टिंग की मांग इस मौलिक अधिकार की मंशा के विपरीत है।