महासमुन्द
श्री गुरुनानक देव के आगमन के प्रमाण मिलने की बात कही
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
पिथौरा, 6 जुलाई। जिले के प्रसिद्ध हो चुके नानक सागर में श्री गुरुनानक देव जी के आगमन की ‘छत्तीसगढ़’ में प्रकाशित खबरों के प्रकाशन के बाद सोमवार को पंजाब के तलवंडी साहिब स्थित अकाल यूनिवर्सिटी के सहायक प्रोफेसर रिसर्च टीम के साथ नानक सागर पहुचे।अपने रिसर्च के पहले चरण में ही उन्होंने श्री गुरुनानक देव के यहां आगमन के प्रमाण मिलने की बात कही है।
सोमवार को नानक सागर में अचानक तलवंडी साहिब की अकाल यूनिवरसिटी के सहायक प्राध्यापक गुरनाम सिंह पहुंचे। उन्होंने नानक सागर से लगे गढफ़ुलझर स्थित गुरुद्वारा देखने के बाद अपने सहयोगी गुरविंदर सिंह दिल्ली वाले, जसपाल सिंह खैरा एवम सतबीर सिंह के साथ गुरु के नाम की जमीन देख कर समीप के ग्राम जेवरा में एक मात्र शिक्ख परिवार के गुरुद्वारा पहुचे।इसके बाद ग्रामीणों एवम गढफ़ुलझर गुरुद्वारा कमेटी वालो से चर्चा कर कोई 100 साल पुराना मिसल रिकॉर्ड का अवलोकन किया। इन सब के अवलोकन के बाद प्रथम दृष्टि में श्री गुरुनानक देव जी के यहां रुकने की पुष्टि हुई है।
उदासी यात्राओं में छग का उल्लेख नहीं
गुरनाम सिंह ने इस प्रतिनिधि द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में बताया कि श्री गुरुनानक देव जी की पहली उदासी यात्रा में अमरकंटक से पूरी जाने का उल्लेख ग्रंथों में दर्ज है, परन्तु छत्तीसगढ़ में रुकने का उल्लेख नही है। ओडिशा के कटक , पूरी एवम भद्रक तक रुकने की जानकारी दी जाती है। इस बीच किस रास्ते से गुरु जी की यात्रा हुई थी इसका उल्लेख कही नही है।इस पर लगातार रिसर्च भी किये जा रहे है।वे स्वयम इस रिसर्च हेतु कालाहाण्डी ओडिसा जा रहे थे।इसके लिए वे हरिशंकर रोड पहुचे थे।वहां की सिक्ख संगत ने उन्हें बताया कि गढफ़ुलझर में भी गुरु साहेब रुके थे।उनसे थोड़ी जानकारी मिलते ही उन्होंने कालाहांडी जाने की बजाय छत्तीसगढ़ का रुख कर सीधे बसना पहुचे और बसना से गढफ़ुलझर पहुच गया।गढफ़ुलझर गुरुद्वारा में में इनकी मुलाकात स्थानीय निवासी जसपाल सिंह से हुई।जसपाल सिंह ने इन्हें नानक सागर एवम जेवरा ले जाकर वहां के अत्यधिक वृद्धों से मिलकर बातचीत की।इस बातचीत में उन्हें ग्रामीणों ने कोई 100 साल पुराना मिसल रिकॉर्ड भी दिखा दिया जिसमें कोई 5 एकड़ कृषि भूमि श्री गुरुनानक देव जी के नाम है।इस रिकॉर्ड की सच्चाई परखने के बाद गुरु के यहां रुकने की बात निश्चित हो गयी।
जेवरा में बंजारा समाज बना रहा गुरु का मंदिर
इधर गुरनाम सिंह ने जेवरा जाकर वहां भी एक ही सिक्ख परिवार द्वारा बनाये गए गुरुद्वारा के साथ बंजारा समाज द्वारा श्री गुरुनानक देव जी के बन रहे विशाल मंदिर को भी देखा।इन सबके अवलोकन से पता चला कि छ ग में गुरुनानक देव जी के मानने वालो में बंजारा समाज भी सिक्खो के बराबर चल रहा है।
गुरु की निशानियों को आधुनिक बनाने से बचना चाहिए
तलवंडी पंजाब से आये प्रोफेसर गुरनाम सिंह ने वर्तमान में गुरु घर गुरुद्वारा बनवाने वालो से गुरु के बैठने के चबूतरे का आधुनिकी करण नही किये जाने की बात कहते हुए उसी चबूतरे को बतौर निशानी रखने की बात कही।उन्होंने यहां काम कर रहे सिक्खों से अपील की है कि गुरु की किसी भी निशानी का आधुनिकीकरण नही किया जाना चाहिए बल्कि उनके संरक्षण की आवश्यकता है।
इतिहास में छत्तीसगढ़ जोडऩे का प्रताव रखेंगे
गुरनाम सिंह ने बताया कि अब तक श्री गुरुनानक देव जी की उदासी यात्रा में छत्तीसगढ़ का उल्लेख नहीं है। परन्तु अब छत्तीसगढ़ में गढफ़ुलझर एवम शिवरीनारायण में गुरु के रुकने के प्रमाण मिले है। इस पर रिसर्च पूरा होने के बाद इसे जोडऩे हेतु चर्चा की जाएगी।
लीलेसर गुरुद्वारा में बंजारों से मिले
गुरनाम सिंह ने गढफ़ुलझर एवम नानक सागर में मीले तथ्यों के आधार पर विकासखण्ड के दूरस्थ ग्राम लीलेसर भी गए।लीलेसर बंजारा बहुल ग्राम है।इस ग्राम में बकायदा बंजारा लोगो द्वारा गुरुनानक का मंदिर बनवाया है।इस मंदिर में श्री गुरुनानक देव जी की प्रतिमा विराजित है।बंजारों के अनुसार समाज का या निजी कोई भी शुभ काम गुरुनानक मंदिर के दर्शन एवम पूजा के बाद ही प्रारम्भ किया जाता है।सिक्खों एवम बंजारा समाज द्वारा एक ही गुरु की इबादत करने से सिक्खों एवम बंजारा समाज मे अब एकरूपता पर भी रिसर्च किया जा रहा है। बहरहाल देर आयद दुरुस्त आयद की तरह सिक्खों के प्रथम गुरु के छत्तीसगढ़ के गढफ़ुलझर में रुकने की जानकारी छत्तीसगढ़ जनादेश के माध्यम से देश विदेश तक पहुचने के बाद अब देश भर के जानकार गुरुनानक देव जी की उदासी यात्रा की अब की अधूरी मानी जाने वाली जानकारी को पूर्ण करने रिसर्च में जुट गए है।
रिंकू ओबेरॉय की प्रसंशा
पंजाब से रिसर्च में आये गुरनाम सिंह ने रायपुर निवासी रिंकू ओबेरॉय द्वारा नानक सागर में गुरु के चरण पडऩे के मामले में गहन रिसर्च कर अनेक प्रमाण जुटाए है।इसके लिए हमे रिंकू ओबेरॉय की मुक्त कंठ से प्रसंशा की जानी चाहिए।