सरगुजा
अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी ‘स्व का संघर्ष- स्वाधीनता आंदोलन’ में शामिल हुए अजय चतुर्वेदी
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
अम्बिकापुर, 9 अगस्त। आजादी का अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में रायपुर, छत्तीसगढ़ में आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी स्व का संघर्ष- स्वाधीनता आंदोलन में सरगुजा अंचल के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर शोध कार्य कर रहे जिला पुरातत्व संघ सूरजपुर के सदस्य, राज्यपाल पुरस्कृत व्याख्याता अजय कुमार चतुर्वेदी ने 38 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की जीवन गाथा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत किया।
संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद नई दिल्ली, भारतीय इतिहास संकलन समिति छत्तीसगढ़ प्रांत एवं प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययन शाला पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर के संयुक्त तत्वावधान में 6 से 8 अगस्त 2022 तक आयोजित अंतरराष्ट्रीय शेध संगोष्ठी में देश- विदेश विद्वान वक्ताओं को आमंत्रित किया गया था।
शोधकर्ता अजय कुमार चतुर्वेदी ने बताया कि सरगुजा अंचल कुछ वीर सपूतों की जन्मभूमि और कुछ की कर्मभूमि है। देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने वाले वीर सपूतों के सामने आजादी के बाद जब जीविकोपार्जन की समस्या उत्पन्न हुई, तो वे रोजगार की तलाश में सरगुजा आ गए और कुछ सेनानियों ने नौकरी के लिए सरगुजा को अपना कर्म क्षेत्र बनाया। मंैने अभी तक सरगुजा संभाग के 38 स्वतंत्र संग्राम सेनानियों के परिजनों से मिल कर जीवन गाथा का लेखन कर लिया है, जिनमें सरगुजा जिले से 14, बलरामपुर जिले से 3, सूरजजपुर जिले से 2, कोरिया जिले से 11 और जशपुर जिले से 8 हैं। इनमें 26 नाम सरगुजा गजेटियर 1989 में दर्ज हैं, परंतु आज भी अनेक वीर सपूतों के नाम गुमनाम हैं। सरगुजा अंचल के ऐसे ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को ढ़ूंढ़ा और उनके परिजनों से संपर्क कर जीवन गााथा को लिख रहा हूं।
सरगुजा अंचल के अमर शहीद ब्रह्मचारी बाबू परमानंद
अजय चतुर्वेदी ने बताया कि मेरे शोध के दौरान सरगुजा अंचल के सूरजपुर जिले के एक गुमनाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ब्रह्मचारी बाबू परमानंद की जानकारी मिली। जिन्होंने 18 वर्ष 2 माह 8 दिन में जेल में ही देश की खातिर शहीद हो गए थे, किंतु आजादी के 75 साल बीत जाने के बाद भी इन्हें शहीद या स्वतंत्र संग्राम सेनानी का दर्जा नहीं मिल पाया। परिजन आज भी लगातार प्रयास कर रहे हैं।
आजादी की लड़ाई में जनजातियों का योगदान
देश की स्वतंत्रता के लिए अनेक वीर सपूतों ने आहुतियां दी थ़ी। सरगुजा अंचल के मूल निवासी जनजाति समुदाय के वीर सपूतों ने भी स्वतंत्रता संग्राम में आहुतियां दी है। सरगुजा अंचल से 3 जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मिले हैं। जिनमें बलरामपुर जिले के कुसमी तहसील सें महली भगत और शंकरगढ़ तहसील से राजनाथ भगत हैं। जिनका कर्म क्षेत्र सरगुजा अंचल रहा। सरगुजा जिले के अंबिकापुर तहसील से स्व. श्री माझीराम गोंड हैं, जिनकी जन्म भूमि और कर्म भूमि दोनों सरगुजा अंचल रही।
अजय चतुर्वेदी ने सरगुजा अंचल की कला, संस्कृति, पुरातत्व, लोक साहित्य, बोली, लोक गीत, लोक वाद्य और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर शोध कर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरगुजा को गौरवान्वित किया है। इनके शोध पत्र पर आधारित आलेख, रूपक वार्ता, आकाशवाणी अंबिकापुर, रायपुर और भोपाल से प्रसारित किया जाता है। इन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखी है। इनकी लिखी रचनाएं छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक में भी शामिल हैं। साथ ही अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोध पत्रों का प्रकाशन भी किया जा चुका है।