बस्तर

छत्तीसगढ़ के लघु इस्पात उत्पादकों को एसईसीएल द्वारा अगस्त से कोयला आपूर्ति रोकने के निर्णय का जोरदार विरोध करो...
18-Aug-2022 9:17 PM
छत्तीसगढ़ के लघु इस्पात उत्पादकों को एसईसीएल द्वारा अगस्त से कोयला आपूर्ति रोकने के निर्णय का जोरदार विरोध करो...

नक्सलियों ने जारी किया प्रेसनोट
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
जगदलपुर, 18 अगस्त।
एसईसीएल द्वारा  छत्तीसगढ़ के लघु इस्पात उत्पादकों को अगस्त से कोयला आपूर्ति रोकने के निर्णय का भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी कड़े शब्दों में निंदा करती हैं,  और इसे केंद्र की भाजपा सरकार की छोटे व मध्यम पूंजीपति विरोधी एवं देशी विदेशी कॉरपोरेटपरस्त नीति करार देती है।

नक्सलियों की दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रवक्ता विकल्प ने प्रेसनोट जारी कर कहा कि यहां यह गौर करने वाली बात है कि छत्तीसगढ़ में एसईसीएल द्वारा हर वर्ष 15 करोड़ टन से भी अधिक कोयले का उत्पादन होता है और कोयले के उत्पादन में छत्तीसगढ़ को देश में दूसरा स्थान प्राप्त है. इसके बावजूद राज्य के स्टील उत्पादकों को प्रति माह उनकी जरूरत के 15 करोड़ टन कोयले की जगह उन्हें सिर्फ 60 लाख टन प्रति माह ही दिया जा रहा था।

राज्य में उत्पादित कोयले के अधिकांश हिस्से को राज्य के बाहर बड़े दलाल पूजीपतियों को दिया जाता रहा है। पिछले 6 माह से देश में उत्पन्न कोयले के सकट से निपटने केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार से सलाह-मशविरा किए बगैर ही अगस्त से छत्तीसगढ़ के स्टील प्लांटों कुछ अन्य इकाइयों के लिए कोयले की आपूर्ति बंद करने का निर्णय लिया गया है जो कि विदेशी व देश के दलाल बड़े पूजीपतियों के मुनाफे के लिए छोटे व मध्यम पूजीपतियों एवं उन कारखाने में काम करने वाले लाखो मजदूरों की बलि चढ़ाने वाला है।

आगे कहा कि कोयले की आपूर्ति बंद करने की वजह से राज्य में मौजूद सैकड़ों लघु इस्पात संयंत्रों की होने वाली तालाबंदी से इन मजदूरों का जीवन दूभर हो जाएगा, उनकी आजीविका छिन जाएगी, जिसकी कोई परवाह मोदी-शाह को नहीं है, क्योंकि भाजपा और उसकी सरकार मजदूर-किसान- दलित-आदिवासी विरोधी ही नहीं बल्कि छोटे व मध्यम पूजीपति विरोधी भी है, इसलिए हमारी स्पेशल जोनल कमेटी छोटे एवं मध्यम स्टील उत्पादकों का आह्वान करती है कि वे केंद्र सरकार के इस तानाशाहीपूर्ण कदम का जोरदार विरोध करें एवं हर माह उनकी जरूरत के 1.5 करोड़ टन कोयले की आपूर्ति करने, उसके बाद ही बचे हुए माल को राज्य के बाहर भेजने की मांग को लेकर मजदूरों को साथ लिए आंदोलन का रास्ता अपनाएं।

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