राजनांदगांव
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
गंडई, 20 सितंबर। छत्तीसगढ़ शासन संचालनालय संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग द्वारा संस्कृति भवन रायपुर में ‘छत्तीसगढ़ की संस्कृति संवाहक सरितायें’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें गंडई नगर के साहित्यकार व संस्कृति कर्मी डॉ. पीसी लाल यादव ने व्याख्यान दिया। मुख्य अतिथि अमरजीत भगत और डॉ. लक्ष्मी शंकर निगम की अध्यक्षता में कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। देशभर से लगभग 90 अध्येयताओं ने अपना-अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया।
इस अवसर पर प्रथम दिवस तीसरे सत्र में डॉ. यादव ने सुरही नदी घाटी की सभ्यता व संस्कृति विषय पर पीपीटी के माध्यम से अपना रोचक व्याख्यान प्रस्तुत किया।
ज्ञात हो कि सुरही नदी नवगठित जिला खैरागढ़-छुईखदान-गंडई की मुख्य नदी है, जो मैकल पर्वत श्रेणी के बंजारी घाट से निकलकर बेमेतरा जिला के कुम्हीगुडा गांव के पास शिवनाथ नदी में मिलती है। डॉ. यादव ने अपने शोध पत्र के माध्यम से बताया कि सुरही नदी सदानीरा है।
यह गंडई अंचल की जीवनदायिनी नदी है। यह गंडई अंचल की जीवनदायिनी नदी है। यह छोटी किन्तु महत्वपूर्ण नदी है। इसमें 16 धाराएं शामिल है, इसलिए इसका नाम सोरह से सुरही पड़ा। इसके उद्गम से लेकर संगम तक दोनों तटों पर मंडीप खोल गुफा, डोंगेश्वर महादेव, नर्मदा कुंड, भंवरदाह, भड़भड़ी, घटियारी, कटंगी, बिरखा, कृताबंस, पंडरिया, गंडई, टिकरीपारा, बागुर, तुमड़ीपार, देऊरभाना, देऊरगांव बोरतरा, मोहगांव, देवकर, देवरबीजा, सहसपुर जैसे अनेक प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण पुरातात्विक व ऐतिहासिक महत्व के पूरा स्थल है।
अमरपुर, कर्रा नाला, नर्मदा व देवरी इसकी सहायक नदियां हैं। गंडई जिले का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नगर है। इस नगर का नाम करण गंगई देवी के नाम पर हुआ है। गंडई आर्थिक सामाजिक, सांस्कृतिक, पुरातात्विक व व्यावसायिक दृष्टि से प्रदेश में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। सुरही नदी घाटी की सभ्यता व संस्कृति की विशेषताओं को प्रभावी और रोचक ढंग से प्रस्तुत कर डॉ. पीसीलाल यादव ने उपस्थित पूरा विदों व अध्येयताओं की तालियां बटोरी।
सत्र की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध पूरा विद प्रोण्दिनेश नंदिनी परिहार और संयोजन पुरातत्ववेत्ता डॉ. शंभू नाथ यादव ने की। डॉ. यादव की इस प्रस्तुति पर नगर के संस्कृति कर्मी व कला प्रेमीजनों ने गंडई की गौरव-गरिमा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए उन्हें बधाइयां दी। इसके पहले भी डॉ. पीसी लाल यादव ने गंडई के पुरातत्व पर ‘जहां पाषण बोलते हैं’ नामक किताब लिखकर लोगों का ध्यान इस आकृष्ट किया है।