महासमुन्द

83 रुपए लीटर में मिट्टी तेल खरीदने कोई तैयार नहीं
24-Sep-2022 2:52 PM
83 रुपए लीटर में मिट्टी तेल खरीदने कोई तैयार नहीं

पीडीएस संचालक भी अब स्टॉक नहीं मंगा रहे

ग्रामीण जिंदगी एक बार फिर से लकड़ी, चूल्हे और धुंए के बीच, तमाम सरकारी दावे धरे के धरे रह गए

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 24 सितम्बर।
महासमुंद जिले में पिछले 5 महीने से मिट्टी तेल की डिमांड ही नहीं है। बीपीएल हितग्राही महंगाई के चलते न तो उज्ज्वला गैस का उपयोग कर पा रहे हैं और न ही केरोसिन का। उनकी जिंदगी एक बार फिर से लकड़,ी चूल्हे और धुंए के बीच सिमट कर रह गई है।  तमाम सरकारी दावे धरे के धरे रह गए हैं। केरोसीन की बढ़ी हुई कीमत ने बीपीएल हितग्राहियों के घर का बजट बिगाड़ दिया है। बढ़ी कीमत की वजह से जिले के 2.72 लाख हितग्राहियों में से अधिकतर ने अब केरोसीन मिट्टी का तेल खरीदना लगभग बंद कर दिया है। वहीं पीडीएस संचालक अब केरोसीन का स्टॉक ही नहीं मंगा रहे हैं। उनका कहना है कि अब मिट्टी तेल की खपत नहीं के बराबर हो चुकी है। पहले गैस सिलेंडर की मंहगी कीमत की वजह से उज्जवला हितग्राही सिलेंडर नहीं खरीद पा रहे थे। अब 83 रुपए से अधिक हो चुकी मिट्टी तेल की कीमत ने भी गरीब  तबके के बजट को खराब कर दिया है।

गौरतलब है कि महासमुंद जिले में 2 लाख 72 हजार बीपीएल हितग्राही हैं। जिन्हें शासन की गाइडलाइन के मुताबिक पीडीएस सिस्टम के माध्यम से 1 लीटर मिट्टी का तेल प्रति माह वितरित किया जाता है। बीते कुछ महीनों में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में जबरदस्त उछाल आया। इसके चलते डीजल-पेट्रोल के साथ ही गैस के भी दाम बढ़े और मिट्टी तेल की बेतहाशा बढ़ती कीमतों की वजह से अब हितग्राही मिट्टी तेल खरीदना लगभग बंद कर चुके हैं। लिहाजा इसकी खपत भी काफी कम हो गई है।

महासमुंद के वार्डों में संचालित पीडीएस राशन दुकानों में मिट्टी तेल का स्टाक मौजूद रहने के बावजूद को हितग्राही इसे खरीदने के लिए तैयार नहीं हैं। कहा जा रहा है कि स्टॉक अधिक दिन रखने पर केरोसिन की मात्रा घट जाती है इसलिए नुकसान उठाना पड़ता है। मिट्टी तेल की प्रति लीटर कीमत 83 रुपए से ज्यादा है जिसकी वजह डिमांड ही कम हो गई है। संचालकों की मानें तो पिछले 5 महीने से मिट्टी तेल की डिमांड ही नहीं है। बीपीएल हितग्राही महंगाई के चलते न तो उज्ज्वला गैस का उपयोग कर पा रहे हैं और न ही केरोसिन का। उनकी जिंदगी एक बार फिर से लकड़ी चूल्हे और धुंए के बीच सिमट कर रह गई और तमाम सरकारी दावे धरे के धरे रह गए हैं।

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