बालोद
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बालोद, 25 सितंबर। बालोद जिले के ग्राम झलमला स्थित मां गंगा मैया शक्ति पीठ में क्वार नवरात्रि पर्व की तैयारियां जोरों पर है प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी मान गंगा मैया मंदिर में क्वांर नवरात्रि का अपर्व बड़े धूमधाम से मनाया जायेगा, जिसके लिए तैयारियां अंतिम चरण पर है।
गंगा मैया मंदिर समिति के प्रबंधक सोहन लाल टावरी ने बताया कि इस बार पवित्र गंगा मैया मंदिर में 61 की ज्योति कलश 850 तेल ज्योति कलश एवं 51 अतिरिक्त तेल ज्योति कलश शीतला माता मंदिर में प्रज्ज्वलित किए जाएंगे आपको बता दें कि मां गंगा मैया मंदिर का इतिहास काफी प्राचीन है।
नवरात्र हिन्दुओं का विशेष पर्व है इस पावन अवसर पर मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना की जाती है. इसलिए यह पर्व नौ दिनों तक मनाया जाता है. वेद-पुराणों में मां दुर्गा को शक्ति का रूप माना गया है जो असुरों से इस संसार की रक्षा करती हैं. नवरात्र के समय मां के भक्त उनसे अपने सुखी जीवन और समृद्धि की कामना करते हैं. नवरात्र एक साल में चार बार मनाई जाती है. इस अवसर पर देश के कई हिस्सों में मेलों और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
पूड़ी सब्जी की व्यवस्था यथावत
महंगाई के दौर में भी गंगा मैया मंदिर में भक्तों की सेवा के लिए 5 में पुड़ी सब्जी की व्यवस्था की जा रही है प्रत्येक वर्ष यह व्यवस्था की जाती है और 5 रुपए में चार पुड़ी सहित आलू व मटर की सब्जी दी जाती है इसे खाकर दूर दराज से आए हुए भक्तों काफी तृप्त महसूस करते हैं प्रबंधक ने बताया कि इस बार भी यथावत पूड़ी सब्जी की सेवा जारी रहेगी
लगभग 133 साल पुरानी है झलमला में नहर किनारे अवतरण की कथा
लगभग 133 साल पहले जिले की जीवन दायिनी तांदुला नदी पर नहर का निर्माण चल रहा था। उस दौरान झलमला की आबादी मात्र 100 थी। सोमवार को वहां बड़ा साप्ताहिक बाजार लगता था। बाजार में दूर-दराज से पशुओं के झुंड के साथ बंजारे आया करते थे। उस दौरान पशुओं की संख्या अधिक होने के कारण पानी की कमी महसूस की जाती थी। पानी की कमी को दूर करने बांधा तालाब की खुदाई कराई गई। गंगा मैय्या के प्रादुर्भाव की कहानी इसी तालाब से शुरू होती है।
स्वप्न के बाद प्रतिमा को निकाला बाहर
देवी ने गांव के गोंड़ जाति के बैगा को स्वप्न में आकर कहा कि मैं जल के अंदर पड़ी हूं। मुझे जल से निकालकर मेरी प्राण-प्रतिष्ठा करवाओ। स्वप्न की सत्यता को जानने के लिए तत्कालीन मालगुजार छवि प्रसाद तिवारी, केंवट और गांव के अन्य प्रमुखों को साथ लेकर बैगा तालाब पहुंचा। केंवट द्वारा जाल फेंके जाने पर वही प्रतिमा फिर जाल में फंस गई। फिर प्रतिमा को बाहर निकाला गया, उसके बाद देवी के आदेशानुसार छवि प्रसाद ने अपने संरक्षण में प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई। जल से प्रतिमा निकली होने के कारण गंगा मैय्या के नाम से विख्यात हुई।
बार-बार जाल में फंसती रही मूर्ति
मंदिर के व्यवस्थापक सोहन लाल टावरी ने बताया कि एक दिन ग्राम सिवनी का एक केवट मछली पकडऩे के लिए इस तालाब में गया। जाल में मछली की जगह एक पत्थर की प्रतिमा फंस गई। केंवट ने अज्ञानतावश उसे साधारण पत्थर समझ कर फिर से तालाब में डाल दिया। इस प्रक्रिया के कई बार पुनरावृत्ति से परेशान होकर केंवट जाल लेकर अपने घर चला गया।
अंग्रेजों ने प्रतिमा को हटाने का बहुत प्रयास किया
बताया जाता है कि तांदुला नहर निर्माण के दौरान गंगा मैया की प्रतिमा को वहां से हटाने बहुत प्रयास किए। ऐसी मान्यता है कि इसके बाद अंग्रेज एडम स्मिथ सहित और अन्य अंग्रेज साथियों की मौत हो गई थी।