राजनांदगांव
स्वास्थ्य सचिव प्रसन्ना ने कहा जांच के बाद होगी कार्रवाई
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 28 सितंबर। राजनांदगांव मेडिकल कॉलेज की चिकित्सकीय व्यवस्था मौजूदा पदस्थ ज्यादातर डॉक्टरों के दुर्ग-भिलाई से आवाजाही ने बिगाड़ दी है। डीन और अधीक्षक के कई बार समझाईश का चिकित्सकों पर असर नहीं पड़ रहा है। प्रशासनिक खामियों ने मरीजों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। जिसके चलते मेडिकल कॉलेज में दाखिल मरीजों को डॉक्टरों की गैरमौजूदगी से तय समय पर उपचार नसीब नहीं हो रहा है।
डीन डॉ. रेणुका गहने और अधीक्षक डॉ. प्रदीप बेक की हिदायत का मातहत चिकित्सकों पर असर नहीं पड़ रहा है। राजनंादगांव मेडिकल कॉलेज के स्थापना के बाद से न सिर्फ राजनंादगांव, बल्कि कवर्धा और बालोद जिले की एक बड़ी आबादी उपचार के लिए रोजाना पहुंचती है। वहीं राजनांदगांव की बढ़ती शहरी आबादी का मेडिकल कॉलेज पर भार बढ़ा है। उम्मीद के मुताबिक मेडिकल कॉलेज में चिकित्सकीय व्यवस्था पटरी पर नहीं है। इसके पीछे ज्यादातर चिकित्सक भिलाई और दुर्ग में बसे हुए हैं। लिहाजा रोज डॉक्टर निर्धारित समय पर नहीं पहुंच रहे हैं। जबकि डीन और अधीक्षक मेडिकल कॉलेज के परिसर में ही निवासरत हैं।
बताया जा रहा है कि मेडिकल कॉलेज के कई चिकित्सक निजी प्रेक्टिस पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। उनका भिलाई-दुर्ग के कई चिकित्सकों से सीधा संपर्क है। वहीं निजी क्लीनिक में वक्त देने के लिए चिकित्सक जल्द ही ड्यूटी से रवाना हो रहे हैं। इस संंबंध में राज्य स्वास्थ्य विभाग के सचिव आर. प्रसन्ना ने ‘छत्तीसगढ़’ से कहा कि चिकित्सकों की आवाजाही उचित नहीं है। मेडिकल प्रबंधन को व्यवस्था को बेहतर बनाने निर्देश दिए जाएंगे। साथ ही शिकायत आने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। बताया जा रहा है कि पिछले कई सालों से आला अफसरों का आकस्मिक निरीक्षण नहीं होना भी व्यवस्था को कमजोर कर रहा है।
मेडिकल कॉलेज निर्माण के बाद एक्का-दुक्का मौका में ही राज्य के स्वास्थ्य मंत्री और अन्य शीर्ष अफसरों ने मेडिकल कॉलेज का रूख किया। करीब 7 साल पहले अस्तित्व में आए इस मेडिकल कॉलेज में उपचार की उम्मीदों पर खराब व्यवस्था पानी फेर रही है। जबकि मेडिकल कॉलेज परिसर में चिकित्सकों के स्थाई ठिकाने के लिए बहुमंजिला इमारते बनाई गई है। स्टॉफ नर्स और अन्य तकनीकी कर्मी मेडिकल कॉलेज परिसर में ही बस गए हैं। जबकि चिकित्सकों ने पड़ोसी शहरों से ही आने-जाने का चलन बनाए रखा है। यानी चिकित्सकों को निजी कमाई की ज्यादा फिक्र होने से मेडिकल कॉलेज से मिलने वाले उचित उपचार से रोगी दूर हो रहे हैं।