सरगुजा

उजड़ गया परसा का हरिहरपुर जंगल, ग्रामवासी अब अंतिम संस्कार की तैयारी में
29-Sep-2022 8:04 PM
उजड़ गया परसा का हरिहरपुर जंगल, ग्रामवासी अब अंतिम संस्कार की तैयारी में

  20 हजार बड़े पेड़ व लगभग एक लाख छोटे पौधों की चढ़ी बलि-ग्रामीण   

केते के विस्थापित 130 परिवार के सदस्यों की सुध लेने वाला अब कोई नहीं

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
अम्बिकापुर/उदयपुर, 29 सितंबर।
सरगुजा जिला के उदयपुर में परसा ईस्ट केते बासेन फेस 2 के लिए ग्रामीणों के विरोध के बीच हरिहरपुर जंगल में पेड़ों की कटाई का काम पूरा हो गया है।

वन विभाग के मुताबिक यहां 43 हेक्टेयर में 7000 पेड़ काटा जाना बताया है तो वहीं वहां के स्थानीय ग्रामीण का कहना है कि कंपनी ने यहां 200 आरा इलेक्ट्रिक मशीनों के माध्यम से 20 हजार बड़े पेड़ काटे हैं एवं लगभग एक लाख छोटे पेड़ों को जेसीबी के माध्यम से रौंद दिया गया।

ग्रामीणों का कहना है कि बड़े पेड़ों के साथ लगभग एक लाख छोटे पौधे को रौंदा गया है, जो 4 साल में बड़े पेड़ का आकार ले लेता, इसका हिसाब न तो कंपनी के पास है और न ही विभाग के पास। इन छोटे पौधों को बड़े होने से पहले ही उजाड़ दिया गया, जिसका हिसाब किसी के पास नहीं है। जिस प्रकार से सरगुजा प्रशासन ने पुलिस बल के दम पर व ग्रामीणों को नजरबंद कर यहां पेड़ों की कटाई करवाई, उसके विरोध में ग्रामीण अब पेड़ों की कटाई का शोक मना रहे हैं और अब विरोध स्वरूप सभी ग्रामवासी अब अंतिम संस्कार करने की तैयारी में हंै। ग्रामीण पेड़ों की हत्या व मृत्यु पर विधिवत अंतिम संस्कार की तैयारी में हैं। ग्रामीणों ने बताया कि वह दशकर्म व तेरहवीं का कार्यक्रम भी करेंगे।

पत्रकारों को भी नहीं जाने दिया हरिहरपुर
परसा के हरिहरपुर ग्राम में कोल खदान के लिए रिपोर्टिंग करने गए पत्रकारों को भी पुलिस प्रशासन ने बीच रास्ते में रोक दिया। हरिहरपुर जहां जंगल में पेड़ो की कटाई हो रही थी, उन्हें मौके पर नहीं जाने दिया गया। अंबिकापुर से गए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व वहां के स्थानीय पत्रकारों ने नहीं जाने देने को लेकर जब पुलिस प्रशासन से सवाल-जवाब किया तो उन्हें कहा गया कि यहां किसी को भी आने की अनुमति नहीं है। पुलिस प्रशासन के इस रवैया से पत्रकारों में भी काफी आक्रोश का माहौल है। प्रश्न यह उठता है कि जब सारी चीजें पारदर्शिता के साथ हो रही थी तो आखिर क्यों वहां पत्रकारों को जाने से पुलिस द्वारा रोका गया।

केते के विस्थापित 20 ग्रामीण ही बचे हैं बासेन गांव में
वर्ष 2012-13 में परसा ईस्ट केते बासेन के प्रथम फेस में कोल उत्खनन के लिए केते गांव के लगभग 130 परिवारों को बासेन गांव में विस्थापित तो कर दिया गया, पर इनकी सुध लेने वाला न तो कंपनी कभी सामने आया और न ही प्रशासन। आज स्थिति यह है कि बासेन में विस्थापित 130 परिवारों में से लगभग 20 परिवार ही बचे हुए हैं, शेष परिवार कहां गए, इसकी जानकारी किसी को नहीं है। वर्तमान में यह स्थिति है कि केते गांव पूरी तरह से उजड़ गया है और वहां वीरानी छाई हुई है।

परसा हरिहरपुर के ग्रामीणों का कहना है कि अब यही स्थिति यहां भी आने वाली है। सारा का सारा गांव विरान व जंगल ठूंठ में तब्दील हो जाएगा। बहरहाल, हरिहरपुर गांव में तिरालिस हेक्टेयर में लगे छोटे-बड़े सभी पेड़ों की कटाई का काम कोयला उत्खनन के लिए पूरा हो गया है।

जिले के बड़े प्रशासनिक अधिकारी कभी नहीं पहुंचे प्रभावित ग्रामीणों के पास
परसा ईस्ट केते बासेन फेस 2 के लिए पेड़ों की कटाई एवं ग्रामीणों की समस्या व उनकी मंशा जानने जिला के बड़े प्रशासनिक अधिकारी कभी ग्रामीणों के बीच नहीं पहुंचे।

ग्रामीणों ने बताया कि उनके गांव में डिप्टी कलेक्टर व एसडीएम स्तर के ही अधिकारी पहुंचे और उनसे बात की। उन्होंने अपनी समस्या, मांग व विरोध को लेकर अवगत कराया पर उनकी बातों पर विचार नहीं किया गया। ग्रामीणों का कहना है कि जिले के बड़े प्रशासनिक अधिकारी कभी उनके बीच में नहीं आए और न ही उनकी समस्या, मांग और बातें सुनी। जब पेड़ कटवाने की बारी आई तो वह उदयपुर सर्किट हाउस तक पहुंचे और वहां से लौट गए।

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