सरगुजा

पीईकेबी कोल खदान की अनुमति निरस्त करने एनसीपी प्रदेश उपाध्यक्ष ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र
29-Sep-2022 8:23 PM
पीईकेबी कोल खदान की अनुमति निरस्त करने एनसीपी प्रदेश उपाध्यक्ष ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र

भारत सरकार को वन विभाग द्वारा गलत जानकारी देने का लगाया आरोप

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
अम्बिकापुर, 29 सितंबर।
सरगुजा जिला के उदयपुर में संचालित परसा ईस्ट केते बासेन की कोयला खदान की अनुमति को निरस्त करने एनसीपी के प्रदेश उपाध्यक्ष अनिल सिंह ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र प्रेषित किया है।

एनसीपी के प्रदेश उपाध्यक्ष अनिल सिंह ने पत्र में आरोप लगाया है कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य जिले सरगुजा में भारतीय वन सेवा के अधिकारियों के द्वारा गलत जानकारी वन एवं पर्यायवरण जलवायु मंत्रालय भारत सरकार को भेजकर जिले के उदयपुर विकासखण्ड के परसा घाटबर्रा, तारा क्षेत्र में कोयला खनन की अनुमति ली गई है, जिसे निरस्त करने की मांग की गई है।

बताया गया कि छत्तीसगढ़ का सरगुजा जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है, जहां पर जंगली हाथी का रहवास क्षेत्र है। इस क्षेत्र में सेड्यूल 01 के अन्य जीव भी हैं वहीं पहाड़ी कोरवा, पण्डो विशेष जनजाति का भी रहवास क्षेत्र है। यहां पदस्थ वनमण्डलाधिकारी सरगुजा वनमण्डल अम्बिकापुर,मुख्य वनसंरक्षक सरगुजा वनवृत्त ने एवं वनपरिक्षेत्राधिकारी ने आदिवासियों के हितों को दरकिनार रखते हुए हाथी का रिवर्ज न होना बताया है। इसकी सूचना वन एवं पर्यायवरण जलवायु मंत्रालय भारत सरकार को भेजी गई है। यह प्रथम दृष्टया गंभीर अपराधिक कृत्य प्रतीत होता है।इस छेत्र में हाथियों व अन्य जीवों का आवागमन बना हुआ है,इस क्षेत्र के 10 से 15 किमी तक की दूरी तक माइनींग खदान नहीं खोला जाना चाहिए न ही खुदाई होनी चाहिए। हाथी सेड्यूल 01 विश्व का विशेष विलुप्त प्रजाति का वन्य जीव है। इसलिए सरगुजा जिले में जंगल की कटाई कर लाखों पेड़ काटा नहीं जाना चाहिए इससे पर्यायवरण एवं जलवायु पर भारी असर पड़ेगा।

लगभग 30 वर्ष पूर्व जशपुर जिले में स्व. राजीव गांधी पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा था कि आदिवासियों की मूल संसकृति जंगलों में है उसकी रक्षा किसी भी कीमत पर होनी चाहिए उसकी भी अनदेखी हो रही है।वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट प्लान केन्द्र सरकार द्वारा वन अधिकारियों से मांगा जाता है। छत्तीसगढ़ के वन अधिकारियों द्वारा वन जीवों का जान बुझकर उल्लेख नहीं किया जाता है। गुमराह किया जाता है, इसलिए वन एवं पर्यायवरण मंत्रालय अनुमति दी जाती है।

सरगुजा के उदयपुर विकास खण्ड क्षेत्र में अनेक आदिवासी परिवार की आजीविका इन्हीं वन क्षेत्रों पर निर्भर है।पेडों की कटाई होने से इनका पलायन होगा व इनको जंगल छोड़ शहर एवं जुग्गी में रहने के लिए विवश होंगे,इससे इनकी मूल संस्कृति आदिवासी संस्कृति पुरी तरह समाप्त हो जायेगा। सरगुजा जिले के विगत पांच वर्ष में हाथियों से मारे जाने वाले आदिवासियों को करोडों रुपये का भुगतान हुआ है। यह प्रमाणित करता है कि यह हाथी रहवास क्षेत्र है।

सरगुजा जिले के विकास खण्ड उदयपुर के घाटबर्रा, तारा क्षेत्र में राजस्थान विद्युत पावर लिमिटेड को जो कोयला खुदाई का क्षेत्र दिया गया है उसकी जांच सी.बी.आई एवं अन्य उच्च स्तरीय जाचं एजेंसी से जांच कराई जाये।इससे लगा हुआ क्षेत्र हसदेव नदी के पास लेमरु हाथी रिजर्व क्षेत्र बनाया गया है उसे भी अनदेखी किया जा रहा है।कोल खनन क्षेत्र से लेमरू हाथी रिजर्व 10 से 15 किमी के दूरी में ही है,इसे भी अनदेखा किया जा रहा है।इस क्षेत्र में लगातर हाथियों का विचरण है इसलिए किसी भी प्रकार का माइनिंग एवं अन्य गतिविधि नहीं किया जाना चाहिए।

घने जंगलों को काटे जाने से नदी का जल स्तर गिरेगा, तापमान में कई तरह से फर्क पडेगा,आदिवासियों के जनजीवन पर फर्क पड़ेगा, खेती पर बुरा असर पड़ेगा। पर्यावरण को भी भारी नुकसान होगा और तापमान में भारी वृद्धि होगा। इन सभी स्थिति को देखते हुए इस कोयला उत्खनन राष्ट्रहित एवं आदिवासी हित जांच कराकर अनुमति को तत्काल निरस्त की जाये।

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