सुकमा

रँगईगुड़ा में 24 घंटे में 4 मौतें, गांव में दहशत
03-Oct-2022 8:39 PM
रँगईगुड़ा में 24 घंटे में 4 मौतें, गांव में दहशत

   रेगडग़ट्टा की तरह पैरों में सूजन से जूझ रहे आधा दर्जन   

रँगईगुड़ा से लौटकर अमन सिंह भदोरिया

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दोरनापाल,  3 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)।
सुकमा जिले के धुर नक्सल प्रभावित कोर्रापाड़ गांव में 24 घंटे के अंदर कुल 4 मौतों का मामला सामने आया है । जिस वजह से गांव में मातम पसर गया है और लोगों में एक तरह का डर भी बना हुआ है।

इन सबके बीच ‘छत्तीसगढ़’ की टीम कोर्रापाड़ पंचायत के रंगईगुड़ा पहुंचीं। हमारी टीम ने पाया कि वो गांव में रहकर घटा गांव की तरह ही कई लोग शरीर में सूजन की समस्या से जूझ रहे हैं।

‘छत्तीसगढ़’ की टीम ने शवों का अंतिम संस्कार करते देखा। वहीं मौजूद ग्रामीणों ने बताया कि 24 घंटे के अन्तराल ये सारी घटना हुई, जिसमें मडक़म सुकड़ी पति पोज्जा उम्र 70 वर्ष , पदम देवे पति हूंगा उम्र 75 वर्ष ,मडक़म मुक्का पिता हड़मा उम्र 32 वर्ष , कुहराम मुया पिता गंगा उम्र  25 वर्ष (पत्नी की अज्ञात बीमारी से मौत 1 साल पहले ) इससे गांव में मातम के साथ डर भी बन गया वो गांव में और मौत नहीं चाहते। इसके अलावा 2 लोगों को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

सरपंच राजू ने बताया कि गांव में पैर की सूजन की समस्या 15 दिन पहले पता चली थी, मैंने बीमार लोगों को जिला अस्पताल बेहतर उपचार के लिए ले जाने की तैयारी की थी पर मरीजों द्वारा गांव के वड्डे ( बैगा ) से झाड़ फूंक का इलाज करवाने की जिद्द की और अस्पताल जाने से इंकार कर दिया । मौके पर पहुंची स्वास्थ्य विभाग की टीम ने ग्रामीणों की जांच की।

भ्रांतियां ग्रामीणों को कर रही स्वास्थ्य सुविधाओं से दूर
गौरतलब है कि सुकमा जिले के अंदरुनी इलाके में ज्यादातर लोग अशिक्षित है जो आसानी से तरह-तरह की भ्रांतियों को विश्वास में ले लेते हैं । इसी तरह की स्थिति रेगडग़ट्टा में बनी थी औऱ अब रंगाइगुड़ा में बन रही है। ‘छत्तीसगढ़’ की टीम जब गांव पहुंची, तब मारे गए लोगों के परिवार का टेस्ट हो रहा था। इसके साथ टीम ने गांव के उस झाड़ फूंक करने वाले बैगा का टेस्ट किया जो मारे गए 2 बीमारों का झाड़-फूंक कर रहा था।

इस दौरान ये भैया भी पैर की सूजन से जूझने लगा टेस्ट में इसका मलेरिया पॉजिटिव भी आया, जिसके बाद डॉ. बक्शी ने उसे दवा खिलाने का प्रयास किया। जिस पर बैगा जिद पर अड़ गया कि मरना पसंद करूंगा मगर स्वास्थ्य विभाग की दवा नही खाऊंगा, क्योंकि उसका कहना है कि इसमें कई बीमारी है कोविड के वक्त कई वीडियो औऱ जानकारी सामने आई थी । जंगल से इसके लिए खुद जड़ीबूटी बनाऊंगा, कहने लगा । फिर सरपंच राजू, डॉ. बक्शी और ‘छत्तीसगढ़’ की टीम की समझाइश के बाद ग्रामीणों ने उसे दवा खाने के लिए मनाया लेकिन बस्तर के कई गांव ऐसे है, जहां ये स्थिति है सरकार को भ्रांतियाँ मिटाने  ग्राम सभा औऱ गांव गांव जागरूकता अभियान चलाना चाहिए।

इस मामले पर सीएमएचओ ध्रुव ने ‘छत्तीसगढ़’ को बताया कि 2 लोग बुजुर्ग थे जिससे उनकी मौत उम्रदराज होने से हो सकती है 2 अन्य की मौत के कारण पता लगा रहे हैं। ग्रामीण वड्डे की बात मानकर इलाज नहीं करवाते है जिससे इस तरह की स्थिति बन जाती है मलेरिया का वक्त पर इलाज न करवाने से भी इस तरह की बीमारी बन रही है टीम कल भी गांव गई थी आज भी गई है। हमारी टीम पूरा प्रयास कर रही कि जो बीमार है उन्हें उपचार कर स्वस्थ किया जाए ।

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