कांकेर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कांकेर, 11 अक्टूबर। संसदीय सचिव एवं विधायक शिशुपाल शोरी ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा कि तत्कालीन भाजपा सरकार द्वारा बिना संवैधानिक प्रावधानों का पालन किये 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण व्यवस्था दिये जाने के कारण ही आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार आरक्षण 32 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत रह गई है जिसके लिए केवल तत्कालीन भाजपा सरकार ही दोषी है।
शिशुपाल शोरी ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार ने वर्ष 2012 में आनन-फानन में आरक्षण नियमों में संशोधन कर ओ.बी.सी. वर्ग के लिए 14 प्रतिशत के आरक्षण को यथावत रखा, जिसके कारण कुल आरक्षण की सीमा 58 प्रतिशत हो गयी जो 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक होने के कारण कई संस्थाओं और व्यक्तियों द्वारा माननीय उच्च न्यायालय में रीट पीठासीन दायर किये गये और उच्च न्यायालय द्वारा केवल इसी आधार पर आरक्षण संबंधी नोटिफिकेसन को निरस्त कर दिया कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण सीमा को बढ़ाये जाने पर कोई तथ्यात्मक जानकारी अधिसूचना से पूर्व नहीं जुटाई गई। तत्कालीन भाजपा सरकार द्वारा बिना संवैधानिक प्रावधानों का पालन किये 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण व्यवस्था दिये जाने के कारण ही आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार आरक्षण 32 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत रह गयी है जिसके लिए केवल तत्कालीन भाजपा सरकार ही दोषी है। अगर उन्होंने सर्व आदिवासी समाज की बात मान ली होती तो आज यह स्थिति निर्मित नहीं होती।
स्ंासदीय सचिव श्री शोरी ने कहा कि 32 प्रतिशत आरक्षण की मांग को लेकर 2012 में आदिवासी समाज द्वारा बड़ा आन्दोलन रायपुर के गोंड़वाना भवन में किया गया था आन्दोलन के दौरान भाजपा सरकार द्वारा हजारों निर्दोष आदिवासियों पर बेरहमी से लाठी चार्ज, अश्रुगैस के गोले, छोड़े गये थे। 150 से अधिक आदिवासियों के शीर्ष नेताओं को अलग-अलग जिलों में बंद रखा गया था। आज भाजपा घडिय़ाली आंसू बहा रही है। आदिवासी समाज समझ गया है कि आदिवासियों पर बर्बरता पूर्वक लाठी चार्ज करने वाली भाजपा केवल राजनीतिक रोटी सेकने के लिए आदिवासी समाज के मसीहा होने का स्वांग कर रहा है।
श्री शोरी ने कहा कि अविभाजित मध्यप्रदेश में अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति को जनसंख्या के अनुपात में क्रमश: 20 प्रतिशत एवं 16 प्रतिशत कुल 36 प्रतिशत एवं 50 प्रतिशत में शेष 14 प्रतिशत का आरक्षण ओ.बी.सी. वर्ग को दिया गया जो व्यवस्था छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण तक यथावत रहा।
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की संख्या 32 प्रतिशत एवं अनुसूचित जाति की संख्या 12 प्रतिशत कुल 44 प्रतिशत एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 06 प्रतिशत की गुंजाईश 50 प्रतिशत की सीमा तक आरक्षण लागू किये जाने की स्थिति में रह गया था। जनसंख्या के अनुपात में केन्द्र सरकार द्वारा 2005 में प्रत्येक राज्य के लिए आरक्षण रोस्टर केटेगिरी सी एवं डी के लिए तैयार किया गया जिसके तहत अनुसूचित जनजाति को 32 प्रतिशत अनुसूचित जाति को 12 प्रतिशत एवं अन्य पिछड़ा वर्ग को 06 प्रतिशत निर्धारित किया जाकर आज भी उसी रोस्टर के अनुसार राज्य स्तरीय पदों के लिए भर्तीया केन्द्रीय सरकार द्वारा किया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज द्वारा केन्द्र सरकार की 2005 के तहत छत्तीसगढ़ के लिए लागू आरक्षण व्यवस्था को यथावत रखते हुए आदिवासियों को उनके सवैधानिक अधिकारों के अनुसार 32 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने का कई बार निवेदन किया गया और यह भी आगाह किया गया कि यदि 50 प्रतिशत से अधिक का आरक्षण दिया जाता है तो वह न्यायिक वाद का कारण बनेगा जो बाद में सही साबित हुआ ।