गरियाबंद
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
गरियाबंद, 26 अक्टूबर । गौरी-गौरा विवाह उत्सव धूमधाम से मनाया गया। गीत के माध्यम से समस्त वैवाहिक नेग-चार व पूजा पाठ पूरी रात भर किया गया। सूर्यग्रहण होने के कारण एक दिन बाद बुधवार सुबह स्थानीय छिंद तालाब में आस्था पूर्वक विसर्जन किया गया ।
ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ में दीपावली की शाम गौरी-गौरा विवाह उत्सव शहर नगर कस्बा गाँव गाँव के चौक चौराहों में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह लोक परम्परा में जनजातीय संस्कृति का उत्सव है। विशेषकर गोंड़ जनजाति के लोग इसे मनाते हैं, किंतु अब समाज के लोगों ने उत्साह पूर्वक गौरा गौरी का विसर्जन कर मनाया।
गौरा गौरी का उत्सव में (दीपावली की शाम) को सामूहिक रूप से लोक गीत का गायन करते जाकर तालाब आदि शुद्ध स्थान से मिट्टी लेकर आते हैं। फिर उस मिट्टी से रात के समय अलग अलग दो पीढ़ा में गौरी(पार्वती)तथा गौरा (शिव जी) की मूर्ति बनाकर चमकीली पन्नी से सजाया गया। साजा-धजा कर उस मूर्ति वाले पीढ़े को सिर में उठाकर बाजे-गाजे के साथ गाँव के सभी गली से घुमाते-परघाते चौक-चौराहे में बने गौरा चौरा के पास लेकर आते है। इस चौरा को लीप पोतकर बहुत सुंदर सजाया गया रहता है।
इसमें गौरी गौरा को पीढ़ा सहित रखकर विविध वैवाहिक नेग कर उत्साहित नारी कण्ठ से विभिन्न लोक धुनों से गीत उच्चारित होने लगते है। जिसे गौरा गीत कहा जाता है। इस तरह गीत के माध्यम से समस्त वैवाहिक नेग-चार व पूजा पाठ पूरी रात भर किया गया , सूर्य ग्रहण होने के कारण एक दिन बाद बुधवार को स्थानीय छिंद तालाब में सम्मान पूर्वक विसर्जन किया गया ।