दुर्ग
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दुर्ग, 1 दिसंबर। आचार्य विशुद्ध सागर महाराज ने कहा संसार विचित्र है। जो परम् सिद्धि को समझता है वह साम्यभाव में जीता है। भगवान महावीर स्वामी ने कहा है कि बंद करना हिंसा है और बदनाम करना भी हिंसा है। साम्यकाल मे जीने वाला जीव ही आत्मरक्षा करता है। इसलिए धर्म और धर्मात्मा की कमी निन्दा नहीं करें।
स्टेशन रोड स्थित दिगंबर जैन मंदिर में आहारचर्या के बाद केवल भवन में प्रवचन के दौरान आचार्य विशुुद्ध सागर ने कहा कि संसार में दुखियों का सहयोग करना आनंद है। मांगने वाले को वह आनंद नहीं मिलता जो देने वाले को मिलता है। देने का आनंद अलग है। उन्होंने कहा कि मनुष्य को विसर्जन का आनंद प्राप्त करना चाहिए। विसर्जन का आनंद गहरा होता है उन्होंने बताया कि भरपेट भोजन करने के आनंद से बड़ा आनंद पेट की सामग्रियों को विसर्जित करने से मिलता है। विसर्जन किए बिना आनंद नहीं आता। इसलिए संसार के विषयों का विसर्जन करें तभी आत्मा का सुख प्राप्त हो सकता है। आचार्य ने आगे कहा है कि विशाल वृक्ष सबको समान छाया देते हैं। इसलिए विशाल वृक्ष बनकर जीयो। विशाल वृक्ष बनकर जीने वाला ही दिगंबर है।
गुरू शिष्यों का हुआ मिलन
इसके बाद गुजराती धर्मशाला के पास शिष्यगणों सुव्रतसागर, प्रणेय सागर व प्रणुत सागर का गुरू आचार्य विशुद्ध सागर के साथ मिलन हुआ। शिष्यगणों ने आचार्य विशुद्ध सागर का चरण पखार कर अभिनंदन किया। इससे पहले सुव्रत सागर ने कहा कि गुरू मिलने आ रहे है इससे ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे मोक्ष मिलने वाला है। यह गुरू व शिष्यों का मिलन नहीं है राम का हनुमान से और शंकर का कंकड़ से मिलन है। सुदामाओ से मिलने स्वयं कृष्ण चलकर आ रहे है। गुरू शिष्य के मिलन की अद्भुत तैयारी की गई है। इस अवसर पर पंचकल्याणक महामहोत्सव के संयोजक सजल काला प्रचार प्रसार प्रभारी सुनील गंगवाल, सहसंयोजक संदीप लुहाडिय़ा, दिलीप बाकलीवाल, मनीष बडज़ात्या, दिगंबर खंडेलवाल के अध्यक्ष राकेश छाबड़ा समाज के अध्यक्ष ज्ञानचंद पाटनी, सुरेश जैन, रमेश सेठी, राकेश जैन, अभिषेक जैन, पवन बडज़ात्या, विमल बडज़ात्या सहित भारी संख्या में धर्मप्रेमी मौजूद थे।