महासमुन्द
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद,5 दिसम्बर। शासकीय कन्या उच्च प्राथमिक विद्यालय खट्टी में प्रति शनिवार पाठ्येत्तर कार्यक्रम के अन्तर्गत बस्ता विहीन शनिवार को बच्चों को व्यवहारिक-नैतिक ज्ञान के अलावा राज्य के बहुमूल्य सांस्क-तिक धरोहरों को सहेजने का काम बखूबी किया जा रहा है। परसों शनिवार को यहां विद्यालय के बालिकाओं को छत्तीसगढ़ की परोपकार संस्कृति के परिचायक धनमौरी बनाना सिखाया गया। बच्चों ने अपने हाथों से इस कला को जीवंत किया। प्रशिक्षक के रूप में गांव की गुलाप बाई ध्रुव, शशिकला देवांगन उपस्थित थीं।
यहां बताना जरूरी है कि धान कटाई के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के किसान और मजदूर चिडिय़ों के खाने के लिए धनमौरी तैयार करते हैं। यह धन मौरी धान की बालियों का एक समूह होता है। धान की एक-एक बालियों को तना समेत गूंथकर मनचाहा स्वरूप दिया जाता है। खासकर गर्मी के दिनों में जब खेतों में दाने कम होते हैं तब चिडिय़ों के दाना होता है जिसे ग्रीष्म ऋतु में घरों के रौशनदानों, परछी, बरंवट, आंगन में खड़े पेड़ों की डालियों में टांग दिया जाता है। ऐसे वक्त में चिडिय़ों का बड़ा कारवां इसे चूगने पहुंचता है और धनमौरी में बैठकर बड़े मज़े से दाने खाता है। जहां-जहां यह धनमौरी टंगा होता है. वहां लोग छोटे-छोटे कटोरे में चिडिय़ों के लिए पानी रखना नहीं भूलते। यह छत्तीसगढ़ की सदियों पुरानी परंपरा है।
इस धनमौरी कला प्रशिक्षण में शाला प्रबंध समिति की अध्यक्ष आस्था साहू, प्रधान पाठक भागवत जगत भूमिल,शिक्षक अभिषेक सालोमन, त्रिवेणी कोसरे,त्रिवेणी चन्द्राकर,लीना पाण्डेय,सुनीता ध्रुव एवं सिराज बख्स विशेष रूप से उपस्थित थे। उपरोक्त जानकारी संस्था के प्रधान पाठक एवं नवाचारी शिक्षक भागवत जगत भूमिल ने दी है।