सुकमा
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
सुकमा, 5 दिसंबर। सीपीआई के राज्य सचिव व पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने जारी विज्ञप्ति में आरोप लगाते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में 76 फीसदी आरक्षण का संशोधन बिल विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित होने के बाद देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। अभी राज्यपाल का उस बिल पर हस्ताक्षर हुआ नहीं है, उन्होंने कानूनी सलाह इस पर लेने की बात कहा है।
इधर, कांग्रेसी खुशियां मना रहे हैं, और कह रहे हैं कि भूपेश, लखमा के राज में ही संभव हो पाया है जो कहे जो भक्ति दिखाएं, यह उनका हक है। लेकिन मुख्य प्रश्न है कि क्या यह संशोधन अधिनियम साकार हो पाएगा? इस पर सीधे बात करने के पहले ही ईडब्ल्यूएस की बात करते हैं। इसके लिए 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था केंद्र की मोदी सरकार ने किया था। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चली और इस पर एकमत से नहीं बहुमत से इसके हक में फैसला आया। फिर इसके बाद इसी कोर्ट में रिव्यू पिटिशन फाइल हुआ है, इस 10 फीसदी का क्या होगा अभी कहना मुश्किल है।
32 फीसदी आरक्षण एसटी का खत्म करने के उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में सुनवाई चल रही है। उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में आरक्षण पर सुनवाई और फैसले होते रहते हैं और छत्तीसगढ़ विधानसभा में पारित इस बिल के खिलाफ कोर्ट में जाने के लिए लोग तैयार हैं ऐसी खबरें हैं, वे लोग राज्यपाल के हस्ताक्षर का इंतजार कर रहे हैं।
फिर राज्यपाल के हस्ताक्षर से ही आरक्षण मिलने लगेगा ऐसा नहीं है, इस बिल पर इस बिल पर जब तक राष्ट्रपति का हस्ताक्षर नहीं होगा, तब तक इस बिल का कोई जीवन नहीं है। संविधान की नौवीं अनुसूची में डालने की बात कहा जा रहा है यह केंद्र की सरकार के क्षेत्र अधिकार में हैं और 9वीं अनुसूची भी सुरक्षित नहीं है, इसमें डालने वाले कानूनों का भी चैलेंज हो सकता है, और होगा।
ऐसे में भूपेश सरकार की यह आरक्षण वाली चाल दूर की कौड़ी है राजनीतिक फायदे की चाल हो सकता है। हकीकत में फायदा उन समुदायों को अभी मिलने लगेगा, अभी ऐसा सोचना ही बेवकूफी है।