बालोद

कंगला मांझी को श्रद्धांजलि देने देशभर से पहुंचे अनुयायी
07-Dec-2022 2:50 PM
कंगला मांझी को श्रद्धांजलि देने देशभर से पहुंचे अनुयायी

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बालोद, 7 दिसम्बर।
बालोद जिले के डौंडीलोaहारा विकासखंड में एक छोटा सा गांव बाघमार जो कि पूरे देश में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कंगला मांझी और उनके सरकार के करना विख्यात है, जिसके संस्थापक स्व. हीरासिंह देव उर्फ कंगला मांझी थे के पुण्यतिथि पर हर साल कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं इस्पात राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते मांझी सरकार के बीच पहुंचे और स्व. हीरासिंह देव उर्फ कंगला मांझी को नमन किया। 
राजमाता फुलवा देवी कांगे ने कहा कि मांझी का नाम जो दिया गया है, उसे समाज और जनता चुनती है। आपको बता दें कि मांझी सरकार का मुख्यालय नई दिल्ली में है। बालोद जिले की गांव में पूरे देशभर के मांझी के शागिर्द पहुंचे हुए हैं, और इनकी एक अपनी संस्कृति है, अपना एक विचारधारा है जो कि देशभक्ति से ओतप्रोत है।
मांझी के सेना और उसका अनुशासन
जो भी देशसेवा, राष्ट्र सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया उनके परिवार को मैं बधाई देता हूं, जिन्होंने कंगला माझी के सम्मान में जीवन कुर्बान किए हुए हैं वो काबिले तारीफ है। मांझी ने आदिवासी समाज और जल जंगल जमीन के लिए लड़े अपनी एक अलग सेना बनाई और उनका अनुशासन देखते ही बन रहा है।
मूल संस्कृति की दिखी झलक
राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने आयोजन में शामिल होने के साथ ही मांझी और उनकी संस्कृति की तारीफ करते हुए कहा, दरअसल आदिवासियों की जो मूल संस्कृति है, देवी-देवता हैं, उनकी झलक देखने को मिली है। इनकी जो सेना है उसमें अनुशासन एवं देश भक्ति कूट-कूट कर भरी हुई है। निस्वार्थ भाव से स्वयं मेहनत करके शिक्षा की ओर समाज को अग्रसर कर रहे हैं, और मांझी की सेना में निस्वार्थ रूप से काम कर रहे हैं, यहां पर छत्तीसगढ़ ही नहीं अपितु देशभर के आदिवासी जुट रहे हैं, और मांझी के विचारों को आगे बढ़ा रहे हैं।
विचारधारा से प्रेरित होकर सर्वस्व न्यौछावर
मांझी सेना के निरीक्षक के रूप में कार्य कर रहे महाराष्ट्र के श्रीराम सूरी ने कहा कि कभी भारत को सोने की चिडिय़ा कहा जाता था हम मांझी के दिखाए हुए मार्ग पर चल रहे हैं। शिक्षा स्वास्थ्य और आदिवासी समाज को एकजुट करना ह,ै और वापस भारत देश को सोने की चिडिय़ा के रूप में हम देखना चाहते हैं, इसीलिए प्रत्येक वर्ष हम मांझी की शहादत को नमन करने पहुंचते हैं।
तीन दिनों तक चलेगा कार्यक्रम
जंगल के बीच स्थित मांझी धाम में तीन दिनों तक कार्यक्रम आयोजित होता है। बालोद जिला के वनांचल में स्थित ग्राम बाधमार में इन दिनों मांझी सरकार के सिपाहियों का जमावाड़ा है। हर साल 5 दिसम्बर को देश के विभिन्न हिस्सों से यहां हजारों की तादात में सिपाही अपने सरकार के संस्थापक स्व.हीरासिंह देव उर्फ कंगला मांझी को श्रद्धांजली देने पहुंचे हुए हैं।
आजादी के बाद भी हाशिए पर आदिवासी
छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के रहने वाले गोंड आदिवासी हीरा सिंहदेव कांगे ऊर्फ कंगला मांझी ने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस से मुलाकात के बाद उन्होंने आदिवासियों को एकत्र करना शुरू किया और गांधीवादी तरीके से बस्तर के इलाके में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपनी समानांतर सरकार बनाने की घोषणा कर दी। 
अंग्रेज इस देश से चले गए, आजादी मिली। तब तो यह सरकार खत्म हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा क्यों नहीं हुआ। इस बारे में कंगला मांझी के बेटे कुंभदेव कांगे बताते हैं। 
आजादी के बाद हाशिए पर आदिवासी
वह कहते हैं, आजादी के बाद आदिवासियों को हाशिये पर डाल दिया गया। बराबरी की बात तो छोडि़ए, उनका हक भी उन्हें नहीं मिला। ऐसी परिस्थिति में आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई को जारी रखने के लिए 1951 में कंगला मांझी जी ने मांझी अंतरराष्ट्रीय समाजवाद आदिवासी किसान सैनिक संस्था की नींव रखी। इस तरह स्वतंत्र भारत में बनी कंगला मांझी सरकार।

 

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