गरियाबंद
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
नवापारा राजिम, 6 जनवरी। अन्नदान का पर्व छेरछेरा परसदा में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस अवसर पर सुबह से ही गाँव के बच्चे, युवक, युवतियों हाथ में थैला, टोकरी व बोरी लेकर सभी घरों में जाकर छेरछेरा,माई कोठी के धान ल हेरहेरा कहते हुए मांगा। व्याख्याता पूरन लाल साहू ने कहा कि छेरछेरा पुन्नी तिहार सामाजिक समरसता, दानशीलता एवं समृद्ध गौरवशाली परंपरा का संवाहक है। यह पर्व प्रतिवर्ष पौष माह के पूर्णिमा को मनाया जाता है।
छेरछेरा छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्यौहार है। यह छत्तीसगढ़ की कृषि प्रधान संस्कृति और ग्रामीण जनजीवन मे समानता व समन्वय की भावना को प्रकट करता है। छेरछेरा पर्व कृषि प्रधान संस्कृति में दानशीलता की परंपरा को याद दिलाता।
इसी तरह राजिम अंचल में छेरछेरा पर्व धूमधाम से मनाया गया, बच्चों से लेकर बड़ों में रहा खुशी का मौहोल राजिम अंचल के गाँव दूतकैन्या(खपरी) अरंड, परसदा जोशी, बासिन, रांवड, बकली हथखोज, रकशा, पोखरा एवं पितईबंद सहित सभी गाँवों में अन्नदान के परब छेरछेरा बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया गया।
छेरछेरा के महत्व को बताते हुए अंचल के शिक्षक एवं साहित्यकार श्रवण कुमार साहू प्रखर ने कहा कि छेरछेरा पर्व छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की पहचान है। आज के दिन लोग सुबह से उठकर पवित्र नदियों व जलाशयों मे स्नान करके देव दर्शन करते हैं तत्पश्चात अपनी-अपनी सामर्थ अनुसार दान पुण्य करते है।
आज के दिन अन्न का दान लेना और देना दोनों ही पुण्य का काम माना जाता है, वेद पुराणों में आज के दिन का विशेष महत्व है,यहाँ यह बताना जरूरी है कि छेरछेरा के दिन पूरे अञ्चल में सभी गाँव में लोग सुबह से ही, टुकनी, चरिहा, झोला, बोरी लेकर एक से दूसरे घर तक जा जाकर, छेरिक छेरा छेर मरकनिन छेरछेरा, माई कोठी के धान ल हेर हेरा, और अरन बरन कोदो दरन, जभे देबे तभे टरन के नारा लगा लगा के अन्न माँगते हुए छोटे बड़े, बच्चे बूढ़े सभी का उमंग देखते बनता है।
इस अवसर पर घर-घर में छत्तीसागढ़ी व्यंजन भी बनाए गए, माँ शाकंभरी की जयंती एवं मेला मडाई भी अनेक गाँवों में धूमधाम के साथ शांतिपूर्ण ढंग से मनाया गया।