बिलासपुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 14 जनवरी। छत्तीसगढ़ में तेंदूओं पर किए जा रहे अत्याचार को रोकने को लेकर दायर जनहित याचिका पर जवाब देने के लिए वन विभाग ने समय मांग लिया। डिवीजन बेंच ने अब इसकी सुनवाई 3 सप्ताह बाद रखी है।
वन्य जीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने जनहित याचिका दायर कर कहा था कि वन विभाग के अधिकारी मानव और तेंदुआ के बीच द्वंद बढ़ा रहे हैं। यह देखे बिना की कोई तेंदुआ प्रॉब्लम एनिमल की श्रेणी में है या नहीं, उसे पिंजरे में पकडक़र बंद कर देते हैं और दूसरे स्थान पर छोड़ देते हैं। इससे समस्या बढ़ती है। अनजान जंगल में तेंदुआ परेशान होता है और वह अत्यधिक तनाव और अवसाद से गुजरता है। वह नए स्थान पर पालतू पशुओं पर हमला करके खा सकता है। भारत सरकार की गाइडलाइन के अनुसार तेंदुए को रेडियो कॉलर लगा कर 24 घंटे के बाद छोड़ा जाना चाहिए और उनकी लगातार मॉनिटरिंग करनी चाहिए। अनुसूची 1 के तहत संरक्षित वन्य जीव होने के कारण इसे बिना पीसीसीएफ (वन्य प्राणी) के आदेश के पकडऩा अपराध है, जिसमें 3 से 7 साल की सजा हो सकती है। इस प्रावधान की जानकारी होने के बाद भी दिए डीएफओ बिना अनुमति तेंदुए को पिंजरे में बंद करते हैं और मनमाने स्थानों पर छोड़ देते हैं। शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस अरविंद चंदेल की डिवीजन बेंच में हुई। इसमें वन विभाग को जवाब दाखिल करना था लेकिन उसने समय मांग लिया। कोर्ट ने समय देते हुए अगली सुनवाई 3 सप्ताह के बाद रखी है।