बालोद
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बालोद, 2 फरवरी। जैन सन्तश्वेत तिलक विजयजी महाराज आदि संत महावीर भवन में विराजमान हैं, वे अलप प्रवास के अंतर्गत बालोद पधारे हैं। प्रतिदिन 9 बजे से उनका प्रवचन महावीर भवन में होगा। आज के प्रवचन की कड़ी में उन्होंने सज्जन व्यक्ति कैसा होता है पर अपना व्यख्यान दिया।
संत श्री ने कहा कि सज्जनता जन्मजात गुण नहीं होता इसे विकसित करना पड़ता है तथा इसके लिये पुरुषार्थ करना पढ़ता है। सज्जन व्यक्ति दूसरों के दोष नहीं देखता। दोष आत्मा की विकृति होती है और गुण आत्मा की प्रकृति होती है। राग द्वेष आदि मनोभावों के कारण हम विकृति की ओर अधिक आकर्षित होते हैं। दोषों को छोड़ गुणों की ओर जाना धर्म है,विकृति से प्रकृति की ओर जाना धर्म है। धर्म जीवन जीने की एक कला है, सज्जनता को प्राप्त किए बिना धर्म हो नहीं सकता।
संत श्री ने जहाँ कि परनिंदा दूसरे के आत्मा के दोषों को चाटने जैसा है। इससे प्रीति टूटती है, परिवार और समाज में बिखराव आता है। परनिंदा करना आत्मा की विकृति है। प्रत्येक व्यक्ति में कोई न कोई दोष जरूर होता है,देखना ही है तो अपने अंदर के दोषों को देखें। सज्जन व्यक्ति हंस जी तरह होता है जो सार सार को ग्रहण करताहै, परनिंदा करने वाला कौंवा की तरह होता है। धर्म सदा जोडऩे वाला होता है तोडऩे वाले धर्म नहीं हो सकता।
साधनों में हम सुख खोजते हैं, सुख तो आत्मा की अनुभूति है। सज्जनता से दिलों को जीता जा सकता है वहीं गलत व्यवहार आग में घी का काम करता है अत: सज्जनता को प्राप्त करना ही ध्येय होना चाहिए, यही धर्म है।
संतश्री का प्रवचन प्रतिदिन महावीर भवन में 9 बजे से प्रारंभ होगा, इसमें कोई भी व्यक्ति प्रवचन श्रवण करने आ सकता है। उक्त जानकारी मंदिर समिति के सचिव रूप चंद जैन ने दी।