बीजापुर
25 साल बाद सामान्य नागरिकों की गाड़ी पहुंची रिश्तेदारों से मिलने
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बीजापुर, 9 फरवरी। बीजापुर और सुकमा जिले के जगरगुंडा तक को जोडऩे वाली सडक़ का निर्माण कार्य शुरू हो चुका है। इस सडक़ की दूरी लगभग 40 किमी की है। इस सडक़ पर 25 साल बाद कोई सामान्य नागरिकों की गाड़ी अतिसंवेदनशील चिंतलनार से होते हुए सिलगेर अपने रिश्तेदारों से मिलने पहुंची।
विदित हो कि यह इलाका नक्सलियों का कोर इलाका माना जाता रहा है। इस रास्ते पर नक्सलियों के बिना अनुमति के एक दुपहिया वाहन का भी चल पाना मुश्किल था। लेकिन जब से सीआरपीएएफ 229 बटालियन का कैम्प सिलगेर में खुला है। तब से इस रास्ते पर सडक़ बनाने का काम शुरू हो चूका है। तब से ही यहाँ पर गाडिय़ों का चलना मुनासिब हो पाया है।
229 बटालियन के कमांडेंट पुष्पेंद्र ने बताया कि 28 जनवरी को सिलेगर में हमने कैम्प खोला है। तब से ही सडक़ निर्माण का काम शुरू हो चूका है अब तक मुकुर से सिलगेर तक, सिलगेर से बेदरे और बेदरे से कुमेड़ तक सडक़ निर्माण का काम हो चूका है। इन सडक़ों के बनने की वजह से ही 25 साल बाद इस इस सडक़ पर 6 फरवरी को पहली बार सामान्य नागरिकों की चार पहिया गाड़ी सुकमा जिले के चिंतलनार से सिलगेर गाँव अपने रिश्तेदारों से मिलने पहुंची। इस कैम्प के खुलने से भी ग्रामीणों को काफ़ी मदद मिल रही है। चार फऱवरी को ग्रामीण स्वयं के लिए राशन ले जा रहे थे, इसी दौरान उनका ट्रैक्टर पलट गया ग्रामीणों ने जवानों से मदद मांगी और हमारे जवानों ने ग्रामीणों के राशन को अपने गाडिय़ों में भरकर ग्रामीणों के गाँव तक पहुँचाया।
सीआरपीएफ की मेडिकल टीम कर रही ग्रामीणों का इलाज
श्री पुष्पेंद्र ने बताया कि हमारी मेडिकल टीम भी ग्रामीणों का लगातार स्वास्थ्य परीक्षण कर रही है। हमने 28 जनवरी से 6 फऱवरी तक मेडिकल कैम्प लगाया था जिसमें हमने 250 से अधिक नागरिकों का इलाज किया, जिसमें बच्चे और महिलाएं शामिल थी। इस कैम्प के खुलने से नागरिकों को बसों की सुविधा भी मय्यसर हो पा रही है। पहले बीजापुर से मुकुर तक बसों का संचालन हो पा रहा था लेकिन अब इस कैम्प के खुल जाने से अब सिलगेर तक बसें आसानी से पहुँच पा रही है।
सिलगेर कैम्प का ग्रामीण कर चुके है विरोध, कई महीनों तक चला था कैम्प को हटाने के लिए आंदोलन -
12 मई 2021 को सिलगेर में सीआरपीएफ का कैम्प खोला गया जिसका स्थानीय ग्रामीण आदिवासियों ने विरोध शुरू कर दिया। आदिवासियों का आरोप था कि जिस जगह पर कैम्प बना है वो जमीन ग्रामीणों की है। कैम्प के पास ही ग्रामीणों ने विरोध प्रदर्शन करते हुए धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया था।
17 मई को आंदोलन के दौरान जब हजारों की संख्या में सिलगेर कैम्प को आदिवासियों ने घेर लिया तो सुरक्षाबलों ने फायरिंग कर दी थी, इस फायरिंग में तीन लोगों की मौत हो गई। आंदोलनकारियों ने मरने वाले को ग्रामीण बताया तो सुरक्षाबलों ने मरने वालों की पहचान नक्सलियों के रूप में की थी।