कोरिया

वर्ष 1986 में मालगाड़ी-ट्रेन के बीच हुई थी टक्कर
10-Mar-2023 10:19 PM
वर्ष 1986 में मालगाड़ी-ट्रेन के बीच हुई थी टक्कर

पुल से गिरा मालगाड़ी का एक डिब्बा और इंजन के कलपुर्जे आज भी मौजूद...
चंद्रकांत पारगीर
बैकुंठपुर (कोरिया) 10 मार्च (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता )।
बहुत कम लोगों को मालूम है कि वर्ष 1986 में अंबिकापुर और बैकुंठपुर के बीच सांवारांवा गांव से गुजरी रेलवे लाइन पर मालगाड़ी और ट्रेन की सवारी गाड़ी के बीच सीधी टक्कर हुई थी, जिसमें काफी यात्रियों की मौत हुई थी, साथ बैकुंठपुर और कटोरा रेलवे के कुछ स्टाफ भी इस हादसे का शिकार हुए थे। उक्त हादसे में पुल से गिरा मालगाड़ी का एक डिब्बा और उसके इंजन के कलपुर्जे आज भी वहां मौजूद है। ‘छत्तीसगढ़’ ने ग्रामीणों की मदद से उन्हें खोजा तो ग्रामीण हैरान रह गए।

वहीं बैकुंठपुर रेलवे स्टेशन के स्टेशन मैनेजर जेके जेना का कहना है कि हादसा बड़ा हुआ था, जिसमें यात्रियों की मौत हुई थी रेलवे के स्टाफ भी इस दुर्घटना में मारे गए थे, बाद में उनके परिवारों को रेलवे ने नौकरी भी दी थी, उस हादसे में मालगाड़ी का डिब्बा और इंजन मौके पर पड़ा था, समय रहते रेलवे ने काफी सामान उठाया था।


जानकारी के अनुसार कोरिया जिले के बैकुंठपुर जनपद अंतर्गत ग्राम पंचायत सांवारांवा के जामपारा से गुजरने वाले रेलवे लाइन पर 988/19 किमी पर अंबिकापुर की ओर से आ रही सवारी ट्रेन की भिडं़त बैकुंठपुर की ओर से आ रही मालगाड़ी से हुई। 

हादसे में काफी जोर की आवाज आई, जिसके बाद जामपारा के ग्रामीण घटना स्थल की ओर दौड़़े, दुर्घटना स्थल पर मालगाड़ी का इंजन क्षतिग्रस्त होकर नीचे गिर गया जबकि इसके कुछ पीछे गोबरी पुल के नीचे मालगाडी का डिब्बा गिर गया था, जिसके बाद भोपाल और बिलासपुर की रेस्क्यु टीम ने हादसे में घायलों को इलाज के लिए अंबिकापुर और बिलासपुर पहुंचाया था, वहीं 37 वर्ष रेलवे के गोबरी पुल के नीचे मालगाड़ी के डिब्बे के कलपुर्जे बिखरे पड़े है, कुछ जमीन में धंस चुके है, लोहे के पहिए जमीन के उपर नजर आ रहे है। 

वहीं इसके 200 मीटर की दूरी पर मुख्य दुर्घटना स्थल पर मालगाडटी के इंजन के कलपुर्जे जमीन पर पड़े हुए है जिन्हें बड़ी-बड़ी झाडिय़ों ने ढंक रखा है, हादसे के कई वर्षों तक इसके कलपुर्जो को रेलवे के साथ ठेकेदारों द्वारा यहां से ले जाया गया, परन्तु लोहे का काफी बड़ा हिस्सा आज भी यहां पड़ा हुआ है, छत्तीसगढ़ के साथ आए ग्रामीणों ने जब झाडिय़ों का हटाकर रेल के इंजन को देखा तो सब हैरान रह गए।

बात उन दिनों की थी

सांवारांवा के पूर्व सरपंच गुलाब सिंह बताते हंै कि  वर्ष 1986 में  हादसे के वक्त वो मौके पर मौजूद थे, बड़ी अफरातफरी मची हुई थी, सूचना के संसाधन के बराबर थे, हादसे में लोगों की जान गई थी, तब से मालगाड़ी का एक डिब्बा वर्षो से यहां पड़ा हुआ है और इंजन भी यहां पड़ा हुआ था, बाद में रेलवे और उसके ठेकेदारों ने उसका सामान ले गए, आज भी मलबा पड़ा हुआ है।

 वहीं गांव के रामाशंकर कुशवाहा बताते है कि वे चौथी पढ़ते थे, उतनी समझ नही ंथी , परन्तु जब हादसा हुआ तो भीषण आवाज आई हम सब दुर्घटना स्थल की ओर दौड़े, घायल लोग बाहर जाने का रास्ता पूछ रहे थे, तब से आज तक यहां गोबरी पुल के नीचे मालगाड़ी का मलबा और इंजन के कलपुर्जे पड़े हुए है।
 
 गांव के अर्जुन सिंह और ललन सिंह ने झाडिय़ों को हटाकर मालगाड़ी के इंजन के कलपुर्जा को सामने लाया, लोहे के मोटे कलपुर्जो को आज भी आम इंसान हिला नहीं पा सकते हैं।

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