बीजापुर
पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी स्थल पर जाम्बवंत एवं श्री कृष्ण का युद्ध हुआ था
हिंदी वर्ष का अंतिम मेला (पर्व ) तथा हिंदी वर्ष की आगमन मेला
रवि कुमार रापर्ती
भोपालपटनम, 11 मार्च (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। चैत्र माह के एकादशी से प्रारंभ होकर गुड़ीपड़वा तक चलने वाले सुप्रसिद्ध सकलनारायण मेला प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी बीजापुर जिले के विकासखण्ड भोपालपटनम से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पोषणपल्ली नामक गांव में चिंतावागु नदी के किनारे आयोजित किया जाएगा।
चेरपल्ली के निवासी कविराज सत्यनारायण के अनुसार विकासखण्ड मुख्यालय भोपालपटनम से 10 किलोमीटर दूर पोषणपल्ली में सकलनारायण मंदिर अवस्थित है। इस मंदिर से दक्षिण दिशा में 4 किलोमीटर दूरी पर गोवर्धन पर्वत पर सकलनारायण गुफा स्थित है। यह सकलनारायण गुफा भोपालपटनम क्षेत्र का प्रसिद्ध गुफा माना जाता है। विरान गुफा के भीतर एकांत में भगवान श्री कृष्ण विराजमान हैं। यहां चिंतावगु नदी के किनारे उत्तर दिशा की ओर भगवान श्री कृष्ण जी का सकलनारायण मंदिर स्थित हैं। यह मंदिर सन 1928 को स्थापित की गई है ।
पूर्वजों के अनुसार इस गोवर्धन पर्वत और विरान गुफा की खोज लगभग 1900 ईसवी में राजाओं द्वारा की गई है। यहां प्रति वर्ष मेला चैत्र कृष्ण पक्ष अमावस्या के तीन दिन पूर्व प्रारंभ होता है और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नवरात्रारंभ गुड़ी पड़वा के दिन समापन होता है। कहा जाता है कि यह मेला हिंदी वर्ष का अंतिम मेला (पर्व ) तथा हिंदी वर्ष की आगमन मेला कहा जाता हैं।
प्रति वर्ष हजारों लोगों की भीड़ में श्रद्धालु आकर श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना कर बीती हुई वर्ष से विदाई लेकर नए वर्ष की आगमन पर भगवान श्री कृष्ण जी से सुख शांति समृद्धि और सौभाग्य की शुभकामनाएं प्राप्त होने की विनती करते हैं। इस विशाल भू- भाग मे फैले भोपालपटनम आंचल को यदि देवी देवताओं की धरती कहे तो अतिरमणीय होगा।
गोवर्धन पर्वत की दर्शन के लिए दर्शनार्थी दूर -दूर से आकर चिंतावगु नदी में स्नान कर गोवर्धन पर्वत पर चढऩा प्रारंभ करते हैं। यह पर्वत की ऊंचाई लगभग 1000 से 1100 मीटर है। चारों ओर हरे भरे फूल पेड़ पौधों से घिरा हुआ सकरा पगडंडी रास्ता होने के कारण 3-4 किलोमीटर दूर तय करनी पड़ती हैं। रास्ता तय करते हुए चारों ओर हरे भरे पौधों एवम् रंग बिरंगे फूलों से लदे मनोरम छटा मन को लुभाती हैं।
यह गुफा के प्रवेश द्वार के ऊपरी हिस्सा मे मधु मक्खियां के कई छत्ते हंै। यदि कोई व्यक्ति अपने मन में गलत धारणा या विचार रखता है तो प्रवेश द्वार के पहुंचने के पूर्व ही मधु मक्खियां कुछ संख्या में आकर व्यक्ति पर आक्रमण कर देती हैं। यह चमत्कार वास्तव में अद्भुत है। विचित्र बात यह है कि गुफा का द्वार पहले की अपेक्षा अभी थोड़ा घट गई हैं। हजारों लोगों की भीड़ रहने के कारण विरान गुफा के भीतर विराजमान भगवान श्री कृष्ण जी एवम् विराजित अन्य भगवान भी कुमकुम हल्दी अक्षत से सनी एवम् रंग -बिरंगे फूलों एवम् फूलों की मालाओं से ढकी विभिन्न आकृतियों वाली आकर्षक मूर्तियां स्थापित है।
गोवर्धन पर्वत में विराजमान श्री कृष्ण जी की अपनी आस्था ही अमिट है। पूर्वजों के अनुसार यहां का पुजारी यहां पूजा अर्चना के बाद मल्लुर मंगापेटा नरसिंह भगवान के पहाड़ में नरसिंह भगवान की पूजा के लिए यहां की सुरंग से जाते थे । अभी भी यह सुरंग एक छोटा सा आकर में नजर आता है । यहां मंदिर का प्रधान पुजारी श्री मट्टी बदरैया जी है।
पुजारी के अनुसार पर्वत पर स्थित गुफा से कभी-कभी मुरली की धुन सुनाई देती है। गुफा में मोरपंख भी पाए जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी स्थल पर जाम्बवंत एवं श्री कृष्ण का युद्ध हुआ था।
मंदिर के एक और पुजारी श्री मट्टी कन्हैया के अनुसार जो श्रद्धालु सच्चे मन से जो भी मन्नत करते हैं उनकी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं। उनके द्वार तक पहुंच कर आज तक कोई व्यक्ति निराश नहीं लौटा है। संतान की प्राप्ति के लिए निराशवती जिस स्त्री ने भी घुटने टेक कर अपना आंचल फैलाती हैं तो आंचल में एक फूल भी गिरे तो संतान की प्राप्ति अवश्य होती हैं।
इसे एक प्रकार से कहा जाए तो यह गोवर्धन पर्वत एक अद्भुत चमत्कारिक पर्वत है। इसमें और भी कई ऐसे अद्भुत चमत्कार साक्षत परिलक्षित है। इस गुफा के प्रवेश द्वार पश्चात बाहर निकलने के लिए अंतिम द्वार एकदम अनोखी है, सोचनीय है। क्योंकि निकलने के पूर्व वह रास्ते को देखकर असमंजस में पड़ जायेगा। क्योंकि निकलने का रास्ता काफी टेड़ी मेढ़ी एवम् सकरी है। जिसमे की एकदम पतले से पतला व्यक्ति भी नहीं निकल सकता, किंतु आपको विश्वास हो या न हो उस रास्ते से कितना मोटा व्यक्ति भी क्यों ना हो बाहर निकल जाता हैं। यदि व्यक्ति में गलत विचार, धारणाएं मन में उभरी हो तो वह उस रास्ते के मध्य में ही जाकर फंस जायेगा। यह बात भी सात्विक रूप से सत्य है।
यहां गुफा के अंदर 5 मीटर से लेकर 15 मीटर तक की 4 सुरंग में मूर्तिया स्थापित है। गुफा के अंदर अद्भुत चमत्कार पानी की बूंदे ऊपर से टपकते रहते हैं। इस पानी की वजह से वहां दल-दल (खाई) बन गई हैं। इस दल-दल में कोई व्यक्ति धंस जाए तो वहां से निकलना मुश्किल होता है। इस दल दल के आगे एक छोटी छिद्र में नागराज जी विद्यमान रहते हैं। किस्मत वालों को ही यह दर्शन मिल पाता है। इस प्रकार यहां पर ऐसे अद्भुत चमत्कार दृश्य दृष्टिगत होती रहती है।
यहां पर कालिंगमडग़ू (शीतल जल) यहां का जल भीषण गर्मी में भी बहुत ठंडा एवं मीठा होता है, इस पानी को गंगा जल के रूप में घर लेकर आते हैं और घर को शुद्धि का काम आता है। पूर्व की ओर ग्वाले और पश्चिम की ओर कलिंग माडगू कहते है यहां आदमी अगर फंस जाए तो निकलना मुश्किल होता है, इसलिए यहां सतर्कता से जाना पड़ता है, यहां घनघोर अंधेरा रहने के कारण टार्च साथ में ले जाना अति आवश्यक है। वहां का शीतल जल ईश्वर का प्रदान है। यहां पानी की बूंदे ऊपर से टपकते रहते हैं, और पहाड़ के ऊपर कई प्रकार की औषधीय पेड़ पौधें है। जिसे तोडक़र दर्शन करने आने वाले भक्तगण ले जाते हैं, छोटे बच्चों को एवम् बड़ों के लिए भी दवाई का काम आता है।
गुफा के अंदर कई पक्षियां छोटे बड़े चमगादड़ भी ऊपर से मंडराते रहते हैं । उनका मल घिरा रहता है उसे भी धूप के लिए लेकर आते है, उसे पेट दर्द ,नजर लगने से इसे धूप बनाकर उपयोग किया जाता है, तो ठीक हो जाते हैं। कई प्रकार के पेड़ पौधें है जो दवाई के लिए काम आता है लेकर आते हैं। ऊपर में कई प्रकार के पेड़ पौधें है, जैसे टमाटर, बैंगन, मिर्ची कुछ फल पाए जाते हैं इसे घर लेकर आना वर्जित है वही पर खाकर आते है। अभी ये सब आयुर्वेद दवाई खत्म होते जा रहे हैं, जंगल और पहाड़ में आग लगने के कारण नष्ट होते जा रहे हैं।
गोवर्धन पर्वत से भगवान श्री कृष्ण जी के दर्शन कर वापस आते समय 2 किलोमीटर पर रास्ते में एक छोटा सा झरना है। यह झरना , सौंदर्य का प्रतीक है, जिसे बोग्तुम जलप्रपात के रूप में जाना जाता हैं। जिसमे हमेशा पानी भरा रहता है । यहां का पानी बहुत ठंडा एवम मीठा होता है थोड़ी सी पानी से ही मन की तृप्ति हो जाती हैं। इस पानी की तुलना में फ्रीज का पानी भी व्यर्थ है। इसी स्थान पर काका परिवार की ओर से भोजन (स्वल्प आहार)की व्यवस्था की जाती हैं। पूर्व में कतई न थी । कहां जाता हैं की उन्होंने भगवान श्री कृष्ण जी से कुछ मन्नते की वह पूर्ण होने के कारण यहां प्रतिवर्ष आए भक्त गणों की भूख, प्यास बुझा कर तृप्ति प्रदान करते है। एवम् लोगों से दुआएं प्राप्त करते हैं।
प्यासे को पानी भूखे को भोजन की तृप्ति यही से हो जाती हैं, इससे बड़ी आत्म संतुष्टि और क्या हो सकती हैं। गोवर्धन पर्वत से उतर कर वापस चिंतावागु नदी के तट पर स्थित सकलनारायण मंदिर में सभी भक्तगण उपस्थित होकर सभी भगवानों की पूजा अर्चना कर मेले का आनंद अनुभूति प्राप्त करते हैं। इस त्यौहार को बड़े हर्ष के और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह यहां का सुप्रसिद्ध मेला है। मेले के समय मंदिर के आस पास काफी भीड़ रहती है। एक चौड़े से मैदान में तरह तरह के दुकानों की कतार लगी रहती है। यहां मोटर साइकिल, स्कूटर ,ट्रेक्टर ,टेक्सी, बैलगाड़ी आदि कई गाडिय़ां कतार में खड़ी रहती हैं। भीड़ के कारण चलना कठिन होता है।
यहां रात में देवी देवताओं के नृत्य के कारण चारों ओर धूल ही धूल नजर आने लगती हैं रात लोकल नृत्य में श्री लक्ष्मी देवी नृत्य, सिनेमा, बुर्रा कथा नाटक और मनोरंजन कार्यक्रम प्रस्तुत की जाती हैं। मेले में लगे दुकानों के लिए बिजली व्यवस्था बिजली विभाग द्वारा की जाती हैं। पानी की व्यवस्था के लिए हैंड पंप, ट्रेंकर की व्यवस्था की जाती हैं एवम् प्रकृति की देन दक्षिण की ओर चिंतावगू नदी स्थित है। जो की पश्चिम की ओर कल कल बहती रहती हैं। जिससे दर्शनार्थी अपनी स्नान एवं प्यास बुझाकर आनंद की अनुभूति प्राप्त करते हैं। यहां आए लोगों की सुविधा के लिए स्वास्थ्य शिविर स्वास्थ्य विभाग द्वारा लगाया जाता हैं। रात भर लोग आपस में मिलकर हिंदू नववर्ष की शुभकामनाएं एवम् उपहार भेंट करते है। मेला के अंतिम दिन अर्थात गुड़ी पड़वा के दिन भगवान जी की रथ यात्रा निकाली जाती हैं। 10 बजे के समापन होने के बाद सभी लोग अपने अपने घर जाकर गुड़ी पड़वा का त्यौहार बड़ी धूम धाम एवम् हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है। और कई लोग हिंदू नववर्ष आरंभ एवम् चैत्र नवरात्रि प्रारंभ में माई जी की आराधना करते है।
श्रीनिवास एटला के अनुसार पामभोई राज परिवार की उपस्थिति में यह मेला इस वर्ष 19 मार्च शनिवार को मंडपाच्छादन, गोवर्धन पर्वत पूजा अर्चना एवं ध्वजारोहण, 20 को श्री कृष्ण भगवान पूजा अर्चना मंदिर परिसर में, 21 को दोपहर 2 बजे माता राधा एवम् कृष्ण जी की विवाह समारोह एवम् क्षेत्रीय लोकल नृत्य एवं डांसिंग प्रोग्राम (वन विभाग की ओर से), 22 मार्च को प्रात: 07 बजे भगवान की रथयात्रा तथा गुड़ी पड़वा (नवरात्र)प्रा रंभ । यह मेला 5 दिनों का होता है। यह मेला का संचालन मेला समिति पोषडपल्ली के द्वारा की जाती हैं। भोपालपटनम छत्तीसगढ़ का अंतिम छोर होने के कारण यहां से जुड़े हुए राज्य महाराष्ट्र आंध्रप्रदेश के लोग अधिक से अधिक संख्या में शामिल होते हैं।
डोंगरगढ़ पहाड़ में स्थित मां बम्लेश्वरी की मंदिर में बिजली की व्यवस्था, एवं पक्की सडक़ जिस तरह शासन ने व्यवस्था की हैं, ठीक उसी तरह गोवर्धन पर्वत का सकलनारायण गुफा एवं मंदिर में की जाए तो छत्तीसगढ़ का बेहद खुबसूरत स्थलों में से एक भगवान् श्रीकृष्ण जी का गोवर्धन पर्वत एवम् मंदिर हो सकता है। इस ओर यदि शासन द्वारा ध्यान दिया जाये तो प्रसिध्द पर्यटन स्थल एवं दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। यह छत्तीसगढ़ का अंतिम छोर भोपालपटनम क्षेत्र का बेहद ख़ूबसूरत दर्शनीय स्थल है, किंतु इसका जिक्र अभी तक पूर्ण रूप से छत्तीसगढ़ दर्शन (पर्यटक) में अंकित नहीं है। शासन प्रशासन को इस ओर अत्यधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।